14-09-2013, 11:48 PM | #41 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
Whether at Naishapur or Babylon, Whether the Cup with sweet or bitter run, The Wine of Life keeps oozing drop by drop, The Leaves of Life keep falling one by one. शायद उसी रुबाई का अनुवाद एडवर्ड विनफील्ड द्वारा ऐसे किया गया: When life is spent, what’s Balkh or Nishapore? What sweet or bitter, when the cup runs o’er? Come drink! full many a moon will wax and wane In times to come, when we are here no more. |
14-09-2013, 11:50 PM | #42 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
आर्थर टालबोट जिनकी किताब 1908 में प्रकाशित हुई. उसी रुबाई का अनुवाद:
Who cares for Balkh or Baghdad? Life is fleet; And what though bitter be the cup, or sweet, So it be full? This moon, when we are gone, The circling months will day by day repeat. रिचर्ड ब्रॉडी की किताब 2001 में आयी. इस किताब की एक रुबाई इस प्रकार हैं: If People one safe happy Zenith know, Or trapped by Hell with Woe in Terror be; Ah, the bubbly River of our fleeting Weeks Doth flow unceasing there into the Sea. |
14-09-2013, 11:52 PM | #43 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
रुबाइयों के हिन्दी अनुवाद
अन्य भाषाओं की तरह हिन्दी में भी रुबाइयों के कई अनुवाद हुए. जिनमें कुछ अनुवाद डॉ. हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला” के पहले के हैं और कुछ बाद के. बच्चन जी की “मधुशाला”1935 में छ्पी थी. यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि यह बच्चन जी की स्वतंत्र रुबाइयाँ हैं जिस पर उमर खय्याम का प्रभाव अवश्य रहा. बच्चन जी ने स्वयं भी खय्याम की चुनी हुई रुबाइयों का अनुवाद छपवाया था. हिन्दी में सबसे पहला अनुवाद शायदपंडित सूर्यनाथ तकरूद्वारा किया गया था. 1931 मेंपंडित गिरिधर शर्मा नवरत्नने भी रुबाइयों का अनुवाद किया, जो नवरत्न-सरस्वती भवन, झालरापाटन से छ्पा था. पंडित जी ने रुबाइयों का संस्कृत अनुवाद भी किया जो 1933 में छ्पा था. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तने सन 1931 में उमरखैयाम की रुबाइयों का अनुवाद किया था. यह पुस्तकरुबाईयात उमर खय्यामके नाम से कानपुर के प्रकाश पुस्तकालय से प्रकाशित हुई थी. इस किताब को भी मैने ढूंढने की कोशिश की लेकिन नहीं मिली. कानपुर में माल रोड में पहले एक दुकान हुआ करती थी जहां हिन्दी की अधिकतर किताबें मिल जाया करती थी. वहां इस किताब के बारे में पता करने पर मालूम हुआ कि ये आउट ऑफ प्रिंट है लेकिन इसको जल्दी ही छपवाया जायेगा. ये बात आज से करीब 12-13 साल पहले की है. पता नहीं कि ये दुबारा छपी या नहीं. 1932 के आसपासपंडित केशव प्रसाद पाठकका हिन्दी अनुवाद आया. ये इंडियन प्रेस लिमिटेड, जबलपुर छपा था. 1932 में हीपंडित बलदेव प्रसाद मिश्रका अनुवाद प्रकाशित हुआ, जो मेहता पब्लिशिंग हाउस, सूत टोला, काशी से छ्पा था. हिन्दी साहित्य भंडार, पटना से 1933 मेंडॉक्टर गया प्रसाद गुप्तका अनुवाद भी छ्पा. |
14-09-2013, 11:53 PM | #44 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
इसके अलावामुंशी इक़बाल वर्मा ‘सेहर’ ने रुबाइयों का अनुवाद किया जो इंडियन प्रेस,प्रयाग से छ्पा. ये अनुवाद मूल फारसी से किया गया था. लखनऊ केपं. ब्रजमोहन तिवारीके अनुवाद भी कुछ पत्रिकाओं में छ्पे थे. 1940 में अल्मोड़ा के तारा दत्त पांडे ने भी रुबाइयों का कुमांउनी में अनुवाद प्रकाशित किया. बाद मेंचारु चन्द्र पांडेने इस पुस्तक का कुमाउंनी से हिन्दी में अनुवाद किया.
1938 मेंश्रीयुत रघुवंश लाल गुप्तका अनुवाद, किताबिस्तान, प्रयाग से प्रकाशित हुआ. 1939 में जोधपुर केश्रीयुत किशोरीरमण टंडनने भी एक अनुवाद किया.पंडित जगदम्बा प्रसाद ‘हितैषी’ ने बहुत दिनों से रुबाइयात उमर खैयाम के ऊपर काम किया और उनकी पुस्तक का नाम शायद ‘मधुमन्दिर’ था. 1948 में भारती भंडार,प्रयाग द्वारासुमित्रानंदन पंतका अनुवाद प्रकाशित हुआ.जो “मधुज्वाल” के नाम से प्रकाशित हुआ था. *** |
15-09-2013, 05:44 PM | #45 |
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
सर से उप्पर है भाई ये बातें तो
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