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11-08-2014, 09:33 PM | #1 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... बालक चंद्रशेखर ने माचिस की सारी तीलियां निकालकर अपने हाथ में ले लीं। वे तीलियां उल्टी–सीधी रखी हुई थीं, अर्थात कुछ तीलियों का रोगन चंद्रशेखर की हथेली की तरफ भी था। उसने तीलियों की गड्डी माचिस से रगड़ दी। भक्क करके सारी तीलियां जल उठीं। जिन तीलियों का रोगन चंद्रशेखर की हथेली की ओर था, वे भी जलकर चंद्रशेखर की हथेली को जलाने लगीं। असह्य जलन होने पर भी चंद्रशेखर ने तीलियों को उस समय तक नहीं छोड़ा, जब तक की उनकी रंगीन रौशनी समाप्त नहीं हो गई। जब उसने तीलियां फेंक दीं तो साथियों से बोला- "देखो हथेली जल जाने पर भी मैंने तीलियां नहीं छोड़ीं" :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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13-08-2014, 12:47 PM | #2 | |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
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16-08-2014, 10:43 PM | #3 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
शेरे हिदुस्तान श्री चंद्रशेखर आजाद...... उसके साथियों ने देखा कि चंद्रशेखर की हथेली काफी जल गई थी और बड़े–बड़े फफोले उठ आए थे। कुछ लड़के दौड़ते हुए उसकी मां के पास घटना की खबर देने के लिए जा पहुंचे। उसकी मां घर के अन्दर कुछ काम कर रही थी। चंद्रशेखर के पिता पंडित सीताराम तिवारी बाहर के कमरे में थे। उन्होंने बालकों से घटना का ब्योरा सुना और वे घटनास्थल की ओर लपके। बालक चंद्रशेखर ने अपने पिताजी को आते हुए देखा तो वह जंगल की तरफ़ भाग गया। उसने सोचा कि पिताजी अब उसकी पिटाई करेंगे। तीन दिन तक वह जंगल में ही रहा। एक दिन खोजती हुई उसकी मां उसे घर ले आई। उसने यह आश्वासन दिया था कि तेरे पिताजी तेरे से कुछ भी नहीं कहेंगे" :......... दैनिक भास्कर के सौजन्य से :.........
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06-10-2014, 05:12 PM | #4 |
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
सिर्फ फांसी नहीं थी, जानिए भगत सिंह की मौत का सच!...... यह 24 मार्च 1931 की सुबह थी। और लोगों में एक अजीब सी बेचैनी थी। एक खबर लोग आसपास से सुन रहे थे और उसका सच जानने के लिए यहां-वहां भागे जा रहे थे। और अखबार तलाश रहे थे। यह खबर थी सरदार भगत सिंह और उनके दो साथी सुखदेव और राजुगुरु की फांसी की। उस सुबह जिन लोगों को अखबार मिला उन्होंने काली पट्टी वाली हेडिंग के साथ यह खबर पढ़ी कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में पिछली शाम 7:33 पर फांसी दे दी गई। वह सोमवार का दिन था। ऐसा कहा जाता है कि उस शाम जेल में पंद्रह मिनट तक इंकलाब जिंदाबाद के नारे गूंज रहे थे। केंद्रीय असेम्बली में बम फेंकने के जिस मामले में भगत सिंह को फांसी की सजा हुई थी उसकी तारीख 24 मार्च तय की गई थी। लेकिन उस समय के पूरे भारत में इस फांसी को लेकर जिस तरह से प्रदर्शन और विरोध जारी था उससे सरकार डरी हुई थी। और उसी का नतीजा रहा कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को चुपचाप तरीके से तय तारीख से एक दिन पहले ही फांसी दे दी गई। फांसी के समय जो कुछ आधिकारिक लोग शामिल थे उनमें यूरोप के डिप्टी कमिश्नर भी शामिल थे। जितेंदर सान्याल की लिखी किताब 'भगत सिंह' के अनुसार ठीक फांसी पर चढ़ने के पहले के वक्त भगत सिंह ने उनसे कहा, 'मिस्टर मजिस्ट्रेट आप बेहद भाग्यशाली हैं कि आपको यह देखने को मिल रहा है कि भारत के कांतिकारी किस तरह अपने आदर्शों के लिए फांसी पर भी झूल जाते हैं।' ये भगत सिंह के आखिरी वाक्य थे। लेकिन भगत सिंह, सुखदेव राजगुरू की मौत के बारे में सिर्फ इतना जानना कि उन्हें फांसी हुई थी, या तय तारीख से एक दिन पहले हुई थी काफी नहीं होगा। आगे पढ़िए कि 23 मार्च की उस शाम हुआ क्या था" :......... अमर उजाला के सौजन्य से :.........
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