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Old 21-12-2013, 03:24 PM   #1
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

इस बार मैं यहां किसी मुहावरे से जुड़ी कहानी नहीं दे रहा बल्कि एक कविता दे रहा हूँ जिसमे मुहावरों का बड़ा मनोहारी उपयोग किया गया है. मुझे विश्वास है कि इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही, मुहावरों को याद रखने में भी मदद मिलेगी. यह निम्न प्रकार से है:

मुहावरों की ग़ज़ल
(साभार: विकिसौर्स)

तिलक लगाये माला पहने भेस बनाये बैठे हैं, तपसी की मुद्रा में बगुले घात लगाये बैठे हैं.
घर का जोगी हुआ जोगिया आन गाँव का सिद्ध हुआ, भैंस खड़ी पगुराय रही वे बीन बजाये बैठे हैं.

नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज करने को निकली है, सभी मियाँ मिट्ठू उसका आदाब बजाये बैठे हैं.
घर की इज्जत गिरवीं रखकर विश्व बैंक के लॉकर में, बड़े मजे से खुद को साहूकार बताये बैठे हैं.

उग्रवाद के आगे इनकी बनियों वाली भाषा है, अबकी मार बताऊँ तुझको ईंट उठाये बैठे हैं.
जब से इनका भेद खुला है खीस काढ़नी भूल गये, शीश उठाने वाले अपना मुँह लटकाये बैठे हैं.

मुँह में राम बगल में छूरी लिये बेधड़क घूम रहे, आस्तीन में साँप सरीखे फ़न फैलाये बैठे हैं.
विष रस भरे कनक घट जैसे चिकने चुपड़े चेहरे हैं, बोकर पेड़ बबूल आम की आस लगाये बैठे हैं.

नये मुसलमाँ बने तभी तो डेढ़ ईंट की मस्जिद में, अल्लाह अल्लाह कर खुद को ईमाम बताये बैठे हैं.
दाल भले ही गले न फिर भी लिये काठ की हाँडी को, ये चुनाव के चूल्हे पर कब से लटकाये बैठे हैं.

मुँह में इनके दाँत नहीं हैं और पेट में आँत नहीं, कुड़ी देखकर मेक अप से चेहरा चमकाये बैठे हैं.
खम्भा नोच न पाये तो ये जाने क्या कर डालेंगे, टी०वी० चैनेल पर बिल्ली जैसे खिसियाये बैठे हैं.

अपनी-अपनी ढपली पर ये अपना राग अलाप रहे, गधे ऊँट की शादी में ज्यों साज सजाये बैठे हैं.
पहन भेड़ की खाल भेड़िये छुरा पीठ में घोपेंगे, रंगे सियारों जैसे गिरगिट सब जाल बिछाये बैठे है.

एक-दूसरे की करके तारीफ़ बड़े खुश हैं दोनों, क्या पाया है रूप! आप क्या सुर में गाये बैठे हैं!
टका सेर में धर्म बिक रहा टका सेर ईमान यहाँ, चौपट राजा नगरी में अन्धेर मचाये बैठे हैं.

बड़े मियाँ तो बड़े मियाँ थे छोटे मियाँ सुभान अल्ला, पैरों तले जमीन नहीं आकाश उठाये बैठे हैं.
अश्वमेध के घोड़े सा रानी का बेलन घूम रहा, शेर कर रहे "हुआ हुआ" गीदड़ झल्लाये बैठे हैं.

मुँह सी लेते हैं अपना जब मोहरें लूटी जायें तो, छाप कोयलों पर पड़ती तो गाल फुलाये बैठे हैं.
'क्रान्त' इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे, यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.

Last edited by rajnish manga; 21-12-2013 at 03:30 PM.
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Old 21-12-2013, 04:34 PM   #2
Dr.Shree Vijay
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Thumbs up Re: मुहावरों की कहानी

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Originally Posted by rajnish manga View Post
इस बार मैं यहां किसी मुहावरे से जुड़ी कहानी नहीं दे रहा बल्कि एक कविता दे रहा हूँ जिसमे मुहावरों का बड़ा मनोहारी उपयोग किया गया है. मुझे विश्वास है कि इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही, मुहावरों को याद रखने में भी मदद मिलेगी. यह निम्न प्रकार से है:

मुहावरों की ग़ज़ल
(साभार: विकिसौर्स)

मुँह सी लेते हैं अपना जब मोहरें लूटी जायें तो, छाप कोयलों पर पड़ती तो गाल फुलाये बैठे हैं.
'क्रान्त' इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे, यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.


अतिउत्तम और सरलतम.........

क्रान्त इन अन्धों के आगे रोये तो दीदे खोओगे,
यहाँ हंस कौओं के आगे शीश झुकाये बैठे हैं.......
__________________


*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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Old 22-12-2013, 09:33 AM   #3
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

किस्सा हूर और लंगूर का
(वाया गली मुहावरों वाली)

आप जितने भी जोड़े देखते होंगे उनमें से 95 प्रतिशत बेमेल ही मिलेंगे। पता नहीं क्या जादू है कि हमेशा हूर लंगूर के हाथों ही आ फँसती है। हमारे हाथ में भी आखिरकार एक हूर लग ही गई थी, आज से छत्तीस साल पहले।

जब शादी नहीं हुई थी हमारी तो बड़े मजे में थे हम।अपनी नींद सोते थे और अपनी नींद जागते थे।न ऊधो का लेना था न माधो का देना। हमारा तो सिद्धान्त ही थाआई मौज फकीर की, दिया झोपड़ा फूँक। याने कि अपने बारे में हम इतना ही बता सकते हैं किआगे नाथ न पीछे पगहा। किसी केतीन-पाँच में कभी रहते ही नहीं थेहम।बसअपने काम से काम रखते थे। हमारे लिये सभी लोग भले थे क्योंकि आप तो जानते ही हैं किआप भला तो जग भला।

पर थे एक नंबर के लंगूर हम। पर पता नहीं क्या देखकर एक हूर हम पर फिदा हो गई। शायद उसने हमारी शक्ल पर ध्यान न देकर हमारी अक्ल को परखा रहा होगा और हमेंअक्ल का अंधापाकर हम पर फिदा हो गई रही होगी। या फिर शायद उसने हमेंअंधों में काना राजासमझ लिया होगा। या सोच रखा होगा कि शादी उसी से करो जिसे जिन्दगी भर मुठ्ठी में रख सको।

बस फिर क्या था उस हूर ने झटपट हमारी बहन से दोस्ती गाँठ ली और रोज हमारे घर आने लगी। अच्छी मति चाहो, बूढ़े पूछन जाओ वाले अन्दाज में हमारी दादी माँ को रिझा लिया। हमारे माँ-बाबूजी की लाडली बन गई। इधर ये सब कुछ हो रहा था और हमें पता ही नहीं था कि अन्दर ही अन्दर क्या खिचड़ी पक रही है

इतना होने पर भी जब उसे लगा किदिल्ली अभी दूर हैतो धीरे से हमारे पास आना शुरू कर दिया पढ़ाई के बहाने। किस्मत का फेर, हम भी चक्कर में फँसते चले गये। कुछ ही दिनों मेंआग और घी का मेलहो गया। आखिरएक हाथ से ताली तो बजती नहीं। हम भी ओखली में सर दिया तो मूसलो से क्या डरनाके अन्दाज में आ गये। उस समय हमें क्या पता था किअकल बड़ी या भैंस। गधा पचीसी के उस उम्र में तो हमेंसावन के अंधे के जैसा हरा ही हरा सूझता था। अपनी किस्मत पर इतराते थे और सोचते थे किबिन माँगे मोती मिले माँगे मिले ना भीख

अबअपने किये का क्या इलाज? दुर्घटना घटनी थी सो घट गई। उसके साथ शादी हो गई हमारी। आज तक बन्द हैं हम उसकी मुठ्ठी में और भुगत रहे हैं उसको।अपने पाप को तो भोगना ही पड़ता है। ये तो बाद में समझ में आया किलंगूर के हाथ में हूरफँसती नहीं बल्कि हूर ही लंगूर को फाँस लेती हैं। कई बार पछतावा भी होता है परअब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
(साभार: जी.के.अवधिया)
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Old 26-02-2014, 10:58 PM   #4
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Default Re: मुहावरों की कहानी

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Originally Posted by rajnish manga View Post
किस्सा हूर और लंगूर का
(वाया गली मुहावरों वाली)
ये वाला बेहतरीन है.………
__________________
घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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Old 02-03-2014, 09:39 AM   #5
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

कड़वा सच

एक फकीर कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया, ‘इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?’

सौदागर ने जवाब दिया, ‘इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं।फकीर ने पूछा, ‘अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं!सौदागर ने कहा, ‘यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।फकीर ने पूछा, ‘भला अत्याचार कौन खरीदेगा?’ सौदागर ने कहा, ‘इसके खरीदार हैं राजा-महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।

फकीर ने पूछा,इस दूसरी गठरी में क्या है?’ सौदागर बोला, ‘यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं पंडित और विद्वान। तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है।फकीर ने पूछा, ‘अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई?’ सौदागर ने कहा, ‘इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं।फकीर ने पूछा, ‘अंतिम गधे पर क्या लदा है?’ सौदागर ने जवाब दिया,इस गधे पर छल-कपट से भरी गठरी रखी है और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है जिनके पास घर में कोई काम-धंधा नहीं हैं और जो छल-कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं। वे ही इसकी खरीदार हैं।तभी महात्मा की नींद खुल गई। इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर मिल गया था।

(प्रस्तुति आभार: बेला गर्ग)

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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 02-03-2014, 09:44 AM   #6
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Default Re: मुहावरों की कहानी

पंचतंत्र से:
एक और एक ग्यारह

एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नहीं समझता था। बनगिरी में ही एक पेड़ पर एक चिड़िया व चिड़े का छोटा-सा सुखी संसार था। चिड़िया अंडों पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेड़ों को तोड़ता-मरोड़ता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिड़िया के घोंसले वाला पेड़ भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पड़ा।

चिड़िया और चिड़ा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिड़िया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोडवी आई। वह चिड़िया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिड़िया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली 'इस प्रकार ग़म में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।'

चिड़िया ने निराशा दिखाई 'हम छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?'

कठफोडवी ने समझाया 'एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।'

'कैसे?' चिड़िया ने पूछा।

'मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेनी चाहिए।' चिड़िया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया 'यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।'

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेंढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला 'आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।'

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला 'दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।'

>>>
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Old 02-03-2014, 09:46 AM   #7
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Default Re: मुहावरों की कहानी

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई, सब खुशी से उछल पड़े। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोड़फोड़ मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।
तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिड़िया कॄतज्ञ स्वर में मेंढक से बोली 'बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।'

मेंढक ने कहा 'आभार मानने की ज़रुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।'

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाड़ते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज़ की तलाश थी, पानी। मेंढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेंढक टर्राने लगे। मेंढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता था कि मेंढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पड़ा। टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।

जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेंढकों ने पूरा ज़ोर लगाकर टर्राना शुरू किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।
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