05-05-2014, 04:57 PM | #71 |
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Re: अपूर्ण
दिन में जैसे रात हो गई
कितनी लंबी रात हो गई कल तुमसे मुलाकात हो गई आंखों ही आंखों में तुमसे दिल की सारी बात हो गई इंसानों की इस बस्ती में जान से बढ़ कर जात हो गई देखी भी अनदेखी हो गई दिन में जैसे रात हो गई लगी आग दिल में कुछ ऐसी बिन बादल बरसात हो गई
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
30-05-2014, 01:01 PM | #72 |
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Re: अपूर्ण
आदमी
कुछ नया खोज करता रहा आदमी जब परेशानियों से घिरा रहा आदमी सांच की आंच में रोज जलते हुए और निखरता गया है सदा आदमी यूं कही-अनकही बात चलती रही भावनाओं में बहता रहा आदमी हर तरफ शोर औ होड़ है मच रही मूक बनकर खड़ा है छला आदमी वह नजरें मिलायेगा गैरों से क्या जो है अपनी नजर से गिरा आदमी जिंदगी को न तुम यूं ही जाया करो यही कहता गया है मरा आदमी
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
09-06-2014, 10:38 AM | #73 | |
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Re: अपूर्ण
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11-06-2014, 11:44 AM | #74 |
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Re: अपूर्ण
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
05-09-2014, 10:24 AM | #75 |
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Re: अपूर्ण
मैंने पुछा मैंने पुछा कैसे घिरती है घटा उसने रुख पर अपने जुल्फें सजा दी मैंने पुछा कैसे चमकते हैं सितारे उसने माथे पर पसीने की बूँदे दिखा दी मैनें पुछा कैसे ढलता है सूरज उसने हौले से अपनी पलकें झुका दी मैंने पुछा कैसे गिरती है बिजली उसने नजरें मिलाई.. मिला के झुका दी मैंने पुछा कैसे बरसता है सावन उसने सुर्ख लबों से सरगम सुना दी मैनें पुछा कहाँ मिलेगा मुझे सुकून उसने धीरे से अपनी बाँहें फैला दी मैंने पुछा क्या होती है महोब्बत उसने धङकनों की बढी रफतार सुना दी मैंने पुछा शराब से नशीला क्या है उसने हँस के अपनी अदाएँ दिखा दी सौजन्य : चच्चा की चौपाल
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल Last edited by ndhebar; 05-09-2014 at 10:27 AM. |
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