23-04-2014, 08:13 PM | #1 |
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अंधकार मिटाने दुनियाँ का ...bansi
सूरज हर दिन आत है मिटा देता है अंधकार रात का उजाला दिन में कर देता है बाहर उजाला चाहे कितना भी हो अक्सर मन में अंधेरा रहता है जब मन का अंधेरा मिटता है तभी जीवन में सवेरा होता है जब मन में अंधेरा होता है सही रास्ता नही दिखता है जीवन की अंधियारी गलियों में मन भटकता रहता है जब मन का अंधेरा मिट जाता है तभी सही रास्ता दिखता है जब सही रास्ते पे चलते हैं तभी जीवन सफल हो जाता है कभी कभी इतना अंधियारा होता है सही रास्ता कभी न दिखता है जीवन भर अंधियारी गलियों में मन भटकता रहता है न जीवन की रात ख्तम होती है न जीवन में सवेरा होता है मगर अंधकार मिटाने दुनियाँ का ’बंसी’ सूरज हर दिन आता है बंसी(मधुर) |
28-04-2014, 11:36 AM | #2 |
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Re: अंधकार मिटाने दुनियाँ का ...bansi
बहूत खूब
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28-04-2014, 11:08 PM | #3 |
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Re: अंधकार मिटाने दुनियाँ का ...bansi
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29-04-2014, 12:06 AM | #4 |
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Re: अंधकार मिटाने दुनियाँ का ...bansi
बहुत सुन्दर विचारों से बुनी गई कविता. लेकिन यहाँ मुझे एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही हैं:
रात जितनी ही संगीन होगी सुबहा उतनी ही रंगीन होगी ग़म न कर ग़र है बादल घनेरा किसके रोके रुका है सवेरा रात भर का है मेहमां अँधेरा किसके रोके रुका है सवेरा सो आशाओं का दामन नहीं छोड़ना चाहिये.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
01-05-2014, 10:55 AM | #5 | |
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Re: अंधकार मिटाने दुनियाँ का ...bansi
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