28-10-2013, 12:42 PM | #1 |
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हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं !!
इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं.. निगाह-ए-दिल की येही आखिरी तमन्ना है.. तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये मे शाम करता चलूं.. हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं.. उन्हे येह ज़िद है कि मुझे देखकर किसी और को ना देख.. मेरा येह शौक, कि सबसे कलाम करता चलूं.. इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं.. ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं, सही.. अब आ गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं.. हज़ूर आपका भी एह्तराम करता चलूं.. इधर से गुज़रा था.. सोचा सलाम करता चलूं.. # Lyricist: Shadaab # One of the Gazal from Jagjit Singh |
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