11-07-2013, 11:58 PM | #1 |
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राजस्थानी लघुकथा/ लिछमी
लेखक: पन्नालाल कटारिया ‘बिठौड़ा’ बांझणी..बांझणी..बांझणी। लिछम जिणा जिणा से मुंडां सूं औ सबद सुण सुण साव गैली गूंगी ज्यां व्हैगी। बलिता री भारी लेवण ने जावै चाहे पणघट माथे पाणी भरण जठे जावती उणने ओ इज सबद कानां मांय गरणावतो। लिछमी री सासु पण उणने घणा अंवला बोल बोलती थकी ताना देती ही, बाकैवे ही-आ किसी बांझणी म्हारा बेटा रे पानी पड़ी, पूरा दस बरस व्हैगा ब्याव ने अजै तांई तो आ बांझणी इज लागे। म्हारा तो मन करे रांड ने धक्का देयर पाछी इणरा मायतां रे घरा काढ देऊं। इसी बांझणी सूं म्हारे घर रो वंश कियां बधसी, म्हारे तो बेटो पण छगन ऐका ऐक अर बिंदणी बांझणी पाने पड़ी। इयां जाणओ व्हैगो सत्यानाश म्हारे घर रो तो। लिछमी री सासु बोलती जाय रही ही। लिछमी सासु रा ताना सुणती अर थान थपान, सेणा समझणा अर भोपा रे मीने रे तीनस दिन फेरी लगावती रैवती। पेट उघड़ण सारू जितरा भाटा उतरा देव कर न्हाखया। कदै थाना माथै फोपाजी खोल भरावता तो कदे सेणा समझना टोटका करण रो केवता। इयां करता करता लिछमी सफा हारगी ही। उणने कीं ननीं सुजे हो बा करै तौ करै कांई..? लिछमी जठै ऊभी के बैछी रेवती उणरे कानां मांय फगत एक इज सबद गरणावतो..आ तो..बांझणी है..बांझणी..लिछमी रो धमई छगन आठ किताब तांई भणियो पढ़ियो स्याणो मोट्यार हो बो कने सी सैर मांय मंजूरी करे। सावरना रोट्य रो भांतो लेय बाइसिकल सू जावे अर सिंझ्या घरे पूग जावे। छगन पण लिछणी सू घणो हेत राखे उणने छगन मूंड़ा सूं कदे खारो बोल नीं कह्यो हो। एक सिस्टर (नर्स) नौकरी सारू पैली बार उण गांव मांय पूगी। बा ऐक मोटा सैर री रैवासी ही। उणरी नौकरी छगन रै गांव मांय लागी ही। लिछमी रीबात गुड़ती गुड़ती सिस्टर कने पूगी तो वा लिछमी रे घरै गी। लिछमी उणरी सासु अर छगसन सूं मिल उणाने विस्वास दिरायो। लिछमी री सास ने भुलावण देती थकी कह्यो, मां जी टाबर नीं होवण रो दोस समाज फगत लुगायां ने देवे है। पर ओ विग्यान रो जुग है। ए बातां अबे हजार कोसां लारे रैगी। इण अपनां फेरी आला डागदर के टोटका रे भवजाल मंय नीं पजणो चाईजै। था दोन्यू धमी लुगाय स्हैर जाय थारे सरीर री तपास कराओ। खोट लुगाई री जगा मिनख में भीत तो व्है सके है। |
12-07-2013, 12:00 AM | #2 |
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Re: राजस्थानी लघुकथा/ लिछमी
सिस्टर..आ साची बात है कि खोट लुगाई री जगा मिनख मां पण व्है सकै है? छगन अचम्भो करतो थको पूछ्यो। जितने छगनी री मां रीसा बलती छकी बोलण लागी, कांई म्हारा छगन में खोट लागे थाने...? सिस्टर धीजो दिरवती धकी कैवण लागी नीं..मां जी, म्हारे केवण रो मतलब ओ नीं है पण तपास कराया मालम व्है सके है..। आ तो डागदर री रपट आयां ठाह पड़सी।
छगनल स्याणो मोट्यार हो, इयां बो सगील बातो रो भान राखतो छगन ने पण बात सोला आना जंचगी। छगन बोल्यो, सिस्टर थां साव साची केवो हो..डागदर टाबर री औखद देय सके..तो इण रो ईलाज भी तो कर सके। थूं सावल कह रहयो है छगन, विग्या रा जुग मांय दोरी बात की नीं है। लिछम जद ए बातां सुणी तोउणरा कालजा ने कीं ठाडौल पूगी। वा सिस्टर ने हाथ जोड़ती थकी कैवण लागी, सिस्टर, आपर देवी रूप धारर म्हारे घरे पधारिया, धिन भाग म्हारा अर इण गांव रा। थूं चिंता मती कर लिछमी। ऊपर आला ने सगलां री खबर है। सिस्टर बोली, म्हैं थांने स्हैर रा एक लूठा अर मौजीज डागदर रो ठिकाणो देऊ थां दोन्यू बठै पूगर तपास कराय द्यो। लिछमी अर छगन सैरा पूग डागदर सूं मिल्या। डागदर दोन्यूं ने भली भांत समझाया अर बरसो रो बोझ उदार दियो। दोन्यूं री सगली तपास करीजी। तापस में लिछमी एकदम भली चंगी अर टाबर पैदा करण में सही बताई। डागदर री रपट में मुजब छगन में दोश मिलोय..उणरे सरीर रा बीज (शुक्राणु) टूटा-फूटा अर कम मिल्या जो टाबर री पैदाईस कर सकै। डागदर दोन्यूं ने आछी भुलावण धाती अर छगन रो इलाज किनो। लगोलगे बारै मीना ईलाज रे पाण छगन रे घरे थाली बाजी। सगला बास गवाड़ी अर घर मांय उच्छब मनाय गयो। लिछमी री सास पण घणी राज व्ही, जद बीने आ ठाह पड़ी के खोट लिछमी मांय नीं वै र छगन मांय ही। तो वा लिछमी ने घणो लाड़ लडायो अर पछतावती थकी कैवण लागी बेटी म्है थने घणा आवल कावण सुणाया। बेटी म्है अग्यानी ही। महनै जुनी रट लाग्योड़ी री। म्हने माफ करदे बेटी..? आज रो विग्यान रो जुग म्हारी आंख्यां खोल दी। अबे लिछमी एक बेटी री मां है। कुण ई उणने नीं कैवे के लिछमी थूं..? (अंतरजाल से) |
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