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![]() ग्रामीण रुक गये। राइफल हाथ में पकड़े हुए हाजी मुराद ने नदी की ओर उतरना प्रारंभ कर दिया। घुड़सवारों ने दूरी बनाए हुए उसका पीछा किया। जब हाजी मुराद नदी पार करके दूसरी ओर पहुँच गया, घुड़सवार इस प्रकार चीखे जिससे वे जो कहना चाहते थे उसे हाजी मुराद सुन सके। हाजी मुराद ने उत्तर में राइफल से फायर किया और घोड़े को सरपट दौड़ा दिया। जब वह रुका तब न किसी के पीछा करने की आवाज थी, न मुर्गों की बांग, केवल जंगल के मध्य पानी की स्पष्ट कलकल ध्वनि थी और कभी-कभी उल्लू चीख उठता था। यह वही जंगल था जहाँ उसके आदमी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। जब वह जंगल में पहुँच गया, हाजी मुराद रुका, गहरी सांसों से फेफड़ों को भरा, सीटी बजायी और इसके बाद उत्तर सुनने के लिए रुका रहा। एक मिनट बाद ही उसे जंगल से उसी प्रकार की सीटी सुनाई दी। हाजी मुराद ने सड़क से मुड़कर जंगल में प्रवेश किया। सौ गज जाने के बाद पेड़ों के तनों के बीच से आग की चमक और उस आग के चारों ओर बैठे लोगों की छायाएं, और साथ ही हल्की रोशनी में अभी भी काठी कसा लड़खड़ाता हुआ एक घोड़ा उसे दिखाई पड़े। आग के पास चार आदमी बैठे थे। उनमें से एक आदमी तेजी से उठ खड़ा हुआ, हाजी मुराद के पास आया और उसके घोड़े की लगाम और रकाब थाम ली। वह हाजी मुराद का हमशीर (सहोदर) था जो उसके क्वार्टर मास्टर के रूप में काम करता था। |
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#32 |
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‘‘आग बुझा दो।“ घोड़े से उतरते हुए हाजी मुराद ने कहा। दूसरे लोगों ने आग को छितराना शुरू कर दिया और जलती लकडि़यों को रौदनें लगे।
‘‘तुमने बाटा को देखा है ?” जमीन पर बिछे हुए चादर की ओर बढ़ते हुए हाजी मुराद ने पूछा। ‘‘हाँ, कुछ देर पहले ही वह खान महोमा के साथ गया था।” ‘‘वे लोग किस रास्ते गये ?” ‘‘इस रास्ते।” हाजी मुराद जिस रास्ते से आया था, उसके विपरीत रास्ते की ओर इशारा करते हुए हनेफी ने उत्तर दिया। ‘‘ अच्छा ” हाजी मुराद बोला। उसने अपनी राइफल उतारी और उसे लोड किया। ‘‘हमें सतर्क रहना चाहिए। मेरा पीछा किया जा रहा था,” उसने उस व्यक्ति से कहा जो आग बुझा रहा था। यह हमज़ालो था, एक चेचेन। हमज़ालो चादर के पास आया, राइफल को उसके खोल में रखा और चुपचाप जंगल में उस खुले स्थान के किनारे की ओर गया जिधर से हाजी मुराद आया था। एल्दार घोड़े से उतरा, उसने हाजी मुराद के घोड़े को पकड़ा और दोनों घोड़ों की लगामें पेड़ से इस प्रकार बांध दीं कि घोड़ों के सिर ऊपर उठे रहें। फिर हमज़ालो की भांति कंधे पर अपनी राइफल लटकाकर वह जंगल के दूसरे किनारे पर जा खड़ा हुआ। आग बुझ चुकी थी। जंगल पहले जैसा अंधकारमय प्रतीत नहीं हो रहा था। तारे यद्यपि क्षीण हो चुके थे तथापि आकाश में दिखाई दे रहे थे। |
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#33 |
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हाजी मुराद ने तारों पर दृष्टि डाली और यह देखकर कि सप्तर्षि-मण्डल ने आधी दूरी तय कर ली है, उसने अनुमान लगाया कि आधी रात बीत चुकी थी और रात्रि की नमाज का समय हो गया था। उसने हनेफी से जग मांगा, जिसे वह पिट्ठू बैग में लेकर सदैव चलता था। उसने अपनी चादर ली और नदी किनारे गया। जूते उतारकर हाजी मुराद ने जब वु़जू समाप्त कर लिया तब वह चादर तक नंगे पाँव चलकर आया, पिण्डलियों के बल उस पर उकंड़ू बैठा, उंगलियों से कान बंद किये, आँखें मूंदी और पूरब की ओर मुड़कर रिवाज के अनुसार सस्वर नमाज अदा करने लगा।
जब उसने नमाज समाप्त कर ली, वह उस स्थान पर लौट आया जहाँ उसने पिट्ठू बैग छोड़ा था। चादर पर बैठकर उसने घुटनों पर हाथ रखे और सिर झुकाकर सोचने लगा। हाजी मुराद सदैव अपनी किस्मत पर यकीन करता था। वह जो भी योजना बनाता, कार्य प्रारंभ करने से पहले ही उसकी सफलता के विषय में आश्वस्त हो लेता था… और सब कुछ भलीभांति सम्पन्न भी होता रहा था। उसके सम्पूर्ण तूफानी यौद्धिक जीवन ने, कुछ अपवादों को छोड़कर, यह सिद्ध भी कर दिया था। इसलिए, उसे विश्वास था, कि अब भी वैसा ही होगा। उसने कल्पना की कि वोरोन्त्सोव द्वारा भेजी गयी सेना के सहयोग से वह शमील पर हमला करेगा, उसे पकड़कर अपना इंतकाम लेगा; जार उसे इनामयाफ़्ता करेगा और वह न केवल अवारिया में, बल्कि सम्पूर्ण चेचेन्या में जो उसकी अधीनता स्वीकार कर लेगी, शासन करेगा। |
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यही सब सोचते हुए वह सो गया और उसने स्वप्न देखा कि ‘हाजी मुराद‘ कहकर गाते और चिल्लाते अपने योद्धाओं के साथ वह शमील पर आक्रमण कर रहा था। उसने उसे और उसकी पत्नियों को कैद कर लिया था और उसकी पत्नियों का रुदन और क्रन्दन सुन रहा था। अचानक वह उठ बैठा ‘अल्लाह’ का आलाप, ‘हाजी मुराद’ का शोर और शमील की पत्नियों का क्रन्दन वास्तव में गीदड़ों की हुहुआहट और उनकी हंसी थी, जिसने उसे जगा दिया था। हाजी मुराद ने सिर ऊपर उठाया, आकाश की ओर देखा, जिस पर पेड़ों के पार पूरब की ओर रोशनी फैल रही थी और कुछ दूर बैठे मुरीद से उसने पूछा कि क्या खान महोमा लौट आया। यह सुनने के बाद कि वह अभी तक नहीं लौटा था, हाजी मुराद ने सिर नीचे झुका लिया और पुन: सोने की कोशिश करने लगा।
वह खान महोमा की बश्शाश ( उत्फुल्ल ) आवाज से जाग गया, जो बाटा के साथ अपने मिशन से वापस लौट आया था। खान महोमा तुरंत हाजी मुराद के बगल में बैठ गया और बताने लगा कि किस प्रकार सैनिक उनसे मिले और उन्हें लेकर प्रिन्स के पास गये, और उसने प्रिन्स से बात की। उसने उसे बताया कि प्रिन्स कितना प्रसन्न थे, और कैसे उन्होंने मिशिको के बाहर शाला जंगल में जहाँ रूसी सैनिक जंगल की सफाई कर रहे थे, सुबह के समय उनसे मिलने का वायदा किया था। बाटा ने अपने साथी को रोका और विस्तार से बताने लगा। |
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हाजी मुराद ने उनसे पूछा कि रूसियों की ओर जाने के उसके प्रस्ताव पर वोरोन्त्सोव ने उत्तर में ठीक क्या शब्द प्रयोग किये थे। खान महोमा और बाटा ने एक स्वर में उत्तर दिया कि प्रिन्स ने हाजी मुराद का एक मेहमान की तरह इस्तकबाल (स्वागत) करने और अच्छी तरह देखभाल किये जाने का ध्यान रखने का वायदा किया था। हाजी मुराद ने उनसे रास्ता पूछा, और जब खान महोमा ने उसे आश्वस्त किया कि वह अच्छी तरह रास्ता जानता है और वह उसे सीधे वहीं ले जायेगा तब हाजी मुराद ने अपना पर्स निकाला और वायदे के मुताबिक बाटा को तीन रूबल दिए। उसने अपने आदमियों को उसके पिट्ठू बैग से स्वर्ण जड़ित पिस्तौल, फर की टोपी और पगड़ी बाहर निकाल लाने का आदेश दिया और मुरीदों से कहा कि रूसियों के सामने अच्छा दिखने के लिए वे अपने को साज-संवार लें। जब वे लोग हथियार, काठी, उपकरण और घोड़ों की साफ-सफाई कर रहे थे, तारे फीके पड़ चुके थे, आकाश में पर्याप्त प्रकाश फैल चुका था और सुबह की सुहानी हवा बहने लगी थी।
(समाप्त) (साभार/ रेडिओ रूस पत्रिका/ अनुवाद – रूपसिंह चन्देल) |
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