16-03-2014, 09:22 PM | #571 |
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Re: Misc SMS
नर नारी को आनन्द हुए ख़ुशवक्ती छोरी छैयन में।। कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में । खुशहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौप्ययन में।। डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में। गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में। जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगी पिचकारी भी। कुछ सुर्खी रंग गुलालों की, कुछ केसर की जरकारी भी।। होरी खेलें हँस हँस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी। यह भीगी सर से पाँव तलक और भीगे किशन मुरारी भी।। डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में। गुलशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में।। नज़ीर अकबराबादी |
16-03-2014, 09:22 PM | #572 |
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Re: Misc SMS
नज़ीर अकबराबादी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की। और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की। परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की। ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की। महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की। हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो। कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो। मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो। उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो। सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की। और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के, हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के, कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के, कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के, कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।। ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो लड़भिड़ के 'नज़ीर' भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।। |
16-03-2014, 09:23 PM | #573 |
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Re: Misc SMS
हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।। एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल। जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।। जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब। मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।। तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ। तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।। और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां। तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।। नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम नजीर। फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।। नज़ीर अकबराबादी |
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