11-03-2014, 08:28 PM | #1 |
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हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है ...बंसी
हम अकेले ही ज़िंदगी जी नहीं सकते क्यों कि इंसान हैं हम वैसी होगी ज़िंदगी हमारी जिस किसम के रिश्ते बना पाएँगे हम हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम देंगे इज़त बड़ों को तो उनके प्यार के हक़दार बन जाएँगे हम छोटों को अगर देंगे प्यार तो उनके दिल में जगह बना पाएँगे हम हमें इज़त और प्यार माँगने न होंगे उनके दिल से प्यार पा पाएँगे हम हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम घोलेंगे नफ़रत रिश्तों में तो नफ़रत से दूर ना रह पाएँगे हम जलाएँगे औरों को नफ़रत की आग में तो खुद भी जलते रहेंगे हम अगर दुखी करेंगे औरों को तो खुद भी खुशी से न जी पाएँगे हम हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम कड़वाहट घोलेंगे रिश्तों में तो कड़वाहट भारी ज़िंदगी ना जी पाएँगे हम भरी होगी अगर मिठास रिश्तों में तो जी भर के मिठास घोलेंगे हम तब खुशनुमा होगी ज़िंदगी हमारी और खुशी से जी पाएँगे हम हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम कोशिश करें प्यारी यादें छोड़ जाएँ दिलों में जब दुनियाँ से जाएँ हम तब चाहे छोड़ जाएँगे दुनियाँ को मगर दिलों में ज़िंदा रहेंगे हम भूल ना प्येँगे हमें कभी भी हमारे अपने अमर हो जाएँगे हम हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम बंसी(मधुर) |
12-03-2014, 04:04 PM | #2 |
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Re: हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है ...बंसी
बहुत सुन्दर भावों से पिरोयी गयी कविता जिसमें मानव कल्याण के निमित्त बहुत कुछ कहने का प्रयास किया गया है. बहुत बहुत बधाई, मित्र. कहीं कहीं टाइपिंग की त्रुटियाँ हैं जिन्हें निरंतर अभ्यास से दूर किया जा सकता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
20-04-2014, 04:19 PM | #3 |
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Re: हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है ...बंसी
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22-04-2014, 03:26 PM | #4 |
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Re: हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है ...बंसी
हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है क्यों कि रिश्तों से जुड़े हैं हम
अगर हम आपकी रचना को धन्यवाद नहीं दे ,ये हो नहीं सकता ,क्योकि हिंदी हे हम (बहूत अच्छी रचना हे आपकी )धन्यवाद |
22-04-2014, 10:24 PM | #5 |
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Re: हमारी ज़िंदगी हमारे रिश्तों से है ...बंसी
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