28-04-2014, 03:28 PM
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#11
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Re: संभल कर चलिए
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Originally Posted by dr. Rakesh srivastava
आप हैं , हम हैं , मोहब्बत है , संभल कर चलिये;
बिन पते वाला ये इक ख़त है ,संभल कर चलिये.
ठोकरें दर - ब - दर अब तो नसीब होनीं हैं ;
सबकी नज़रों में मज़म्मत है , संभल कर चलिये.
अभी तो पार किये सिर्फ आग के दरिया ;
अभी तो बाकी समन्दर है , संभल कर चलिये.
आँख में ख़्वाब हसीं पाल तो बैठी उल्फत ;
सिर्फ पलकों की हिफाज़त है , संभल कर चलिये.
चराग़ अपनी उम्मीदों के संभाले रखिये ;
हवा में आंधी की आहट है , संभल कर चलिये.
हीर - राँझा जुदा करके फ़साने गढ़ता है ;
अज़ब ज़माने की फ़ितरत है , संभल कर चलिये.
कोई भी साफ़ निग़ाहों से न देखेगा हमें ;
रूढ़ियों का बड़ा घूँघट है , संभल कर चलिये.
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2, गोमती नगर ,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ मज़म्मत = अस्वीकार / नापसंद करना / disapproval )
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बहूत सुन्दर
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