28-10-2013, 12:26 PM | #1541 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
नई दिल्ली। मिलावटी खाद्य पदार्थों से परेशान होकर आर्गेनिक खाद्य पदार्थों की ओर आकर्षित होने वाले लोगों के लिए अब एक और खुशखबरी है उनके लिए अब बाजार में आर्गेनिक सरसों तेल भी उपलब्ध है। इस तेल को बनाने वाली कंपनी पुरी आॅयल मिल्स का दावा है कि उच्च गुणवत्ता वाला यह तेल कोलेस्ट्रॉल फ्री है। सरसों की जिन फसल में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है, उसी फसल से आर्गेनिक सरसों तेल तैयार किया जाता है। कंपनी का दावा है कि इस सरसों तेल की उच्च गुणवत्ता के कारण ही उसे इंटरनेशनल स्टार और केन्द्र सरकार द्वारा गुणवत्ता अवार्ड दिया गया है। इस तेल की आपूर्ति सीधे उपभोक्ताओं के घर पर भी की जा रही है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
28-10-2013, 12:26 PM | #1542 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
छोटा सा अंडा दूर सकता है कुपोषण का फंडा
नई दिल्ली। नियमित रूप से एक अंडा खाने से न केवल दिनभर स्फूर्तिवान रहा जा सकता है, बल्कि इससे कुपोषण की समस्या का समाधान किया जा सकता है। एक अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि एक अंडे मे 6.3 ग्राम प्रोटीन होती है, जो शरीर में स्फूर्ति को बनाए रखने में बहुत कारगर है। अंडे के सफेद भाग में 3.5 ग्राम प्रोटीन होती है, जबकि इसके पीले हिस्से में 2.8 ग्राम प्रोटीन होती है। इस प्रोटीन में नौ आवश्यक अमिनो एसिड होते हैं, जो शरीर में प्रोटीन निर्माण में सहायक होते हैं। प्रोटीन मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और उनमें होने वाले नुकसान की भरपाई भी करता है। अंडे में विटामिन और खनिज जैसे तत्व भी पाए जाते हैं और इसमें केवल 70 कैलोरी होती हैं। अंडे की वसा में घुलनशील विटामिन ए, डी और ई होता है। विटामिन ए स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण और त्वचा प्रतिरक्षण के लिए आवश्यक है। विटामिन डी हड्डियों एवं दांतों के विकास के लिए तथा प्रतिरक्षण और तंतिकातंत्र के लिए जरूरी है। अंडे में उपलब्ध विटामिन ई प्रजनन प्रणाली के लिए जरूरी है।
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30-10-2013, 04:12 AM | #1543 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
उठने लगा है चेहरों में अंतर के राज से पर्दा
कैलिफोर्निया। इंसान ... हर ओर इंसान ... लेकिन हर इंसानी चेहरा दूसरे से एकदम अलग ... यह वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी अबूझ पहेली रही है, लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी वंशानुगत लक्षणों के हस्तांतरण के लिए जिम्मेदार डीएनए का पता लगने से अब यह राज कुछ-कुछ साफ होने लगा है। इस सम्बंध में कैलिफोर्निया के लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेट्री में संयुक्त जीनोम संस्थान में चूहों पर शोधकर्ताओं ने डीएनए में ऐसे छोटे-छोटे करोड़ों स्थानों की पहचान की है, जो इंसानों में चेहरों के विकास को प्रभावित करते हैं। शोधकर्ता दल के एक प्रोफेसर एक्सेल विसेल ने कहा कि हम यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि डीएनए में इंसानी चेहरों को बनाने वाले निर्देश कैसे पिरोए होते हैं। उन्होंने बताया कि इस अध्ययन से यह भी पता चलेगा कि डीएनए की घुमावदार संरचना भी सूक्ष्म रूप से इंसानों के चेहरे की बनावट में होने वाले अंतर को प्रभावित कर सकती है। वैज्ञानिक पत्रिका साइंस में इस सम्बंध में प्रकाशित सूचनाओं से वैज्ञानिकों को यह समझने में भी मदद मिलेगी कि जन्म के समय ही कुछ लोगों के चेहरों में विकार कैसे पाए जाते हैं। उन्होंने कहा कि डीएनए में कहीं न कहीं इस बात का खाका जरूर मौजूद होगा, जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी इंसान का चेहरा कैसा होगा। शोधकर्ताओं का मानना है कि इंसानी चेहरों में विविधताओं को जानने के लिए जो शोध हो रहे हैं, वे दरअसल जानवरों पर हो रहे हैं, लेकिन वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि जानवरों के समान ही इंसानों में भी चेहरों के अंतर विकसित होने की प्रबल संभावना है।
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30-10-2013, 05:32 AM | #1544 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
योग से फेफड़े संबंधी बीमारियों के ठीक होने में मदद मिल सकती है: अध्ययन
शिकागो। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सकों की ओर से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि योग से फेफड़े की बीमारियों से निजात पाने में मदद मिल सकती है। ‘चेस्ट 2013’ नामक इस अध्ययन में पाया गया कि फेफड़े का संक्रमण, सांस लेने में परेशानी तथा कुछ अन्य परेशानियों से जूझ रहे मरीजों में 12 महीनों के योग के बाद काफी सुधार देखने को मिला। शोधकर्ताओं ने कहा कि लंबे समय से चली आ रही फेफड़े संबंधी बीमारियों (सीओपीडी) से जूझ रहे मरीजों को अच्छी जिंदगी जीने में योग से काफी मदद मिलती है। सीओपीडी सबसे ज्यादा सिगरेट पीने से होता है और यह पुरूषों एवं महिलाएं दोनों पर प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर इसके लक्षण का पता व्यक्ति के 40 वर्ष का होने के बाद चलता है।
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17-11-2013, 05:12 AM | #1545 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
यूरोपीय लोगों की ही तरह कुछ भारतीयों में भी त्वचा संबंधी बदलाव :अध्ययन
हैदराबाद। एक नये अध्ययन में दावा किया गया है कि यूरोपीय लोगों और कुछ भारतीयों में त्वचा के जीन का उत्परिवर्तन एक समान होता है। हैदराबाद में सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायलोजी (सीसीएमबी) के वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता के थंगाराज ने यहां कहा कि अभी तक किये गये आनुवांशिकी अध्ययनों से यूरोपीय लोगों की पिगमेंटेशन (रंग संबंधी) आनुवांशिकी को समझने में मदद मिलती है, लेकिन दक्षिण एशियाई लोगों के बारे में इस तरह का कोई परिणाम नहीं निकला था जिनके त्वचा के रंग में काफी विविधता होती है। सीसीएमबी ने कहा कि यूनिवर्सिटी आॅफ तारतू-एस्टोनिया, सीसीएमबी और कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने त्वचा के रंग संबंधी एक महत्वपूर्ण जीन ‘एसएलसी24ए5’ का अध्ययन किया था और अपने परिणामों को पीएलओएस जेनेटिक्स में प्रकाशित किया। थंगाराज ने कहा, ‘‘हमने भारत के एक समरूपी वर्ग का अध्ययन किया और पता चला कि एसएलसी24ए5 जीन पिगमेंटेशन की विविधताओं को विस्तार से बताता है।’’ अध्ययन का ब्योरा देते हुए थंगाराज ने कहा कि लोगों के बीच मानव त्वचा के रंग में काफी परिवर्तन देखने को मिलता है यह अनुकूल विकास का एक अच्छा उदाहरण है।
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17-11-2013, 02:03 PM | #1546 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
निश्चित रूप से यह अध्ययन बहुत मनोरंजक होगा और अनंत संभावनाओं वाला होगा. हम इसके निष्कर्षों का इंतज़ार करेंगे.
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23-11-2013, 04:56 AM | #1547 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
छुट्टियों में भी काम करते हैं आम भारतीय: अध्ययन
नई दिल्ली। एक अध्ययन में भारत को छुट्टियों के लिहाज से सबसे वंचित देशों की सूची में दसवें नंबर पर रखा है क्योंकि औसतन आम भारतीय आराम के अपने समय का आनंद नहीं ले पाते और अवकाश के दौरान भी कार्यालय के संपर्क में रहते हैं। आनलाइन ट्रैवल सेवा प्रदाता एक्सपेडिया ने अपने अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला है। इसके अनुसार अवकाश को लेकर इस तरह के रवैये के चलते भारत सबसे अवकाश- वंचित देशों की सूची में आ गया है। पिछले साल भारत चौथे स्थान पर था। यह सर्वेक्षण विभिन्न देशों में अवकाश तथा छुट्टी की आदतों को लेकर सालाना विश्लेषण से सामने आया है। इसके अनुसार औसतन भारतीय 26 में से 20 छुट्टियों का इस्तेमाल करता है। लेकिन वे अवकाश का आनंद नहीं ले पाते और कम से कम 94 प्रतिशत तो छुट्टियों में भी ईमेल वगैरह देखते रहते हैं। एक्सपेडिया इंडिया के महाप्रबंधक विक्रम मल्ही के अनुसार नियमित कार्य दिनों में भी भारतीय अन्य देशों की तुलना में अधिक काम करते हैं और 38 प्रतिशत लोग प्रति सप्ताह 41-50 घंटे काम करते हैं। े इससे बेहतर काम-जीवन संतुलन की जरूरत सामने आती है।
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23-06-2014, 12:40 PM | #1548 |
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Re: वैज्ञानिक यह कहते हैं ...
Bahut achhi jankari di hai aapne .... shukriya
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