06-12-2013, 07:02 PM | #1 |
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फिल्मों के नाम वाली कथा
(बॉलीवुड स्पैशल) ‘थ्री इडियट्स’ जिनके नाम थे ‘अमर अकबर एंथोनी’ और उनकी बहन ‘बॉबी’ को ‘लगान’ न दे सकने के कारण ‘बैंडिट क्वीन’ ने बंदी बना रखा था. एक रात ये चारों ‘चुपके चुपके’ ‘ज़ंजीर’ तोड़ कर और ‘दीवार’ फांद कर भाग गये. भागते भागते उन्हें ‘दो रास्ते’ मिले. वो बहुत कंफ्यूज़ हुये. तभी एक ‘गाइड’ मिला जिसने उन्हें बताया कि पहला रास्ता तो है ‘अग्निपथ’ और दूसरा रास्ता जाता है ‘बॉम्बे’. उन चारों ने ‘किस्मत’ की बात नहीं सुनी और जो ‘दिल चाहता है’ वही किया. आगे बढ़े ही थे कि एक ‘अछूत कन्या’ ने उन्हें छू लिया. इसके बाद ही जोर की ‘आंधी’ चलने लगी, ‘बरसात’ होने लगी, ‘शोले’ उठने लगे और हर तरफ ऐसा ‘ग़दर’ मच गया कि वो चारों ‘कागज़ के फूल’ की तरह ‘ठोकर’ खा कर घायल हो गये. ‘वक्त’ ने उनके साथ ये कैसा ‘गोलमाल’ किया. इसकी ‘हकीकत’ उन्हें समझ नहीं आई. जिस ‘दो बीघा जमीन’ पर ये सब हुआ, अचानक वहां बड़ा ‘खोसला का घोंसला’ बन गया. ‘दुनिया ना माने’ लेकिन उन्होंने मान लिया कि इस ‘अर्थ’ का अनर्थ रोकने के लिए कुछ करना होगा. उन्होंने घबरा कर तुरंत ‘आराधना’ शुरू कर दी और जोर से बोले ‘हरे रामा हरे कृष्णा’. उनकी आवाज़ सुन कर कृष्णा तो नहीं आये लेकिन ‘दो आँखें बारह हाथ’ वाली ‘मदर इंडिया’ जरूर प्रगट हुई. उन्होंने इस घटना का ‘अर्धसत्य’ नहीं, बल्कि पूरा ‘सत्य’ जानना चाहा. ‘मां’ ने बताया कि इन सब के पीछे उनके बेटे ‘मि. इंडिया’ का हाथ है. यह सुन कर उन चारों का थका हारा ‘प्यासा’ व ‘मासूम’ चेहरा गुस्से से ‘ब्लैक’ हो गया. उस मां ने उन्हें ‘रोटी कपड़ा और मकान’ ऑफर किया. इस ‘उपकार’ के लिए उन्होंने मां को धन्यवाद दिया और भागते हुए मकान की ‘तीसरी मंजिल’ पर पहुंचे, क्योंकि पहली मंजिल पर उमराव जान और दूसरी मंजिल पर 'श्री 420' रहते थे. |
06-12-2013, 07:04 PM | #2 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
वहाँ पहुँच कर उन्होंने ‘पड़ोसन’ का दरवाज़ा खटखटा कर टॉयलेट का ‘दाग़’ साफ़ करने वाला ‘तेज़ाब’ मांगा. तभी पड़ोसन के पीछे से ‘कर्ज़’ में डूबा उसका ‘बेवफा’ पति ‘देवदास’ आ गया और ‘तानसेन’ बन कर गाने लगा - कभी कभी मेरी गली आया करो-. चारों सर पकड़ कर भागे और ‘भूत बंगला’ पहुंचे. वे भूखे प्यासे थे. उन्होंने चौकीदार से, जो ‘डिस्को डांसर’ भी था, को ‘चक दे इंडिया’ ढाबे में भेज कर खाना मंगवाया और खा पी कर सो गये. अगले दिन वे ‘आनंद’ में भरे हुए ‘बाजार’ और ‘मंडी’ से हो कर ‘महल’ की ओर जाने लगे. तभी किसी ने कहा ‘जागते रहो’. चारों ने छत पर जा कर देखा तो पाया कि ‘मुग़ल-ए-आज़म’ ‘पाकीज़ा’ के आसपास ‘जुगनू’ जैसे मंडरा रहे थे. वो ‘क़यामत से क़यामत तक’ का गाना गा रहे थे. यह देख कर अकबर गुस्से में भर कर ‘बैजू बावरा’ सा बन गया और जोर जोर से बोलने लगा और उन दोनों के ‘अमर प्रेम’ को ‘द डर्टी पिक्चर’ बताने लगा. जहाँपनाह भड़क गये और उसके पीछे ‘दौड़’ पड़े. वो चारों टैक्सी में ‘नौ दो ग्यारह’ हो गये. शराबी ‘टैक्सी ड्राईवर’ ने उन्हें ‘डॉन’ के ‘घर संसार’ में पहुंचा दिया. वहां डॉन की जंगली बिल्ली टीवी पर ‘आलम आरा’ देख रही थी.
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06-12-2013, 07:08 PM | #3 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
उन्हें पता चला कि डॉन ही ‘ज्वेल थीफ़’ था. वे खिसकने ही वाले थे कि डॉन की सेक्रेटरी ‘मधुमती’ ने उन्हें पकड़ लिया और डॉन के सामने ले आई. ‘बातों बातों में’ डॉन ने पूछ लिया ‘हम आपके हैं कौन’ !! तो उन्होंने खुद को ‘आवारा’ बताया. तब डॉन ने अपने रसोइयों ‘राम और श्याम’ को इन चारों के लिए लंच लगाने को कहा. उन्होंने कहा कि उनका ‘रोजा’ चल रहा है. सो इन चारों ने खाने से मना कर दिया. डॉन को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ. उसने बॉबी को ‘बंदिनी’ बना लिया. उसे बचाने के लिए ये तीनों ‘जॉनी मेरा नाम’ और मुन्ना भाई mbbs की शरण में गये. उन दोनों ने कहा कि ‘हम दोनो’ तुम्हें ‘मुकद्दर का सिकंदर’ बनायेंगे. डॉन की ‘कैद’ से छुड़ायेंगे. जैसा उन्होंने कहा वैसा ही हुआ. डॉन को ‘जोकर’ बना कर वो चारों ‘चाँदनी’ में ‘विक्टोरिया नं. 203’ में बैठ कर चले गये. ‘चश्मेबद्दूर’, ऐसे ‘लम्हे’ पर किसी की नज़र न लगे.
लेकिन नज़र तो लगनी ही थी. विक्टोरिया के मालिक ने पुलिस में शिकायत की. वे पकड़े गये. उन्होंने पुलिस वालों से कहा ‘जाने भी दो यारों’. ‘दबंग’ थानेदार का ‘अंदाज़’ निराला था. पूरी घटना का ‘सारांश’ सुन कर उसके मन में ‘रंग दे बसंती’ का शीर्षक गीत गूँज उठा. और उसने उन्हें छोड़ दिया. बाहर आने पर एंथोनी की नज़र ‘साहिब, बीवी और गुलाम’ पर पड़ी. वह बोला मेरे दिल में ‘कुछ कुछ होता है’. सबके पूछने पर उसने बताया यह मेरी लम्बी ‘लव स्टोरी’ की ‘पहेली’ है. इसकी बेटी से ‘मैंने प्यार किया’ था. ‘जब वी मैट’ तो हमें एहसास हुआ कि हम ‘इक दूजे के लिए’ बने थे. लेकिन इसी साहिब ने हमारा ‘मिलन’ नहीं होने दिया. उस वक़्त मेरे ‘तारे ज़मीन पर’ थे. लेकिन अब मैं ‘ललकार’ कर कहता हूँ कि ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे’. यह सुनते ही अमर और अकबर जिनका ‘अंदाज़ अपना अपना’ था चुनौती स्वीकार कर के एक ‘नया दौर’ लाने निकल पड़े साहब के ‘घर’ की ओर. मक़सद था एंथोनी को उसका प्यार दिलवाना. लेकिन ‘अनहोनी’ वहां इनका इंतज़ार कर रही थी बैंडिट क्वीन के रूप में. वो फिर से पकड़ लिए गये. (हिन्दुस्तान टाइम्स में छपे विवरण से प्रेरित) |
07-12-2013, 09:41 AM | #4 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
Mast hai boos rap
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
07-12-2013, 07:44 PM | #5 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
badiyaa
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08-12-2013, 04:23 PM | #6 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
यह तो दो और दो पांच हें.........
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09-12-2013, 06:26 AM | #7 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
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09-12-2013, 07:14 AM | #8 |
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Re: फिल्मों के नाम वाली कथा
मस्त, बहुत खूब.......
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