14-07-2013, 10:11 PM | #1 |
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बदरीनाथ के ऊपर बनी झील मचा सकती है भारी तबा
उत्तराखंड केदारनाथ में आई आफत से अभी उबर भी नहीं पाया है कि बदरीनाथ में तबाही का खतरा मंडराने लगा है। बदरीनाथ के ऊपर अलकनंदा नदी के उद्गम स्थल के पास ही भू-स्खलन के कारण नदी का समान्य प्रवाह अवरुद्ध गया है, इस वजह से वहां एक झील बन गई है। यह झील करीब 450 मीटर लंबी है। आशंका जताई जा रही है कि भारी बारिश, भूस्खलन या फिर बादल फटने की स्थिति में कभी भी झील का अस्थाई अवरुद्ध ढह सकता है और भारी तबाही मच सकती है। इसके कारण बदरीनाथ की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी है। यह झील भागीरथी खड़क और सतोपंथ ग्लेशियर के पास माना इलाके में बनी है। बदरीनाथ मंदिर करीब 8 किलोमीटर दूर है। इस खतरे की जानकारी मिलेत ही उत्तराखंड प्रशासन में हड़कंप मच गया है। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने टॉप अधिकारियों के साथ बैठक की है। राज्य के चीफ सेक्रेटरी सुभाष कुमार इस मामले को खुद देख रहे हैं। राज्य डिजास्टर मिटिगेशन ऐंड मैनेजमेंट सेंटर (DMMC) के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला ने हमारे सहयोग अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि बदरीनाथ, माना और पांडुकेश्वर इलाके को अलर्ट कर दिया गया है। गुरुवार दोपहर को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) से जुड़ी एजेंसी नैशनल रीमोट सेंसिंग सेंटर (NRSC) उत्तराखंड सरकार को इसकी सैटलाइट पिक्चर उपलब्ध करवाई और संभावित खतरे के प्रति आगाह किया। यह सैटलाइट तस्वीर 7 जुलाई को ली गई थी। एनआरएससी के मुताबिक 15-17 जून को हुई भारी बारिश के दौरान भू-स्खलन के कारण यह झील बनी है। यह ठीक अलकनंदा के उद्गम स्थल के पास ही बनी है। यह भागीरथ खड़क और सतोपंथ ग्लेशियर के पास है। यह जगह बदरीनाथ से ठीक 8 किलोमीटर ऊपर की तरफ है। हालांकि, एनआरएससी के डायरेक्टर वी.के. ढडवाल ने बताया कि सैटलाइट इमेज को देखकर नहीं लगता है कि खतरा बहुत बड़ा है। झील में पानी की मात्रा बहुता ज्यादा नहीं है। उत्तराखंड स्पेश ऐप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर एम.एम. किमोठी ने कहा कि भूस्खलन कारण पैदा हुए मलबे से यह झील बनी है। यह एरिया करीब 2,550 स्क्वेयर मीटर के आसपास है। झील के और बड़ा होने तथा उसके टूटने की आशंका ने अलकनंदा के किनारे रहने वाले हजारों लोगों के भीतर दहशत पैदा कर दिया है। अलकनंदा के किनारे बदरीनाथ, चमोली, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग जैसे शहर हैं। इसके अलावा अलकनंदा नदी पर कई बिजली परियोजनाएं भी हैं, जिन पर भी खतरा मंडरा रहा है। गौरतलब है कि अलकनंदा को हिमालय इलाके में उग्र स्वभाव की नदी माना जाता है और पहले भी इस तरह की झील बनने और टूटने से इसके किनारों पर व्यापक बाढ़ और तबाही की घटनाएं हो चुकी हैं। 1894 और 1930 में इस तरह की घटनाओं से भारी बाढ़ आई थी। इस बीच उत्तराखंड प्रशासन ने शुक्रवार की शाम लोगों को नदी किनारे के इलाके छोड़कर सुरक्षित जगहों पर जाने के लिए कह दिया है।
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