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#1011 | |
Special Member
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मैं भी अपराधियों को हमारे नेताओं के रूप में कबूल नहीं करता| लेकिन आपके उत्तर के जवाब में मेरा प्रश्न यह है कि क्या अपराधियों को सुधारना या उन्हें सुधरने का एक मौका देना गलत बात है (जहां तक देशद्रोह का सवाल न हो)?
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Self-Banned. Missing you guys! मुझे तोड़ लेना वन-माली, उस पथ पर तुम देना फेंक|फिर मिलेंगे| ![]() मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक|| |
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#1012 |
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केवल स्वामी रामदेव के साथ । बुरे आदमी के साथ कतई नहीँ । वैसे मैँ सबसे बड़ा गुनहगार मासूम बच्ची के बलात्कारी को मानता हूँ । यदि मेरा बस चले तो उसकी एक एक बोटी किसी चौराहे पर काटकर कुत्तोँ को खिलवा दूँ ।
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#1013 | |
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#1014 | |
Diligent Member
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जहाँ तक फूलन देवी को रेखांकित कर आप द्वारा अपने प्रश्न को कोरिलेट करने की बात है तो मैँ स्पष्ट करना चाहूँगा कि वह प्रतीक मात्र थी - जातीय राजनीति , राजनीति के अपराधीकरण की , अपराधियोँ के महिमामण्डन की , सत्ता और ताक़त के नंगे प्रदर्शन की । मेरे विचार मेँ ये अपराधी बाल्मीकि की भाँति आत्मसुधार कर समाज सुधार करने नहीँ आते अपितु अपने अपराधोँ को सरंक्षित करने या और अधिक ताक़त हासिल करने के लिये राजनीति मेँ प्रवेश करते हैँ और इसके लिये जातीय विद्वेष का विष वमन करने से भी नहीँ चूकते और अन्ततः स्वयं को सेलिब्रिटी , नायक के रूप मेँ स्थापित करने मेँ सफल हो जाते हैँ और शेष रह जाती है इनके शिकार लोगोँ मेँ न्याय की आस ।
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#1015 |
Special Member
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जब तक यहाँ की न्याय प्रक्रिया दुरुस्त नहीं होगी
ऐसे लोग इसका नाजायज फायदा उठाते ही रहेंगे
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#1016 |
Exclusive Member
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काँलेज लाईफ की कोई ऐसी यादेँ जिसे याद आतेँ हीँ आप मुस्कुरा उठतेँ हैँ
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
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#1017 |
Diligent Member
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बहुत मनोरंजक वाक़िया शेयर करूँगा , आप भी बिना हँसे नहीँ रहेँगे । लगभग 15 वर्ष का था । एक दूसरे शहर मेँ किराये के मक़ान मेँ रहता था । नीचे पोर्शन मेँ मकान मालिक की नातिन भी रहती थी । जो मेरी समवयस्क थी । किशोरावस्था के आकर्षण मेँ आँखेँ चार हो गयीँ । उसको देखकर गाने भी फूटने लगे । एक दिन माक़ूल समय देखकर किसी लड़की को पहली पाती देने का साहस एकत्र कर ही लिया । अपने कमरे मेँ जहाँ वो बैठी थी , एक खिड़की थी और मैँने चाँद सितारोँ से सजी हुई शायरियोँ वाला लेटर बिना कुछ बोले डाल दिया । पर हाय री मेरी क़िस्मत मेरे दिल की शहज़ादी उड़नछू हो चुकी थी और वो ख़त हाथ लगा उनकी माताश्री के । मैँ तो आशवस्त था कि वो ख़त उन्हेँ मिल चुका होगा । लिहाजा शाम को स्कूल से आने के बाद उसके कमरे के पास चकरघिन्नी होने लगा । पर वहाँ तो सन्नाटा पसरा हुआ था । फिर ध्यान दिया तो मेरी माँ भी ख़ामोश दिखी । माज़रा समझ नहीँ पाया कि समझना नहीँ चाहता था । ख़ैर साहब थोड़ी ही देर मेँ मेरे बड़े भाईसाहब आ गये और फिर उनकी चप्पल मेरे गाल । पूरा ख़त पढ़वाते रहे और आशिक़ी का भूत भगाते रहे । आज जब सोचता हूँ तो अपनी नादानी पर बरबस ही मुस्कुरा पड़ता हूँ । शायद आपके होठोँ पर भी मुस्कान खेलने लगी । ईश्वर करे ऐसे ही हँसते रहिये ।
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#1018 | |
Banned
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इब्द-ताए इश्क़ है, रोता है क्या? आगे-आगे देखिये, होता है क्या? |
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#1019 | |
Special Member
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अनिल भाई सॉरी बीच में टांग अडाने के लिए | बोंड भाई आपके प्रश्न का उत्तर देना या ऐसी स्थिति को वास्तविक रूप से यदि जीना पड़े तो मुझे कोई खास समस्या नहीं होगी | यदि फूलों को ना तोड़ने का नियम किसी के आने से पहले का बना हुआ है तो उसे मानना पड़ेगा | नियम होते ही हैं पालन करने के लिए | देश की प्रतिष्ठा अपने नियमों के लिए दृढ होने पर बढ़ेगी ना की पिलपिले होने से | यदि मैं एक माली के रूप में अपने एक फूल को नहीं बचा सकता तो देश की प्रतिष्ठा कैसे बचाऊंगा !!! |
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#1020 | |
Special Member
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मुझे आपसे ऐसी ही उम्मीद थी| मेरे दुसरे सवाल का जवाब भी पहले जवाब से ही मिल गया है| धन्यवाद| ![]()
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