05-08-2013, 07:46 PM | #1 |
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उम्र की अंतिम किश्त .........
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
05-08-2013, 07:47 PM | #2 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
रोज़ सुबह उठकर देख लेता हूँ मेरी पत्नी जिंदा तो है ! वो भी मुझे शायद नींद में चेक कर लेती होगी. हमारे बीच एक अबोला सा डर दाखिल हुए कुछ महीने हो गए हैं... यह डर हम प्रेम की आड़ में वैसे ही अनदेखा करते हैं जैसे बच्चे और समाज हमें कर रहे हैं.. यों कभी-कभी कुछ समाचारपत्र वाले आते हैं जो अपने खाली जगहों को भरने के लिए सबसे नीरस पन्नो पर हमारे भावनाओं को "बुजुर्ग चाहे आपका साथ" या "बड़ों को सम्मान करिए"जैसे दयनीय शीर्षक लिए हमारी शिकायतों से कुछ वाक्य कोट कर लेते हैं. ये सब भी घरों में उब की हद तक अलसाए दोपहरी में गर्भवती महिलायें ही पढ़ती हैं जो उस समय में पति के दफ्तर और परिवार के अन्य सदस्यों के घर से बाहर या इधर उधर रहने से खुद को हमारी तरह अकेला पाती हैं ... दोपहर की उबन इस दौरान उन पर इस कदर हावी होती है की उस वक्त ना तो हेल्दी पोस्टर वाला बच्चा उनको उत्साहित करता है ना ही टी वी पर आता सास बहू का सिरिअल.
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05-08-2013, 07:47 PM | #3 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
अकेलापन कुछ ऐसा है कि साथ चलते हुए सब कुछ खामोश लगता है. मेरी छड़ी, मेरी घडी, कलाई पर के पके बाल, कपडे यहाँ तक की मेरी धड़कन भी मरी हुई चाल चलती है. खुद मेरी पत्नी भी चुप-चुप मुझे नोटिस करती रहती है... क्या वो नहीं जानती की वो खुद भी बूढी हो रही है लेकिन मेरी हर आदत को गौर से देख कर बाद में किसी बक -बक वाले वक्त में मुझे नैतिक शिक्षा देती रहती है.
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05-08-2013, 07:47 PM | #4 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
मैं अपने बेटे को जब कहता हूँ कि अखबार में "आज से पचास साल पहले" वाले कोलम में क्या छपा है तो वो खीझ जाता है. उसे अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने, दफ्तर सँभालने और सारी सुविधाओं के बीच खीझ आती है हालांकि वो थोड़ी देर के लिए मुकेश अम्बानी, अमिताभ बच्चन, अब्दुल कलाम, सचिन तेंदुलकर को टी वी स्क्रीन पर देख कर जोश में आ जाता है, उनकी कहानियां उसे बहुत प्रेरित करती है (बेटे, यह प्रेरणा भी हमेशा के लिए होती तो मुझे संतोष होता) लेकिन जब मैं उसे बताता हूँ की प्रभात फेरियों में तक़रीर करने के बाद हम मोहल्ले के कूड़े कचड़े साफ़ करते थे, रात में पढने से पहले सुबह खेतों में कुदाल चला कर उगाये हुए लाल साग मण्डी में बेचकर बचाए हुए पैसे (पैसों नहीं, तब यह विकसित भारत इतना मंहगा कहाँ था) से किरासन तेल खरीदने से लेकर लालटेन साफ़ करने तक का सफ़र उसे प्रेरित नहीं कर पाते...
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05-08-2013, 07:48 PM | #5 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
आज बिस्तर से उठ कर रिमोट खोजने में वो खीझ जाता है. हमेशा झल्लाए हुए बात करता है. दुनिया कितनी आगे चली गयी है ? ऐसा क्या है जो वो (वो ही क्यों) लोग या दुनिया आखिर ऐसा क्या कर रही है जो यह हालत है ? ऐसा क्या है, क्या घट रहा है जो मैं नहीं समझ पा रहा हूँ ?
पिछले कुछ बरस से लगातार मैंने खुद को "ज़माना बदल गया है' जैसे यथार्थ पूर्ण वाक्य दोहराकर इस बदली दुनिया से तालमेल बिठाने का प्रयास कर रहा हूँ... लेकिन सफल नहीं हो पा रहा. हम (मैं और मेरी पत्नी) दोनों एक दूसरे को दिन में सात से आठ बार याद दिलाना नहीं भूलते की दुनिया बदल चुकी है और तुम्हारी मानसिकता से यह नहीं चलेगी.
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05-08-2013, 07:49 PM | #6 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
लेकिन हर बार यही लगता है यह लाइन हमारी बातचीत का निष्कर्ष भर है और जो पहले बोल दे वो जीत जाएगा. घर के लोग कहते हैं हम दोनों बच्चों से लड़ते हैं जबकि हम परिपक्व बहस करना चाहते हैं. अपने बच्चों के मुंह के अपने को बच्चा सुनना क्या कम अपमानजनक है? दिखने में भले हम किसी होम स्वीट होम में नहीं रहते हों लेकिन गाहे बगाहे घर के लोग अपमान का एहसास दिला ही देते हैं. साहित्य में झंडे गाड़ने वाली मेरी बेटी अक्सर मेरा हाथ सूंघ कर कहती है बाबा आपका हाथ चूल्हे से उठते धुंए सा महकता है. ऐसी कमाल की उपमाएं देने वाले नस्ल (जिनको दुनिया हैरत की नज़र से देखती है) साक्षात्कार के दौरान अपनी ओबजर्वेशन को महान बताती है जबकि उसकी कई कहानियों, जुमलों, शब्दों के प्रेरणाश्रोत हमीं रहे हैं लेकिन तब हमें परदे के पीछे धकेल दिया जाता है... आजकल भावुकता भी अति सम्मान देने पर ही उभरती है जैसे मेरी बेटी रेड कारपेट पर भावुक हो जाती है और मेरा बेटा अपने बेटे को एयर कंडीशंड स्कूल में दाखिल करा कर... उपरोक्त बातें जब मैं अपनी पत्नी से कहता हूँ तो उसके जवाब में वो अपने घिसे - टूटे दाँतों के बल जोर लगा कर कहती है "तुम भी बदल रहे हो, अब क्रेडिट लेने की चाह तुममे भी आ रही है" मैं उसे समझाना चाहता हूँ कि नहीं ऐसा नहीं है, मेरी बातों को समझने की... (लेकिन) ... "सचमुच ज़माना बदल रहा है" ========
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17-08-2013, 02:12 PM | #7 | |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
Quote:
इस प्रभावशाली कहानी की प्रस्तुति के लिए आपका आभारी हूँ, जय जी. कहानी ने मुझे उपन्यासकार गुरुदत्त जी के 7-8 खंडों में लिखे हुये उपन्यास "ज़माना बदल गया" की फिर से याद दिला दी. |
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17-08-2013, 08:05 PM | #8 |
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Re: उम्र की अंतिम किश्त .........
लेख की उत्कृष्ट समीक्षा के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन है बन्धु रजनीश।
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