My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 09-08-2013, 06:02 PM   #11
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

मैंने उससे कहा की हम वापस ट्रेन से चल सकते हैं..हमारा काफी वक़्त बच जाएगा..लेकिन उसने बस से ही जाने की जिद की...उसकी उस जिद में जिद वाली कोई बात नहीं थी, बल्कि एक विनम्र आग्रह जैसा कुछ था...वैसे तो बस से वापस लौटना मैं भी चाहता था लेकिन मुझे समय की फ़िक्र भी सता रही थी.मुख्य सड़क तक हम रिक्शे से आये थे.मंदिर से सड़क तक रिक्शे पर वो खामोश बैठी हुई थी.ऐसा नहीं की वो कुछ भी नहीं कह रही थी, वो बातें करती आ रही थी, लेकिन बेहद संतुलित और संजीदा बातें.. उसका ये रूप आसानी से नज़र नहीं आता, लेकिन जब कभी वो बेहद इमोशनल हो जाती है या कुछ ऐसा हो जाता है जो उसके दिल को अन्दर तक छू जाए, तब ऐसे मौके पर वो बेहद संजीदा हो जाती है.वो रुक रुक कर बातें करने लगती है.मुझे उसका ये रूप पसंद आता है....जब वो अपने इस मोड में आती है, तो कमाल की बातें करती है...अपने दिल की हर छोटी से छोटी बात बहुत खूबसूरती के साथ बिना किसी डर शर्म या हिचक से बताती है.

हमें बस स्टैंड पहुँचते ही बस मिल गयी.बस खाली ही थी इसलिए हमें सीट मिलने में भी ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.हम बस में चढ़ गए...इस बार उसने विंडो सीट कब्ज़ा करने की कोशिश नहीं की...बल्कि मैंने खुद ही उसे विंडो सीट पर बैठने को कहा.वो मुझे देखकर मुस्कुरा दी.बाहर अच्छी खासी धुप निकल आई थी.वो लगातार बस की खिड़की से बाहर आसमान की तरफ देख लगी....
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:02 PM   #12
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

"तुम्हे कौनट्रेल्स पता है?" उसने पूछा.

कौनट्रेल्स?? नहीं तो क्या होता है....मुझे सच में कौनट्रेल्स नहीं पता था..

"तुम देखते हो न जब कभी कभी हवाई जहाज आसमान से गुज़रता है तो एक लम्बा सा लकीर अपने पीछे छोड़ते जाता है, देखने पर लगता है की जैसे वो उसकी पूंछ हो लेकिन वो असल में बादलों का कुछ वेपर ट्रेल जैसा होता है.पता है, मुझे हमेशा वो एक रहस्मयी सड़क सा दिखाई देता है...कभी कभी सोचती हूँ की अगर सच में वो कोई सड़क हो तो कहाँ तक जाता होगा....शायद स्वर्ग तक....अच्छा, सोचो ज़रा, अगर एक दिन हमें पता चले(सिर्फ हम दोनों को) की वो कौनट्रेल्स न होकर कोई जादुई सड़क है जो आसमान तक जाती है...और उस सड़क पर चलने का हुनर, वहां तक पहुँचने का राज़ मुझे और तुम्हे पता लग गया तो?...और मान लो अगर एक दिन हम उस सड़क पर सच में चलने लगे तो? धरती से कोई अगर उसी वक़्त आसमान की तरफ देखेगा तो उसे काफी ताज्जुब होगा की दो लोग आसमान में कैसे चल रहे हैं...अगर मुझे उस सड़क पर चलने का राज़ मालुम चला तो मैं यहाँ से कई सारे फुल और बहुत से खूबसूरत पौधे लेकर जाउंगी...और आसमान के उस कौनट्रेल्स वाली सड़क के दोनों तरफ फुल-पौधे लगाती जाउंगी....तुम्हे भी अपने साथ मैं लेकर चलूंगी...तुम दायीं तरफ पौधे लगते जाना और मैं बायीं तरफ...धरती से लोग अगर आसमान की तरफ देखेंगे तो उन्हें कितनी हैरानी होगी.....की आसमान में फुल कैसे उग आये हैं और वे जब मेरी तरफ देखेंगे तो शायद मेरे हाथों में फूलों को देखकर मुझे कोई परी समझ लेंगे..और तुम्हे मेरे साथ देखकर शहजादा समझेंगे.....तुम्हे क्या लगता है, अगर मैं आसमान से हाथ हिलाकर 'हाय'(hi) कहूँगी तो क्या कोई मुझे वापस जवाब देगा??हम्म्म्म???"
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:02 PM   #13
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

वो मेरे तरफ देखने लगी लेकिन बिना जवाब की प्रतीक्षा किये फिर कहने लगी
"क्या पता शायद उस सड़क पर चलते हुए मुझे कहीं कोई ऐसा एक दरवाज़ा दिख जाए जो स्वर्ग या वैसी ही किसी खूबसूरत सी दुनिया में खुलता हो....क्या पता वैसी कोई दुनिया जहाँ वो दरवाज़ा खुलता है वहां खुशियों का कोई बड़ा सा खजाना हो.....और शायद मैं उन खुशियों को बटोर कर किसी बहुत बड़े से थैले में भरकर लेते आ सकूँ....और अपने दोस्तों में, दुनियावालों में बाँट सकूँ..जिसको देखो वही उदास रहता है, और मुझे बिलकुल पसंद नहीं की मेरे आसपास रहने वाला कोई इन्सान उदास रहे..तुम भी कितने खोये खोये से और परेसान रहते रहते हो.मैं सबसे अच्छी और बड़ी वाली ख़ुशी तुम्हे दे दूंगी...और फिर अपने परिवार में बाटूंगी..फिर पुरे अपने मोहल्ले में, फिर शहर में, फिर पुरे देश में और फिर पूरी दुनिया में...सब मुझे हमेशा याद करेंगे...की कोई ऐसी भी लड़की थी जो अपने दोनों हाथों से खुशियाँ बंटती थी...." ये कहते ही उसकी दोनों हाथ हवा में फ़ैल गयीं...मैं उसकी बातों में सच में खो गया था और किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच चूका था...लेकिन शायद मेरी सिर्फ एक छोटी सी मुस्कराहट से वो कुछ ज्यादा उत्साहित नहीं हो सकी....और समझने लगी की मैं हमेशा की तरह उसकी बातों को नादानी भरी बातें समझ बैठा हूँ...जबकि ऐसा नहीं था..
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:03 PM   #14
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

वो मेरी ठंडी प्रतिक्रिया से ज्यादा खुश नहीं हुई....वो कहने लगी..."मुझे मालुम है, मैं अक्सर नादानी वाली बातें करती हूँ, शायद इसलिए तुम्हे मेरी ये बात भी मेरा बचपना और दुनियादारी से परे वाली बातें लगती होंगी....लेकिन देखो, दुनिया में कुछ भी मुमकिन है...एनी डैम मैजिक इन दिस वर्ल्ड इज पोसिबल.. पता है मुझे सबसे ज्यादा मैजिकल और आस्चार्जनक क्या लगता है...किसी बच्चे का पैदा होना...अगर सोचो तो वो कहीं नहीं है, जैसे हम और तुम...आज से बीस-पचीस साल पहले कहाँ थे?कहीं नहीं थे...और फिर एक दिन वो बच्चा इस दुनिया में आ जाता है.हम सबके सामने, हम सबके बीच बड़ा होता है...स्कुल जाता है, पढता है और फिर हमारे तुम्हारे जितना बड़ा हो जाता है....देखो ये कितना मैजिकल और रहस्यपूर्ण है... मुझे मालुम है दुनियावाले इसमें भी साईंस लगा देंगे और ये नहीं मानेगे की ये कोई चमत्कार है...लेकिन मेरे लिए तो ये एक चमत्कार ही है, भगवन का मैजिक....मुझे ये भगवन का सबसे बड़ा जादू लगता है, और जब ये पोसिबल है तब कुछ भी हो सकता है, आसमान में सड़क भी बन सकती है....यु नो व्हाट....जो लोग किसी भी जादू, मैजिक या मिस्त्री में विश्वास नहीं रखते...दे आर सिम्पली नॉट लिविंग." वो मेरे तरफ फिर देखने लगी और मेरे जवाब का इंतजार करने लगी.इस बार मैंने सिर्फ उसे इतना ही कहा, की तुम्हारी इन बातों को कभी भी मैं नादानी भरी बातें नहीं समझता.मुझे अच्छा लगता है जब तुम ऐसी बातें करती हो.वो थोडा आश्वस्त हो गयी.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:03 PM   #15
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

ये उसकी ख्वाबों की दुनिया की बातें थीं....उसकी ख्वाबों की दुनिया ऐसी ही थी..कहाँ से कौन सी बात अचानक से सामने निकल आती थी किसी को पता भी नहीं चलता था....जब वो ऐसी बातें करती, तो मुझे हैरत होती थी की वो कहाँ तक सोच सकती है..उसकी इमैजनैशन की कोई हद नहीं थी....और कभी कभी ऐसी बातें करते वक़्त वो एक दो ऐसी बात भी कह जाती थी जिससे मैं अक्सर चौंक सा भी जाता था. उसने उस दिन कहा था "तुम्हे पता है, मैं अपने ख्वाबों के दुनिया में कुछ भी कर सकती हूँ...वहां कोई मुझपर बंदिश लगाने वाला नहीं होता..मैं अपने मर्जी से जी सकती हूँ...मैं कहीं भी जा सकती हूँ और कुछ भी कर सकती हूँ...कुछ भी....तुमसे शादी भी...

उसने इतने धीरे से ये आखिरी शब्द कहा की एक पल लगा की ये मेरा भ्रम है, लेकिन उसकी आँखों में ये शब्द बिलकुल साफ़ साफ़ छपे हुए थे..घबराहट से या शर्म से, मैं नहीं जानता....लेकिन उसकी पलकें नीची हो गयीं, और मेरी नज़रें उसके चेहरे पर उठ आयीं थीं और वहीँ अटकी रहीं...

हम दोनों के बीच जो जादू सा पल हो आया था वो तब टुटा जब बस में अचानक हंगामा होने लगा...एक शराबी बस में खुस आया था और वो बस के कंडक्टर से बहस करने लगा.उस शराबी के बस में यूँ अचानक आ जाने से हमारे बीच जो एक पल पैदा हुआ था वो अचानक से नष्ट हो गया.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:03 PM   #16
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

शराबी और कंडक्टर की बहस तेज होने लगी...हाथापाई भी होने लगी थी.वो शराबी अपने हाथ में एक लाठी लिए हुए था और कह रहा था मुझे अमरीका जाना है..वो बस में कैसे घुस आया ये मुझे पता नहीं चल पाया था..शायद जबरदस्ती खुस आया था..वो अपने लाठी से कंडक्टर को धमका रहा था..ड्राइवर ने बस रोक दी और उसे धक्के दे कर बाहर निकाल दिया...कंडक्टर और कुछ बस के यात्री ने बस से उतर के उसकी थोड़ी पिटाई भी की.अचानक हुए इस हरकत से वो बहुत घबरा गयी थी.उसने मेरे बाहों में कस कर पकड़ लिया और बेहद घबराई आवाज़ में कहने लगी "पता नहीं कुछ लोग ऐसे कैसे हो जाते हैं".
मैं कुछ सोचने लगा...और फिर मैंने युहीं हंसी में उससे एक सवाल पूछा "सोचो अगर कल को तुम युहीं किसी बस में सफ़र कर रही हो और उस शराबी की तरह ही अचानक मैं बस में घुस आऊं..बिलकुल वैसे ही नशे में और बुरी हालत में...और लोग वैसे ही मुझे भी घसीटने-पीटने लगे....तो क्या करोगी तुम? क्या तुम सामने आकर कहोगी की इसे मैं जानती हूँ? मैंने ये सवाल मजाक में युहीं पूछ दिया था लेकिन वो मेरे इस सवाल से एकदम चौंक सी गयी और बेहद घबरा गयी.उसने अपने दोनों हाथों से मुझे पकड़ लिया था और उसकी आँखों से आंसू निकलने लगे...वो बिना कुछ कहे बस मेरी तरफ देखने लगी....उसके होंठ हिलने लगे...जैसे वो कुछ कहना चाह रही हो लेकिन कह नहीं पा रही हो....उसकी डबडबाई आँखों को देखकर एक पल के लिए खुद मैं भी अपने ही मजाक से भयभीत सा हो गया...मैं उसकी डबडबाई आँखों को ज्यादा देर सह नहीं सका और अपनी नजर दूसरी तरफ कर लिया.उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया और कांपती आवाज़ में उसने अटकते अटकते सिर्फ इतना ही कहा की 'तुम प्लीज ऐसी बुरी बातें फिर मत करना'.मुझे अपने उस सवाल पर और खुद पर बेहद गुस्सा आने लगा था.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:04 PM   #17
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

हमारी बस शहर में प्रवेश कर चुकी थी, और मैं चाहता था की बस से उतरने से पहले उसका मन कुछ हल्का कर सकूँ....बहुत देर तक वो मेरे कंधे पर अपना सिर टिकाये रही थी और मैं बहुत देर से उससे तरह तरह की बातें कर रहा था, लेकिन मुझे उसका वो रूप जो सुबह था, मंदिर जाते हुए..बस में शरारत करते हुए....खेतों में दौड़ते हुए...कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.मैं जानता था की वो आसानी से इस मोड से बाहर नहीं निकल पाएगी.जब बस लगभग स्टैंड में लगने वाली थी, तब मैंने कहा उससे "जानती हो ये अच्छे..ये सुख के दिन हैं..".वो विस्मित होकर मेरी तरफ देखने लगी...
"तुम्हारे साथ यूँ वक़्त गुज़ारना और तुम्हारे ख्वाबो की दुनिया में यूँ भटकना अच्छा लगता है.आज का ये दिन मैं कभी नहीं भूल सकूँगा.."
वो मुस्कुराने लगी...कहने लगी "तुम ऐसी बातें करते हो तो बहुत स्वीट लगते हो...ऐसी ही बातें करते रहना हमेशा, अगर मैं कहीं दूर चली जाऊं तब भी..
मुझे लगा की शायद उसका मन अब अच्छा हो गया है..
हम बस से उतर चुके थे..और उसने मुझे एक मिठाई का पैकट पकड़ा दिया और कहा "ये मैंने तुम्हारे लिए ख़रीदा था".वो रिक्शे से वापस अपने चली गयी.शाम के चार बज चुके थे लेकिन मैं उस स्टैंड से वापस जाने के बजाये काफी देर तक वहां इधर उधर घूमता रहा, बेवजह समय काटता रहा..जब कुछ देर बाद वापस घर की ओर बढ़ा तो एक अजीब सी ताजगी महसूस हो रही थी, वही पुराना सब कुछ (शाहर, घर, लोग) नए जैसे लग रहे थे...दिन भर भटकने के बाद भी मुझे थकावट महसूस नहीं हो रही थी..रात में भी बहुत देर तक मैं सो नहीं सका...बस में जो बातें वो करती आई थी, मैं उसी में उलझा रहा.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 06:04 PM   #18
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

अब सोचता हूँ तो लगता है की जैसे वो कोई अलग ही ज़माना था जब उसके साथ मैंने वो खूबसूरत दिन बिताया था...वो अब किसी दुसरे ही जन्म की बात जान पड़ती है..सोचता हूँ की अगर अब कभी उस मंदिर में दुबारा जाना हुआ तो पता नहीं फिर कितनी यादों के तहे खुलेंगे और मुझे फिर से उन पगडंडियों पर चलना पड़ेगा.


======x=x=x=x=x==========
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 09-08-2013, 08:41 PM   #19
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: मंदिर का सफ़र

यह कथानक है, या बातचीत, या स्वप्निल दृष्यावली, या एक दिन की अद्भुत आपबीती, इसे कुछ भी कहें, लेकिन यह है बहुत रोचक, रोमांटिक और स्फटिक के समान साफ़, शफ्फाफ़ और आसमानी. आपका आभार जय जी.
rajnish manga is offline   Reply With Quote
Old 10-08-2013, 08:23 PM   #20
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 100
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: मंदिर का सफ़र

प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार बन्धु
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 12:18 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.