My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > New India > Knowledge Zone
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 09-01-2011, 07:08 AM   #21
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

सुन्दरलाल बहुगुणा


चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा का जन्म ९ जनवरी, सन १९२७ को देवों की भूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर हुआ। प्राथमिक शिक्षा के बाद वे लाहौर चले गए और वहीं से बी.ए. किए।

सन १९४९ में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद ये दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए तथा उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी किए। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया ।

अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल के सहयोग से इन्होंने सिलयारा में ही 'पर्वतीय नवजीवन मण्डल' की स्थापना भी की। सन १९७१ में शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे विश्वभर में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध हो गए।

बहुगुणा के 'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है-

Quote:
क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।
सुन्दरलाल बहुगुणा के अनुसार पेड़ों को काटने की अपेक्षा उन्हें लगाना अति महत्वपूर्ण है। बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड आफ नेचर नामक संस्था ने १९८० में इनको पुरस्कृत भी किया। इसके अलावा उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
पर्यावरण को स्थाई सम्पति माननेवाला यह महापुरुष आज 'पर्यावरण गाँधी' बन गया है।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:15 AM   #22
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

व्लाडिमिर लेनिन


ब्लादिमिर इलीइच लेनिन (1870-1924) रूस में बोल्शेविक क्रांति का नेता एवं रूस में साम्यवादी शासन का संस्थापक था।

ब्लादिमिर इलीइच लेनिन का जन्म सिंविर्स्क नामक स्थान में हुआ था और उसका वास्तविक नाम "उल्यानोव" था। उसका पिता विद्यालयों का निरीक्षक था जिसका झुकाव लोकतंत्रात्मक विचारों की ओर था। उसकी माता, जो एक चिकित्सक की पुत्री थी, सुशिक्षित महिला थी। सन् 1886 में पिता की मृत्यु हो जाने पर कई पुत्र पुत्रियों वाले बड़े परिवार का सारा बोझ लेनिन की माता पर पड़ा। ये भाई बहन प्रारंभ से ही क्रांतिवाद के अनुयायी बनते गए। बड़े भाई अलेग्जांदर को ज़ार की हत्या का षडयंत्र रचने में शरीक होने के आरोप में फाँसी दे दी गई।

उच्च सम्मान के साथ स्नातक बन चुकने पर लेनिन ने 1887 में कज़ान विश्वविद्यालय के विधि विभाग में प्रवेश किया किंतु शीघ्र ही विद्यार्थियों के क्रांतिकारी प्रदर्शन में हिस्सा लेने के कारण विश्वविद्यालय ने निष्कासित कर दिया गया। सन् 1889 में वह समारा चला गया जहाँ उसने स्थानीय माक्र्सवादियों की एक मंडली का संघटन किया। 1891 में सेंट पीटर्सबर्ग विश्वविद्यालय से विधि परीक्षा में उपाधि प्राप्त कर लेनिन ने समारा में ही वकालत करना आरभ कर दिया। 1893 में उसने सेंट पीटर्सबर्ग को अपना निवासस्थान बनाया। शीघ्र ही वह वहाँ के माक्र्सवादियों का बहुमान्य नेता बन गया। यहीं सुश्री क्रुप्सकाया से, जो श्रमिकों में क्रांति का प्रचार करने में संलग्न थी, उसका परिचय हुआ। इसके बाद लेनिन की क्रांतिकारी संघर्ष में जीवन पर्यंत उसका घनिष्ठ सहयोग प्राप्त होता रहा।

सन् 1895 में लेनिन बंदीगृह में डाल दिया गया और 1897 में तीन वर्ष के लिए पूर्वी साइबेरिया के एक स्थान को निर्वासित कर दिया गया। कुछ समय बाद क्रुप्सकाया को भी निर्वासित होकर वहाँ जाना पड़ा और अब लेनिन से उसका विवाह हो गया। निर्वासन में रहते समय लेनिन ने तीस पुस्तकें लिखीं, जिनमें से एक थी ""रूस में पूँजीवाद का विकास""। इसमें माक्र्सवादी सिद्धांतों के आधार पर रूस की आर्थिक उन्नति के विश्लेषण का प्रयत्न किया गया। यहीं उसने अपने मन में रूस के निर्धन श्रमिकों या सर्वहारा वर्ग का एक दल स्थापित करने की योजना बनाई।

सन् 1900 में निर्वासन से वापस आने पर एक समाचारपत्र स्थापित करने के उद्देश्य से उसने कई नगरों की यात्रा की। ग्रीष्म ऋतु में वह रूस के बाहर चला गया और वहीं से उसने "इस्क्रा" (चिनगारी) नामक समाचारपत्र का संपादन आरंभ किया। इसमें उसके साथ ""श्रमिकों की मुक्ति"" के लिए प्रयत्न करनेवाले वे रूसी माक्र्सवादी भी थे जिन्हें ज़ारशाही के अत्याचारों से उत्पीड़ित होकर देश के बाहर रहना पड़ रहा था। 1902 में उसने ""हमें क्या करना है"" शीर्षक पुस्तक तैयार की जिसमें इस बात पर जोर दिया कि क्रांति का नेतृत्व ऐसे अनुशासित दल के हाथ में होना चाहिए जिसका मुख्य कामकाज ही क्रांति के लिए उद्योग करना है। सन् 1903 में रूसी श्रमिकों के समाजवादी लोकतंत्र दल का दूसरा सम्मेलन हुआ। इसमें लेनिन तथा उसके समर्थकों को अवसरवादी तत्वों से कड़ा लोहा लेना पड़ा। अंत में क्रांतिकारी योजना के प्रस्ताव बहुमत से मंजूर हो गया और रूसी समाजवादी लोकतंत्र दल दो शाखाओं में विभक्त हो गया - क्रांति का वास्तविक समर्थक बोलशेविक समूह और अवसरवादी मेनशेविकों का गिरोह।


सन् 1905-07 में उसने रूस की प्रथम क्राति के समय जनसाधारण को उभाड़ने और लक्ष्य की ओर अग्रसर करने में बोलशेविकों के कार्य का निदेशन किया। अवसर मिलते ही नवंबर, 1905 में वह रूस लौट आया। सशस्त्र विद्रोह की तैयारी कराने तथा केंद्रीय समिति की गतिविधि का संचालन करने में उसने पूरी शक्ति से हाथ बँटाया और करखानों तथा मिलों में काम करनेवाले श्रमिकों की सभाओं में अनेक बार भाषण किया।
प्रथम रूसी क्रांति के विफल हो जाने पर लेनिन को फिर देश से बाहर चले जाना पड़ा। जनवरी, 1912 में सर्व रूसी दल का सम्मेलन प्राग में हुआ। लेनिन के निदेश से सम्मेलन ने क्रांतिकारी समाजवादी लोकतंत्र दल से मेनशेविकों को निकाल बाहर किया। इसके बाद लेनिन के क्रैको नामक स्थान में रहकर दल के पत्र "प्रावदा" का संचालन करने, उसके लिए लेख लिखने और चौथे राज्य ड्यूमा के बोलशेविक दल का निदेशन करने में अपने आपको लगाया।

सन् 1913-14 में लेनिन ने दो पुस्तकें लिखीं - "राष्ट्रीयता के प्रश्न पर समीक्षात्मक "विचार" तथा (राष्ट्रो का) आत्मनिर्णय करने का अधिकार।" पहली में उसने बूर्ज्वा लोगों के राष्ट्रवाद की तीव्र आलोचना की और श्रमिकों की अंतरराष्ट्रीयता के सिद्धांतों का समर्थन किया। दूसरी में उसने यह माँग की कि अपने भविष्य का निर्णय करने का राष्ट्रों का अधिकार मान लिया जाए। उसने इस बात पर बल दिया कि गुलामी से छुटकारा पाने का प्रयत्न करनेवाले देशों की सहायता की जाए।
प्रथम महासमर के दौरान लेनिन के नेतृत्व में रूसी साम्यवादियों ने सर्वहारा वर्ग की अंतरराष्ट्रीयता का, "साम्राज्यवादी" युद्ध के विरोध का, झंडा ऊपर उठाया। युद्धकाल में उसने माक्र्सवाद की दार्शनिक विचारधारा को और आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया। उसने अपनी पुस्तक "साम्राज्यवाद" (1916) में साम्राज्यवाद का विश्लेषण करते हुए बतलाया कि यह पूँजीवाद के विकास की चरम और आखिरी मंजिल है। उसने उन परिस्थितियों पर भी प्रकाश डाला जो साम्राज्यवाद के विनाश के अनिवार्य बना देती हैं। उसने यह स्पष्ट कर दिया कि साम्राज्यवाद के युग में पूँजीवाद के आर्थिक एवं राजनीतिक विकास की गति सब देशों में एक सी नहीं होती। इसी आधार पर उसने यह निष्पत्ति निकाली कि शुरू शुरू में समाजवाद की विजय पृथक् रूप से केवल दो तीन, या मात्र एक ही, पूँजीवादी देश में संभव है। इसका प्रतिपादन उसने अपनी दो पुस्तकों में किया - "दि यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ यूरोप स्लोगन" (1915) तथा "दि वार प्रोग्राम ऑफ दि पोलिटिकल रिवाल्यूशन" (1916)।

महासमर के समय लेनिन ने स्विटजरलैंड में अपना निवास बनाया। कठिनाइयों के बावजूद अपने दल के लोगों का संघटन और एकसूत्रीकरण जारी रखा, रूस में स्थित दल की संस्थाओं से पुन: संपर्क स्थापित कर लिया तथा और भी अधिक उत्साह एवं साहस के साथ उनके कार्य का निदेशन किया। फरवरी-मार्च, 1917 में रूस में क्रांति का आरंभ होने पर वह रूस लौट आया। उसने क्रांति की व्यापक तैयारियों का संचालन किया और श्रमिकों तथा सैनिकों की बहुसंख्यक सभाओं में भाषण कर उनकी राजनीतिक चेतना बढ़ाने और संतुष्ट करने का प्रयत्न किया।

जुलाई, 1917 में क्रांतिविरोधियों के हाथ में सत्ता चली जाने पर बोलशेविक दल ने अपने नेता के अज्ञातवास की व्यवस्था की। इसी सम उसने "दि स्टेट ऐंड रिवाल्यूशन" (राज तथा क्रांति) नामक पुस्तक लिखी और गुप्त रूप से दल के संघटन और क्रांति की तैयारियों के निदेशन का कार्य जारी रखा। अक्टूबर में विरोधियों की कामचलाऊ सरकार का तख़्ता उलट दिया गया और 7 नवंबर, 1917 को लेनिन की अध्यक्षता में सोवियत सरकार की स्थापना कर दी गई। प्रारंभ से ही सोवियत शासन ने शांतिस्थापना पर बल देना शुरू किया। जर्मनी के साथ उसने संधि कर ली; जमींदारों से भूमि छीनकर सारी भूसंपत्ति पर राष्ट्र का स्वामित्व स्थापित कर दिया गया, व्यवसायों तथा कारखानों पर श्रमिकों का नियंत्रण हो गया और बैकों तथा परिवहन साधनों का राष्ट्रीकरण कर दिया गया। श्रमिकों तथा किसानों को पूँजीपतियों और जमींदारों से छुटकारा मिला और समस्त देश के निवासियों में पूर्ण समता स्थापित कर दी गई। नवस्थापित सोवियत प्रजातंत्र की रक्षा के लिए लाल सेना का निर्माण किया गया। लेनिन ने अब मजदूरों और किसानों के संसार के इस प्रथम राज्य के निर्माण का कार्य अपने हाथ में लिया। उसने "दि इमीडिएट टास्क््स ऑफ दि सोवियत गवर्नमेंट" तथा "दि प्रोले टेरियन रिवाल्यूशन ऐंड दि रेनीगेड कौत्स्की" नामक पुस्तकें लिखीं (1918)। लेनिन ने बतलाया कि मजदूरों का अधिनायकतंत्र वास्तव में अधिकांश जनता के लिए सच्चा लोकतंत्र है। उसका मुख्य काम दबाव या जोर जबरदस्ती नहीं वरन् संघटनात्मक तथा शिक्षण संबंधी कार्य है।

बाहरी देशों के सैनिक हस्तक्षेपों तथा गृहकलह के तीन वर्षों 1928-20 में लेनिन ने विदेशी आक्रमणकारियों तथा प्रतिक्रांतिकारियों से दृढ़तापूर्वक लोहा लेने के लिए सोवियत जनता का मार्ग दर्शन किया। इस व्यापक अशांति और गृहयुद्ध के समय भी लेनिन ने युद्ध काल से हुई देश की बर्बादी को दूर कर स्थिति सुधारने, विद्युतीकरण का विकास करने, परिवहन के साधनों के विस्तार और छोटी छोटी जोतों को मिलाकर सहयोग समितियों के आधार पर बड़े फार्म स्थापित करने की योजनाएँ आरंभ कर दीं। उसने शासनिक यंत्र का आकार घटाने, उसमें सुधार करने तथा खर्च में कमी करने पर बल दिया। उसने शिक्षित और मनीषी वर्ग से किसानों, मजदूरों के साथ सहयोग करते हुए नए समाज के निर्माणकार्य में सक्रिय भाग लेने का आग्रह लिया।

जहाँ तक सोवियत शासन की विदेश नीति का प्रश्न है, लेनिन के अविकल रूप से शांति बनाए रखने का निरंतर प्रयत्न किया। उसने कहा कि "हमारी समस्त नीति और प्रचार का लक्ष्य यह होना चाहिए कि चाहे कुछ भी हो जाए, हमारे देशवासियों को युद्ध की आग में न झोंका जाए। लड़ाई का खात्मा कर देने की ओर ही हमें अग्रसर होना चाहिए।" उसने साम्यवाद के शत्रुओं से देश का बचाव करने के लिए प्रतिरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया और सोवियत नागरिकोंं से आग्रह किया कि वे "वास्तविक" लोकतंत्र तथा समाजवाद के स्थापनार्थ विश्व के अन्य सभी देशों में रहनेवाले श्रमिकों के साथ अंतरराष्ट्रीय बंधुत्व की भावना बढ़ाने की ओर अधिक ध्यान दें।

गृहयुद्ध के दिनों में सोवियत शासन का अंत करने के उद्देश्य से क्रांतिविरोधियों ने लेनिन की हत्या के लिए एक षड्यंत्र का आयोजन किया। परिणामस्वरूप 30 अगस्त, 1918 को उसपर हमला किया गया जिससे उसे काफी चोट लगी और वह बीमार रहने लगा। वर्षों के कठोर परिश्रम का प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर पड़ा और 21 जनवरी, 1924 को उसका निधन हो गया।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:19 AM   #23
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले


लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले (Thomas Babington Macaulay) (२५ अक्टूबर, १८०० - २८ दिसम्बर १८५९) ब्रिटेन का राजनीतिज्ञ, कवि, इतिहासकार था। निबन्धकार और समीक्षक के रूप मे उसने ब्रिटिश इतिहास पर जमकर लिखा। सन् १८३४ से १८३८ तक वह भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान रहा। प्रसिद्ध दंडविधान ग्रंथ "दी इंडियन पीनल कोड" की पांडुलिपि इसी ने तैयार की थी। अंग्रेजी को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इसका बड़ा हाथ था।

इसका जन्म, २५ अक्टूबर १८०० रोथले टैंपिल (लैस्टरशिर) में हुआ। पिता, जकारी मैकॉले, व्यापारी था। इसकी शिक्षा केंब्रिज के पास एक निजी विद्यालय में, फिर एक सुयोग्य पादरी के घर, तदनंतर ट्रिनिटी कालेज कैंब्रिज में हुई। १८२६ में वकालत शुरू की। इसी समय अपने विद्वत्ता और विचारपूर्ण लेखों द्वारा लंदन के शिष्ट तथा विज्ञ मंडल में पैठ पा गया।

१८३० में लॉर्ड लेंसडाउन के सौजन्य से पार्लियामेंट में स्थान मिला। १८३२ के रिफॉर्म बिल के अवसर पर की हुई इसकी प्रभावशाली वक्ताओं ने तत्कालीन राजनीतिज्ञों की अग्रिम पंक्ति कें इसे स्थान दिया। १८३३ से १८५६ तक कुछ समय छोड़कर, इसने लीड्स तथा एडिनगबर्ग का पार्लिमेंट में क्रमश: प्रतिनिधित्व किया। १८५७ में यह हाउस ऑव लॉर्ड्स का सदस्य बनाया गया। पार्लिमेंट में कुछ समय तक इसने ईस्ट इंडिया कंपनी संबंधी बोर्ड ऑव कंट्रोल के सचिव, तब पेमास्टर जनरल और तदनंतर सैक्रेटरी ऑव दी फोर्सेज के पद पर काम किया।

१८३४ से १८३८ तक मैकॉले भारत की सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर तथा लॉ कमिशन का प्रधान रहा। प्रसिद्ध दंडविधान ग्रंथ "दी इंडियन पीनल कोड" की पांडुलिपि इसी ने तैयार की थी। अंग्रेजी को भारत की सरकारी भाषा तथा शिक्षा का माध्यम और यूरोपीय साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान को भारतीय शिक्षा का लक्ष्य बनाने में इसका बड़ा हाथ था।

साहित्य के क्षेत्र में भी मैकॉले ने महत्वपूर्ण काम किया। इसने अनेक ऐतिहासिक और राजनीतिक निबंध तथा कविताएँ लिखी हैं। इसके क्लाइव, हेÏस्टग्स, मिरावो, मैकिआवली के लेख तथा "लेज ऑव एंशेंट रोम" तथा "आरमैडा" की कविताएँ अब तक बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। इसकी प्रमुख कृति "हिस्ट्री ऑव इंग्लैंड" है, जो इसने बड़े परिश्रम और खोज के साथ लिखी थी और जो अधूरी होते हुए भी एक अनुपम ग्रंथ है।

मैकॉले बड़ा विद्वान्, मेघावी और वाक्चतुर था। इसके विचार उदार, बुद्धि प्रखर, स्मरणशक्ति विलक्षण और चरित्र उज्वल था। २८ दिसंबर, १८५९ को इसका देहांत हो गया।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:32 AM   #24
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

श्रीनिवास रामानुजन्



श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर (22 दिसम्बर, 1887 – 26 अप्रैल, 1920) एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।

ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और बीजगणित प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को क्रिस्टल-विज्ञान में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये रामानुजन जर्नल की स्थापना की गई है।

रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित कोयंबटूर के ईरोड नामके गांव में हुआ था। वह पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। इनकी की माता का नाम कोमलताम्मल और इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था। इनका बचपन मुख्यतः कुंभकोणम में बीता था जो कि अपने प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है। बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास सामान्य बालकों जैसा नहीं था। यह तीन वर्ष की आयु तक बोलना भी नहीं सीख पाए थे। जब इतनी बड़ी आयु तक जब रामानुजन ने बोलना आरंभ नहीं किया तो सबको चिंता हुई कि कहीं यह गूंगे तो नहीं हैं। बाद के वर्षों में जब उन्होंने विद्यालय में प्रवेश लिया तो भी पारंपरिक शिक्षा में इनका कभी भी मन नहीं लगा। रामानुजन ने दस वर्षों की आयु में प्राइमरी परीक्षा में पूरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किया और आगे की शिक्षा के लिए टाउन हाईस्कूल पहुंचे। रामानुजन को प्रश्न पूछना बहुत पसंद था। उनके प्रश्न अध्यापकों को कभी-कभी बहुत अटपटे लगते थे। जैसे कि-संसार में पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? रामानुजन का व्यवहार बड़ा ही मधुर था। इनका सामान्य से कुछ अधिक स्थूल शरीर और जिज्ञासा से चमकती आखें इन्हें एक अलग ही पहचान देती थीं। इनके सहपाठियों के अनुसार इनका व्यवहार इतना सौम्य था कि कोई इनसे नाराज हो ही नहीं सकता था। विद्यालय में इनकी प्रतिभा ने दूसरे विद्यार्थियों और शिक्षकों पर छाप छोड़ना आरंभ कर दिया। इन्होंने स्कूल के समय में ही कालेज के स्तर के गणित को पढ़ लिया था। एक बार इनके विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने यह भी कहा था कि विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के मापदंड रामानुजन के लिए लागू नहीं होते हैं। हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद इन्हें गणित और अंग्रेजी मे अच्छे अंक लाने के कारण सुब्रमण्यम छात्रवृत्ति मिली और आगे कालेज की शिक्षा के लिए प्रवेश भी मिला।

आगे एक परेशानी आई। रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम इतना बढ़ गया था कि वे दूसरे विषयों पर ध्यान ही नहीं देते थे। यहां तक की वे इतिहास, जीव विज्ञान की कक्षाओं में भी गणित के प्रश्नों को हल किया करते थे। नतीजा यह हुआ कि ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा में वे गणित को छोड़ कर बाकी सभी विषयों में फेल हो गए और परिणामस्वरूप उनको छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई। एक तो घर की आर्थिक स्थिति खराब और ऊपर से छात्रवृत्ति भी नहीं मिल रही थी। रामानुजन के लिए यह बड़ा ही कठिन समय था। घर की स्थिति सुधारने के लिए इन्होने गणित के कुछ ट्यूशन तथा खाते-बही का काम भी किया। कुछ समय बाद 1907 में रामानुजन ने फिर से बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी और अनुत्तीर्ण हो गए। और इसी के साथ इनके पारंपरिक शिक्षा की इतिश्री हो गई।

विद्यालय छोड़ने के बाद का पांच वर्षों का समय इनके लिए बहुत हताशा भरा था। भारत इस समय परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा था। चारों तरफ भयंकर गरीबी थी। ऐसे समय में रामानुजन के पास न कोई नौकरी थी और न ही किसी संस्थान अथवा प्रोफेसर के साथ काम करने का मौका। बस उनका ईश्वर पर अटूट विश्वास और गणित के प्रति अगाध श्रद्धा ने उन्हें कर्तव्य मार्ग पर चलने के लिए सदैव प्रेरित किया। नामगिरी देवी रामानुजन के परिवार की ईष्ट देवी थीं। उनके प्रति अटूट विश्वास ने उन्हें कहीं रुकने नहीं दिया और वे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी गणित के अपने शोध को चलाते रहे। इस समय रामानुजन को ट्यूशन से कुल पांच रूपये मासिक मिलते थे और इसी में गुजारा होता था। रामानुजन का यह जीवन काल बहुत कष्ट और दुःख से भरा था। इन्हें हमेशा अपने भरण-पोषण के लिए और अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए इधर उधर भटकना पड़ा और अनेक लोगों से असफल याचना भी करनी पड़ी।

वर्ष 1908 में इनके माता पिता ने इनका विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया। विवाह हो जाने के बाद अब इनके लिए सब कुछ भूल कर गणित में डूबना संभव नहीं था। अतः वे नौकरी की तलाश में मद्रास आए। बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण न होने की वजह से इन्हें नौकरी नहीं मिली और उनका स्वास्थ्य भी बुरी तरह गिर गया। अब डॉक्टर की सलाह पर इन्हें वापस अपने घर कुंभकोणम लौटना पड़ा। बीमारी से ठीक होने के बाद वे वापस मद्रास आए और फिर से नौकरी की तलाश शुरू कर दी। ये जब भी किसी से मिलते थे तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाते थे। इस रजिस्टर में इनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। इसी समय किसी के कहने पर रामानुजन वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और जिलाधिकारी श्री रामचंद्र राव से कह कर इनके लिए 25 रूपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। इस वृत्ति पर रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना प्रथम शोधपत्र प्रकाशित किया। शोध पत्र का शीर्षक था "बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” और यह शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था। यहां एक साल पूरा होने पर इन्होने मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी की। सौभाग्य से इस नौकरी में काम का बोझ कुछ ज्यादा नहीं था और यहां इन्हें अपने गणित के लिए पर्याप्त समय मिलता था। यहां पर रामानुजन रात भर जाग कर नए-नए गणित के सूत्र लिखा करते थे और फिर थोड़ी देर तक आराम कर के फिर दफ्तर के लिए निकल जाते थे। रामानुजन गणित के शोधों को स्लेट पर लिखते थे। और बाद में उसे एक रजिस्टर में लिख लेते थे।रात को रामानुजन के स्लेट और खड़िए की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती थी।

इस समय भारतीय और पश्चिमी रहन सहन में एक बड़ी दूरी थी और इस वजह से सामान्यतः भारतीयों को अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपने बातों को प्रस्तुत करने में काफी संकोच होता था। इधर स्थिति कुछ ऐसी थी कि बिना किसी अंग्रेज गणितज्ञ की सहायता लिए शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था। इस समय रामानुजन के पुराने शुभचिंतक इनके काम आए और इन लोगों ने रामानुजन द्वारा किए गए कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा। पर यहां इन्हें कुछ विशेष सहायता नहीं मिली लेकिन एक लाभ यह हुआ कि लोग रामानुजन को थोड़ा बहुत जानने लगे थे। इसी समय रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उनका ध्यान लंदन के ही प्रोफेसर हार्डी की तरफ गया। प्रोफेसर हार्डी उस समय के विश्व के प्रसिद्ध गणितज्ञों में से एक थे। और अपने सख्त स्वभाव और अनुशासन प्रियता के कारण जाने जाते थे। प्रोफेसर हार्डी के शोधकार्य को पढ़ने के बाद रामानुजन ने बताया कि उन्होने प्रोफेसर हार्डी के अनुत्तरित प्रश्न का उत्तर खोज निकाला है। अब रामानुजन का प्रोफेसर हार्डी से पत्रव्यवहार आरंभ हुआ। अब यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ जिसमें प्रोफेसर हार्डी की बहुत बड़ी भूमिका थी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जिस तरह से एक जौहरी हीरे की पहचान करता है और उसे तराश कर चमका देता है, रामानुजन के जीवन में वैसा ही कुछ स्थान प्रोफेसर हार्डी का है। प्रोफेसर हार्डी आजीवन रामानुजन की प्रतिभा और जीवन दर्शन के प्रशंसक रहे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी की यह मित्रता दोनो ही के लिए लाभप्रद सिद्ध हुई। एक तरह से देखा जाए तो दोनो ने एक दूसरे के लिए पूरक का काम किया। प्रोफेसर हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।

आरंभ में रामानुजन ने जब अपने किए गए शोधकार्य को प्रोफेसर हार्डी के पास भेजा तो पहले उन्हें भी पूरा समझ में नहीं आया। जब उन्होंने अपने मित्र गणितज्ञों से सलाह ली तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक दुर्लभ व्यक्तित्व है और इनके द्वारा किए गए कार्य को ठीक से समझने और उसमें आगे शोध के लिए उन्हें इंग्लैंड आना चाहिए। अतः उन्होने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया।

कुछ व्यक्तिगत कारणों और धन की कमी के कारण रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी के कैंब्रिज के आमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। प्रोफेसर हार्डी को इससे निराशा हुई लेकिन उन्होनें किसी भी तरह से रामानुजन को वहां बुलाने का निश्चय किया। इसी समय रामानुजन को मद्रास विश्वविद्यालय में शोध वृत्ति मिल गई थी जिससे उनका जीवन कुछ सरल हो गया और उनको शोधकार्य के लिए पूरा समय भी मिलने लगा था। इसी बीच एक लंबे पत्रव्यवहार के बाद धीरे-धीरे प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए सहमत कर लिया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। रामानुजन ने इंग्लैण्ड जाने के पहले गणित के करीब 3000 से भी अधिक नये सूत्रों को अपनी नोटबुक में लिखा था।

रामानुजन ने लंदन की धरती पर कदम रखा। वहां प्रोफेसर हार्डी ने उनके लिए पहले से व्ववस्था की हुई थी अतः इन्हें कोई विशेष परेशानी नहीं हुई। इंग्लैण्ड में रामानुजन को बस थोड़ी परेशानी थी और इसका कारण था उनका शर्मीला, शांत स्वभाव और शुद्ध सात्विक जीवनचर्या। अपने पूरे इंग्लैण्ड प्रवास में वे अधिकांशतः अपना भोजन स्वयं बनाते थे। इंग्लैण्ड की इस यात्रा से उनके जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिल कर उच्चकोटि के शोधपत्र प्रकाशित किए। अपने एक विशेष शोध के कारण इन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली। लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन की शैली उनके अधिक अनुकूल नहीं थी और उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। डॉक्टरों ने इसे क्षय रोग बताया। उस समय क्षय रोग की कोई दवा नहीं होती थी और रोगी को सेनेटोरियम मे रहना पड़ता था। रामानुजन को भी कुछ दिनों तक वहां रहना पड़ा। वहां इस समय भी यह गणित के सूत्रों में नई नई कल्पनाएं किया करते थे।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:32 AM   #25
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

इसके बाद वहां रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसाइटी की सदस्यता मिलना एक बहुत बड़ी बात थी। रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। पूरे भारत में उनके शुभचिंतकों ने उत्सव मनाया और सभाएं की। रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद यह ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने। अब ऐसा लग रहा था कि सब कुछ बहुत अच्छी जगह पर जा रहा है। लेकिन रामानुजन का स्वास्थ्य गिरता जा रहा था और अंत में डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें वापस भारत लौटना पड़ा। भारत आने पर इन्हें मद्रास विश्वविद्यालय में प्राध्यापक की नौकरी मिल गई। और रामानुजन अध्यापन और शोध कार्य में पुनः रम गए।

भारत लौटने पर भी स्वास्थ्य ने इनका साथ नहीं दिया और हालत गंभीर होती जा रही थी। इस बीमारी की दशा में भी इन्होने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र लिखा। रामानुजन द्वारा प्रतिपादित इस फलन का उपयोग गणित ही नहीं बल्कि चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है।

इनका गिरता स्वास्थ्य सबके लिए चिंता का विषय बन गया और यहां तक की अब डॉक्टरों ने भीजवाब दे दिया था। अंत में रामानुजन के विदा की घड़ी आ ही गई। 26 अप्रैल1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन की आयु मात्र 33 वर्ष थी। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। पूरे देश विदेश में जिसने भी रामानुजन की मृत्यु का समाचार सुना वहीं स्तब्ध हो गया।

रामानुजन और इनके द्वारा किए गए अधिकांश कार्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली बने हुए हैं। एक बहुत ही सामान्य परिवार में जन्म ले कर पूरे विश्व को आश्चर्यचकित करने की अपनी इस यात्रा में इन्होने भारत को अपूर्व गौरव प्रदान किया। इनका उनका वह पुराना रजिस्टर जिस पर वे अपने प्रमेय और सूत्रों को लिखा करते थे 1976 में अचानक ट्रिनीटी कॉलेज के पुस्तकालय में मिला। करीब एक सौ पन्नों का यह रजिस्टर आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली बना हुआ है। इस रजिस्टर को बाद में रामानुजन की नोट बुक के नाम से जाना गया। मुंबई के टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा इसका प्रकाशन भी किया गया है। रामानुजन के शोधों की तरह उनके गणित में काम करने की शैली भी विचित्र थी। वे कभी कभी आधी रात को सोते से जाग कर स्लेट पर गणित से सूत्र लिखने लगते थे और फिर सो जाते थे। इस तरह ऐसा लगता था कि वे सपने में भी गणित के प्रश्न हल कर रहे हों। रामानुजन के नाम के साथ ही उनकी कुलदेवी का भी नाम लिया जाता है। इन्होने शून्य और अनन्त को हमेशा ध्यान में रखा और इसके अंतर्सम्बन्धों को समझाने के लिए गणित के सूत्रों का सहारा लिया। रामानुजन के कार्य करने की एक विशेषता थी। पहले वे गणित का कोई नया सूत्र या प्रमेंय पहले लिख देते थे लेकिन उसकी उपपत्ति पर उतना ध्यान नहीं देते थे। इसके बारे में पूछे जाने पर वे कहते थे कि यह सूत्र उन्हें नामगिरी देवी की कृपा से प्राप्त हुए हैं। रामानुजन का आध्यात्म के प्रति विश्वास इतना गहरा था कि वे अपने गणित के क्षेत्र में किये गए किसी भी कार्य को आध्यात्म का ही एक अंग मानते थे। वे धर्म और आध्यात्म में केवल विश्वास ही नहीं रखते थे बल्कि उसे तार्किक रूप से प्रस्तुत भी करते थे। वे कहते थे कि "मेरे लिए गणित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं है जिससे मुझे आध्यात्मिक विचार न मिलते हों।”
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:44 AM   #26
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

माइकल जैक्सन


माइकल जोसफ जैक्सन (२९ अगस्त, १९५८ - २५ जून, २००९), लोकप्रिय अमरीकी पॉप गायक थे, जिन्हें किंग ऑफ पॉप भी कहा जाता है। माइकल, जैक्सन दंपति की सातवीं संतान थे, जिन्होंने मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में ही व्यवसायिक रूप से गायकी आरंभ कर दी थी। उस समय वे जैक्सन-५ समूह के सदस्य हुआ करते थे। १९७१ में उन्होंने अपना व्यक्तिगत कैरियर प्रारंभ किया, हालांकि उस समय भी वे ग्रुप के सदस्य थे। जैक्सन ने गायकी की दुनिया में शीघ्र ही सिक्का जमा लिया और किंग ऑफ पॉप के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उनके सबसे अधिक बिक्री वाले अल्बमों में, ऑफ द वाल (१९७९), बैड (१९८७), डैंजरस (१९९१) और हिस्ट्री (१९९५) प्रमुख हैं। हालांकि १९८२ में जारी थ्रिलर उनका अब तक के सबसे अधिक बिकने वाला अल्बम माना जाता है।

१९८० के प्रारंभिक वर्षों में ही जैक्सन अमेरिकी पॉप गायकी और मनोरंजन की दुनिया के सबसे लोकप्रिय सितारे बनकर उभरे थे। एमटीवी पर उनके वीडियो ने बहुत धूम मचाई। थ्रिलर ने तो वीडियो संगीत की अवधारणा ही बदल दी थी। नब्बे के दशक में ब्लैक एंड ह्वाइट और स्क्रीम ने उन्हें अच्छी प्रसिद्धि दिलाई। मंच प्रदर्शनों के द्वारा उनकी नृत्य शैली प्रसिद्ध हो गई।

माइकल जैक्सन कई बार गिनीज बुक में स्थान प्राप्त कर चुके हैं। अब तक के सबसे सफल मनोरंजनकर्ता के १३ ग्रैमी अवार्ड जीतने वाले जैक्सन अकेले कलाकार है। २५ जून, २००९ को दिल का दौरा पड़ने के कारण जैक्सन का निधन हो गया।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 07:57 AM   #27
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

सी वी रमण


चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन् (७ नवंबर, १८८८ - २१ नवंबर, १९७०) नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भारतीय भौतिक-शास्त्री थे। उनका जन्म दक्षिण भारत के तमिलनाडु प्रांत के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान में हुआ था। प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य के लिये वर्ष १९३० में उन्हें भौतिकी का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया। उनका आविष्कार उनके ही नाम पर रामन प्रभाव के नाम से जाना जाता है।

चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन् की प्रारम्भिक शिक्षा वाल्टीयर में हुई। १२ वर्ष की अवस्था में प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने भौतिकी में स्नातक और एमए की डिग्री मद्रास (अब चेन्नई) के प्रेसीडेंसी कालेज से पूरी की। इस कालेज में उन्होंने १९०२ में दाखिला लिया और १९०४ में पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने १९०७ में मद्रास विश्वविद्यालय से गणित में प्रथम श्रेणी में एमए की डिग्री विशेष योग्यता के साथ हासिल की। तत्पश्चात इन्होंने सहायक वित्तीय मैनेजर के रुप मे भारतीय वित्तीय निगम कोलकाता में नौकरी शुरु की। लेकिन इस काम में उनकी रुचि नहीं थी अतः १९१७ में उन्होंने सरकारी सेवा से त्यागपत्र दे दिया और इंडियन अशोसिएशन फार कल्टीवेशन आफ़ साईंस में भौतिकी के अपने प्रयोग शुरु किए। शोध कार्य के प्रति इनकी रूचि को देखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय के उप कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने इनसे भौतिक विज्ञान विभाग के प्रधान अध्यापक के पद पर कार्य करने का अनुरोध किया। भौतिक विज्ञान में खोजों के फलस्वरूप कलकत्ता विश्वविद्यालय ने इनको डीएससी की डिग्री से विभूषित किया।

१९२४ में ये फेलो ऑफ रायल सोसाइटी के सदस्य निर्वाचित हुए। १९३० में इन्हें रमन प्रभाव पर नोबेल पुरस्कार मिला। १९४८ में सेवानिवृति के बाद उन्होंने रामन् शोध संस्थान की बैंगलोर में स्थापना की और इसी संस्थान में शोधरत रहे। १९५४ ई. में भारत सरकार द्वारा भारत रत्न की उपाधि से विभूषित रामन को १९५७ में लेनिन शान्ति पुरस्कार भी प्रदान किया था।

२८ फरवरी १९२८ को चन्द्रशेखर वेङ्कट रामन् ने रामन प्रभाव की खोज की थी जिसकी याद में भारत में इस दिन को प्रत्येक वर्ष विज्ञान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
Attached Images
This post has an attachment which you could see if you were registered. Registering is quick and easy
teji is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 08:24 AM   #28
neha
Member
 
neha's Avatar
 
Join Date: Dec 2009
Posts: 152
Rep Power: 15
neha will become famous soon enough
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

Quote:
Originally Posted by teji View Post
अर्नेस्तो "चे" ग्वेरा


He is the smartest man I have ever seen.
neha is offline   Reply With Quote
Old 09-01-2011, 10:59 AM   #29
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

Quote:
Originally Posted by neha View Post
He is the smartest man I have ever seen.

"It is the image of a very dashing young man who was part of a revolution. This was a revolution of the people for the people in a time when there was a great unrest in many parts of the world, particularly in Latin America, Europe and the US. The Vietnam War was raging; students and workers were protesting and striking; it was the age of free love and flower power; it was the pop age; it was the age of religious revolution. The time was ripe for a figure, an image that could represent this great diversity in thinking and behavior the world over. Che's role in the Cuban Revolution made him a revered symbol of world class struggle, equality and freedom from domination and his premature death in 1967 elevated him to almost martyrdom."

Source :: Che Guevara, Paulo Freire, and the Pedagogy of Revolution

To know more about this world's most famous image.

visit. http://en.wikipedia.org/wiki/Guerrillero_Heroico
teji is offline   Reply With Quote
Old 06-02-2011, 09:23 PM   #30
teji
Diligent Member
 
teji's Avatar
 
Join Date: Nov 2010
Location: जालंधर
Posts: 1,239
Rep Power: 22
teji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to beholdteji is a splendid one to behold
Default Re: ##### विश्व प्रसिद्ध हस्तियाँ #####

सद्दाम हुसैन


सद्दाम हुसैन दो दशक तक (16 जुलाई, 1979 से 9 अप्रैल, 2003 तक) इराक़ के राष्ट्रपति रह चुके है। उन्हें 30 दिसंबर 2006 को उत्तरी बगदाद में स्थानीय समय के अनुसार सुबह ६ बजे फाँसी दी गई. ३१ वर्ष की आयु में सद्दाम हुसैन ने जनरल अहमद अल बक्र के साथ मिल कर इराक की सत्ता हासिल की। 1979 में वह खुद इराक के राष्ट्रपति बन गए। सन् 1982 में इराक में हए दुजैल जनसंहार मामले में फाँसी की सजा मिली।

सद्दाम हुसैन का जन्म 28 अप्रैल, 1937 को बग़दाद के उत्तर में स्थित तिकरित के पास अल-ओजा गांव में हुआ था। उनके मजदूर पिता उनके जन्म के पहले ही दिवंगत हो चुके थे। उनकी मां ने अपने देवर से शादी कर ली थी लेकिन बच्चे की परवरिश की खातिर उसे जल्द ही तीसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ी। उस दौर का तिकरित अपनी वीभत्सताओं के लिए कुख्यात था। इन परिस्थितियों ने सद्दाम को बचपन में ही भयानक रूप से शक्की और निर्दयी बना दिया। बच्चों के हाथों पिटने के भय से बाल सद्दाम हमेशा अपने पास एक लोहे की छड़ रखता था। और जब-तब इससे जानवरों की पिटाई किया करता था।

किशोरावस्था में कदम रखते-रखते वह विद्रोही हो गया और ब्रिटिश नियंत्रित राजतंत्र को उखाड़ फेंकने के लिए चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलन में कूद पड़ा। हालांकि पश्चिम के अखबार इस आंदोलन को गुंडे-बदमाशों की टोली ही कहते हैं। 1956 में वह बाथ सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए। बाथ पार्टी अरब जगत में साम्यवादी विचारों की वाहक फौज थी। सद्दाम उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता के कारण नहीं, अपनी दीर्घकालिक रणनीति के तहत शामिल हुए।

वर्ष 1958 में इराक में ब्रिटिश समर्थित सरकार के खिलाफ विद्रोह भड़का और ब्रिगेडियर अब्दुल करीम कासिम ने राजशाही को हटाकर सत्ता अपने कब्जे में कर ली। सद्दाम तब बगदाद में पढ़ाई करता था। तभी उसने 1959 में अपने गैंग की मदद से कासिम की हत्या करने की असफल कोशिश की। वह देश से भाग कर मिस्त्र पहुंच गए। चार साल बाद यानी 1963 में कासिम के खिलाफ बाथ पार्टी में फिर बगावत हुई। बाथ पार्टी के कर्नल अब्दल सलाम मोहम्मद आरिफ गद्दी पर बैठे और सद्दाम घर लौट आए। इसी बीच सद्दाम ने साजिदा से शादी की जिससे उनके दो पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं।

सद्दाम ज्यादा दिन चैन से नहीं रह पाए। एक बार फिर बाथ पार्टी में बगावत हुई और सद्दाम को नई हुकूमत ने जेल में डाल दिया। वह तब तक जेल की हवा खाते रहे जब तक कि 1968 में बाथ पार्टी के मेजर जनरल अहमद हसन अल बकर ने तख्ता पलट कर सत्ता नहीं हथिया ली। अल बकर उनके चचेरे भाई भी लगते थे। वह अल बकर की रिवॉल्यूशनरी कमांड काउंसिल के प्रमुख सदस्य बन गए। सच बात तो यह भी है कि वही बकर की सत्ता के असली कर्त्ता-धर्त्ता थे। शुरुआत में वह बड़े उदार थे लेकिन धीरे-धीरे अपने असली रूप में आ गए। बकर बीमार थे और सत्ता की चाबुक का वही इस्तेमाल करते थे। उन्होंने सुन्नी जगत में अपनी अलग छवि बनाई और परदे के पीछे अपना एक अलग समूह तैयार करते रहे। 16 जुलाई 1979 को अल बकर को सत्ता से हटा कर वह स्वयं इराकी गद्दी पर बैठ गए। वह चाहते तो इस सत्ता परिवर्तन को स्वाभाविक हिंसारहित तख्तापलट का रूप दे सकते थे लेकिन उन्हें तो यह संदेश देना था कि अब सत्ता में सद्दाम आ गया है, इसलिए बगावती तेवर वाले सावधान हो जाएं। उन्होंने एक के बाद एक 66 देशद्रोहियों को मौत के घाट उतार दिया। अपने शासन के आरंभिक वर्षों में सद्दाम हुसैन अमेरिका के लाड़ले थे। उन्होंने ईरान से युद्ध मोल लिया और अमेरिका से मदद ली। रोनाल्ड रेगन ने उनकी मदद की। कैसा विद्रूप है कि हाल में जब रेगन की मृत्यु हुई तो वह उसी अमेरिकी सत्ता की जेल में मौत का इंतजार कर रहे थे।

सद्दाम हुसैन पर शियाओं के साथ भेदभाव करने का आरोप है। 1982 में एक बार दुजैल गांव में उनके ऊपर हमला हुआ था। जिसके जवाब में उन्होंने वहां 148 शियाओं की हत्या करवा दी। वही फैसला आज उनकी फांसी का कारण बना। इसी तरह कुर्दों के ऊपर भी उनके जुल्मों की कथाएं कम दर्दनाक नहीं हैं। हालांकि दस वर्ष तक वह लगातार ईरान से लड़ते रहे, जिससे उनकी छवि एक जुझारू लड़ाके की बनी लेकिन उनकी उलटी गिनती तब शुरू हुई जब उन्होंने 1990 में कुवैत पर कब्जा कर लिया। इससे वह अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठानों की नजरों में आ गए और जल्दी ही खाड़ी युद्ध शुरू हो गया।

42 दिन के युद्ध के बाद इराक अमेरिकी गठबंधन सेनाओं से पराजित तो हुआ पर सद्दाम हुसैन नहीं झुके। इसी वजह से बार-बार अमेरिका को लगता रहा कि वह फिर चुनौती बन सकते हैं। लिहाजा उनके खिलाफ 2003 में फिर युद्ध हुआ और उसके बाद की कहानी हमारे सामने है। वह एक तानाशाह तो थे लेकिन जिस तरह से उन्होंने खुद को अंतरराष्ट्रीय फलक पर पेश किया और अमेरिका के आगे नहीं झुके, उसने उहें वाकई अरब जगत का नायक बना दिया। देखना यह है कि उन्हें इतिहास किस तरह याद रखता है



teji is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks

Tags
famous people, heroes, history, legends, villains, world famous people


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 09:49 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.