20-07-2013, 11:01 PM | #91 | |
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Re: ब्लॉग वाणी
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06-08-2013, 12:20 AM | #92 |
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Re: ब्लॉग वाणी
अब भविष्य में कोई अनाथ न हो मेरे नाथ
-ओम द्विवेदी देश के तमाम शहरों की तरह मैं भी एक सांस लेता शहर इंदौर हूं। दूर देवभूमि में पहाड़ों पर अटके हुए हैं मेरे लाल, मेरे आंसू पलकों की कंदराओं में फंसे हुए हैं। उन्हें याद करके बादलों की तरह बार-बार फटती है मेरी छाती। कोई फोन बजता है तो पल भर के लिए निचुड़ जाता है शरीर से रक्त। लगता है गर्म पिघले शीशे की तरह कान में गिर न जाए अनहोनी से लथपथ कोई ख़बर। पहली बारिश लेकर अपने आसमान में आए मेघ जो कभी छंद की तरह लगते थे आज नजर आते हैं काल की मानिंद। लगता है ये यहीं बरस जाएं जो बरसना है, हिमालय की तरफ न करें अपना रुख। मेरे जिगर के जो टुकड़े मेरे पास आने की जद्दोजहद कर रहे हैं उन पर फिर बिजली बनकर न गिर पड़ें ये काले-काले काल। जिन लोगों को जिंदगी पाने के लिए मैने बाबा केदारनाथ के चरणों में भेजा था उनकी मौत का हिसाब करना नहीं चाहता। जो जीवन देते हैं उनसे लाशें लेना नहीं चाहता। जिनको भक्ति और आस्था का संस्कार दिया है उनका अंतिम संस्कार करना नहीं चाहता। भूगोल की जंजीरों से अगर जकड़े नहीं होते मेरे पैर तो अब तक मैं पहाड़ों से बिन लेता छूटे और छिटके हुए बेटों को, गोदी में उठाकर भर देता उनके जख्म। गंगा, यमुना और अलकनंदा में जाल डालकर छान लेता सैलाब में बही सांसों को। राजवाड़ा को कांधे पर रख पहुंच जाता नाथ के दरवाजे पर और उसे स्थापित कर देता बही हुई धर्मशालाओं की जगह। छावनी मंडी को पीठ पर लादकर ले जाता और भर देता भूख का पेट। अगर नक्शे से चिपके होने का अभिशाप नहीं मिला होता तो छाती से चिपका लेता दर्द के मारों को, पी लेता उनके आंसू। बाबा! मैं तुम्हारे धाम की तरह भले हजारों साल पुराना नहीं हूं लेकिन मेरे सिरहाने विराजे हैं दो-दो ज्योतिर्लिंग। उनकी परिक्रमा करवाता हूं मैं भी। देश-दुनिया से आए अतिथियों की बलि लेने की अनुमति न मैं बादलों को देता और न हवाओं को। हमारे महाकाल मुर्दे की राख लेते हैं, जिंदा को मुर्दा नहीं करते। ओंकार पर्वत पर बैठे ओंकारेश्वर डांटते रहते हैं नर्मदा को कि वह घाट पर नहाते भक्तों को अपने आगोश में न ले। पिघलने वाले पहाड़ पर बैठकर भी आपका दिल नहीं पिघला। आप बैठे रहे और आपके चाहने वाले बहते रहे। आपके जयकारे लगाते-लगाते वे शून्य में खो गए। मेरे आंगन में देवी अहिल्या ने शिव भक्ति की जो ज्योति जलाई थी वह तूफानों में घिर गई है। बचाओ उसकी लाज। मेरे भी सीने में धड़कता है दिल। मैं भी सुबह सूरज को न्योता देता हूं रोशनी के लिए और शाम को देहरी पर रख देता हूं उम्मीद का दीया। अगर आपको सुनाई देती है आंसुओं की प्रार्थना तो सही सलामत लौटाओ मेरी संतानों को क्योंकि इनके दम पर ही तो मैं जिंदा और सक्रिय रहता हूं। मैं ही क्या पूरे भारत के शहर और गांव भी तो उन्ही लोगों से आबाद हैं जो हर साल आपके दाम पर आते हैं, आपको पूजते हैं और आपके आगे सीस नवाते हैं। बरसों से यह सिलसिला चलता आ रहा है। आगे भी बरसों-बरस यह सिलसिला चलता रहेगा। कहते हैं कि आप तो बहुत ही दयालू हैं। फिर आपको यह क्या सूझी कि आपकी दया को ही लोग तरस गए। अगर चाहते हो कि हमारी आस्थाओं की उम्र लंबी हो तो किसी को अनाथ मत करो मेरे नाथ। सबको सुरक्षित लौटाओ मेरे धाम, जिससे दोबारा भेज सकूं, उन सभी को फिर चारों धाम।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
06-08-2013, 12:21 AM | #93 |
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Re: ब्लॉग वाणी
जनता की पसंद का पता लगाया जाए
-अनूप शुक्ल चुनाव आने वाले हैं। पार्टियां चुनाव घोषणापत्र तैयार कर रही हैं। मुफ्त में बांटे जाने वाला सामान अभी तय नहीं हुआ है। मुफ्तिया सामान की घोषणा के बिना चुनाव घोषणा पत्र उसी तरह सूना लगता है जैसे बिना घोटाले की कोई स्कीम। सामान तय करने के लिए पार्टी की शिखर बैठक बुलाई गयी है। गहन चिंतन चल रहा है। पिछली बार लैपटॉप दिया था। इस बार उसके लिए बिजली का वायदा कर सकते हैं। एक ने सुझाव दिया। अरे भाई,लैपटॉप अगले चुनाव तक बचेंगे क्या? जिसको दिया उसने बेच दिया दूसरे को। जो बचे होंगे वे अगले चुनाव तक खराब हो चुके होंगे। लैपटॉप कंपनी बड़ी खच्चर निकली। चंदा भी नहीं दिया पूरा और सामान भी सड़ियल दिया। वो तो कहो जनता को मुफ्त में बांटा गया वर्ना तोड़-फोड़ होती। कोई फायदा नहीं इस घोषणा से। बल्कि लफड़ा है। बिजली फिर सबके लिए लोग मांगेंगे। फिर इस बार बिजली की घोषणा करें क्या? एक ने सुझाव दिया। अरे भैया बिजली होती तो फिर क्या था। बिजली बनायेगा कौन? जित्ती बनती है सब अपने चुनाव क्षेत्र में ही खप जाती है। बिजली का नाम मत लो, जनता दौड़ा लेगी। इनवर्टर कैसा रहेगा? अबे इनवर्टर क्या हवा में चार्ज होगा? उसके लिये भी तो बिजली चाहिये। बिजली से अलग कोई आइटम बताओ। क्या मोटरसाइकिल की घोषणा कर सकते हैं? दूसरे ने सुझाव दिया। करने को तो कर सकते हैं लेकिन लफड़ा ये है कि कोई गारंटी नहीं कि हम चुनाव में हार ही जाएं। अगर ये पक्का होता कि हम हार ही जाएंगे तो मोटर साइकिल क्या कार की घोषणा कर देते। लेकिन जनता का कोई भरोसा नहीं। अगर जिता दिया तो लिए कटोरा घूमते रहेंगे मोटरसाइकिल देने के लिए। साहब आप घोषणा कर दीजिये न। जीत गये तो किश्तों में दे देंगे। पहले साल पहिया देंगे, दूसरे साल इंजन , इसके बाद सीट और फिर चैन। पूरी मोटरसाइकिल योजना चार चुनाव में चलेगी। अगर जनता को मोटरसाइकिल चाहिए होगी तो झक मार के जिताएगी चार बार। युवा नेता मोटरसाइकिल पर अड़ा था। अरे वोटर इत्ता सबर नहीं करता भाई। चार चुनाव तक इंतजार नहीं करेगा। उसको भी हर बार वैरियेशन चाहिये। मोटर साइकिल का झुनझुना बजेगा नहीं। पेट्रोल भी मंहगा है। फिर मोटर साइकिल तो लड़कों के लिए हुई। लड़कियों के लिए स्कूटी चाहिए होगी। अलग-अलग आइटम हो जाएंगे। कोई जरूरी है कोई सामान मुफ्त में देना? जनता को मुफ्त का सामान देने की बजाय और कोई भलाई का काम करें। एक युवा नेता ने,जिसके चेहरे से क्रांति टपक रही थी ,सुझाया। देखने में तो समझदार लगते हो लेकिन जनता के बारे में समझ कमजोर है बरुखुरदार की। चुनाव लड़ना लड़की की शादी करने की तरह है। लड़के वाले कुछ नहीं चाहते फिर भी टीवी, फ्रिज, कार देना पड़ता है लड़की वाले को। दस्तूर है। जनता को भी मुफ्त का सामान देने का दस्तूर बन गया है तो निभाना पड़ेगा चाहे हंस के निभाएं या रो के। नेता के चेहरे पर बेटी के बाप का दर्द पोस्टर की तरह चिपका दिखा। आप लोग बताओ जनता की क्या पसंद है? किस चीज को सबसे ज्यादा जरूरत है उसे। आप लोग जनता के नुमाइंदे हो। उसकी पसंद अच्छे से जानते होंगे,नेता ने सवाल उछाला। तभी सारी बातें सुन रहा एक शख्स बोला, जनता सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान चाहती है। वो देने का वादा कर दो बस...।
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06-08-2013, 12:23 AM | #94 |
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Re: ब्लॉग वाणी
हमें कई नसीहत दे गई है ये आपदा
-राहुल सिंह यह पिण्ड धरती कभी आग का धधकता गोला थी। धीरे-धीरे ठंडी हुई। पृथ्वी पर जीवन मानव और आधुनिक मानव के अस्तित्व में आने तक कई हिम युग बीते। दो-ढाई अरब साल पहले। इसके बाद बार-बार, फिर 25 लाख साल पहले आरंभ हुआ यह दौर जिसमें हिम युग आगमन की आहट सुनी जाती रही है। गंगावतरण की कथा में उसके वेग को रोकने के लिए शिव ने अपनी जटाओं में धारण कर नियंत्रित किया। तब गंगा पृथ्वी पर उतरीं। केदारनाथ आपदा 2013, कथा-स्मृति या घटना-पुनरावृत्ति तो नहीं । एक बार फिर बांध के मुद्दे पर बहस है। अब मुख्यमंत्री बहुगुणा और पर्यावरण रक्षक बहुगुणा आमने-सामने हैं। निसंदेह पर्यावरण में पेड़, पहाड़, पानी पर आबादी और विकास का दबाव तेजी से बढ़ा है। आपदा में मरने वालों में 15 मौत की पुष्टि से गिनती शुरू हुई। पखवाड़ा बीतते-बीतते मृतकों का आंकड़ा 1000 पार करने की आशंका व्यक्त की गई। खबरों के अनुसार विधानसभा अध्यक्ष ने मृतकों की संख्या 10 हजार, केन्द्रीय गृहमंत्री ने 900,राष्टñीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 580 और गंगा सेवा मिशन के संचालक स्वामी ने 20 हजार बताई। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि कभी नहीं जान पाएंगे कि इस आपदा में कितने लोग मारे गए हैं। मृतकों का अनुमान कर बताई जाने वाली संख्या और उनकी पहचान-पुष्टि करते हुए संख्या की अधिकृत घोषणा में यह अंतर हमेशा की तरह और स्वाभाविक है। देवदूत बने फौजी और मानवता की मिसाल कायम करते स्थानीय लोगों के बीच लाशों ही नहीं अधमरों के सामान, आभूषण और नगद की लूट मचने के खबर के साथ जिज्ञासा हुई कि मृतकों के शरीर पर उनके साथ के आभूषण-सामग्री आदि के लिए सरकारी व्यवस्था किस तरह होगी? सामान राजसात होगा? यह जानकारी सार्वजनिक होगी?... खबरों से पता लगा कि अधिकृत आंकड़ों के लिए मृतकों के अंतिम संस्कार के पहले उनके उंगलियों के निशान लिए जा रहे हैं। व्यवस्था बनाई गई है कि उत्तराखंड के लापता निवासी 30 दिनों के अंदर वापस नहीं आ जाते तो उन्हें मृत मान लिया जाएगा। इस आपदा में मारे गए लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र घटना स्थल से जारी किए जाएंगे। मुस्लिम संगठन जमीउतुल उलमा ने सभी शवों का हिंदू रीति से अंतिम संस्कार करने पर आपत्ति जताई है और घाटी में जा कर शवों की पहचान करने के लिए इजाजत दी जाने की बात कही है ताकि मुस्लिम शवों को दफन किया जा सके। खबरें थीं कि आपदा बादल फटने से नहीं भारी बारिश के कारण हुई। आपदा से ले कर मंदिर में पूजा आरंभ किए जाने के मुद्दे पर हो रही बहसों के बीच न जाने कितनी लंबी-उलझी प्रक्रिया और जरूरी तथ्य नजरअंदाज हैं। इस घटना में अपने किसी करीबी-परिचित के प्रभावित होने की खबर नहीं मिली शायद इसीलिए ऐसी बातों पर ध्यान गया। वरना तो त्रासदी तो ऐेसी ही थी कि कोई अपना, भले ही वो दूर का रिस्तेदार हो, वहां फंस सकता था। खैर, अब यह त्रासदी गुजर गई लेकिन एक नहीं कई सीखें दे गई है। हमारी कोशिश तो यही होनी चाहिए कि इस तरह की आपदा हमें फिर न झेलनी पड़े इसके लिए हम सजग रहें। हमारी सजगता ही आने वाले समय में हमें बचा सकती है। अगर हम पहले ही सजग रहते तो शायद इतनी जाने नहीं खोनी पड़ती।
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06-08-2013, 09:17 PM | #95 |
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Re: ब्लॉग वाणी
बहुत ही उपयोगी सूत्र है, Dark Saint Alaickजी। आज पहली बार यहाँ आया।
कभी हम भी हिन्दी ब्लॉग जगत में भ्रमण करते थे और अच्छे लेखको की तलाश थी। आपने हमारा काम आसान कर दिया है। एक सुझाव: क्या ब्लोग का reference दे सकते है? इससे, यदि हम उस ब्लॉग पर जाकर कोई टिप्पणी करना चाहें तो सुविधा होगी कृपया इस काम को जारी रखिए। धन्यवाद |
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