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Old 06-11-2014, 08:48 PM   #1
rajnish manga
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Default जीवन की सीख: रजनीश मंगा

जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)
कथाकार: रजनीश मंगा / Rajnish Manga

गरमी के मौसम में छुट्टी का दिन था और दोपहर का समय. मैं घोड़े बेच कर आराम से सो रहा था कि अचानक मेरे सैलफोन की घंटी बजी और मैं सपनों की दुनिया से सीधा हकीक़त की जमीन पर आ गिरा. गिरते पड़ते मैं अपने सैल फोन तक पहुंचा. फोन किसी अपरिचित का था.

“हैलो,” मैं बोला.

“गुड आफ्टर नून, सर,” उधर से एक लड़की की आवाज़ आयी, “क्या आप गुडगाँव में प्लाट या फ्लैट खरीदने में इंट्रेस्टेड हैं?”

यह सुनते ही मेरा अजीब हाल हो गया और बहुत गुस्सा भी आया. मैं उस लड़की को बुरा-भला कुछ बोलने वाला ही था कि तभी मुझे कुछ याद आ गया और मेरा क्रोध शांत हो गया. फिर भी मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं उसे क्या उत्तर दूँ. “नो, थैंक यू मैडम” कह कर फोन बंद कर दिया.
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Old 06-11-2014, 08:52 PM   #2
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Default Re: जीवन की सीख: रजनीश मंगा

जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)

दरअस्ल, मुझे उस समय बीस वर्ष पहले की एक घटना याद आ गयी थी. उन दिनों मैं कॉलेज की पढ़ाई समाप्त कर के किसी नौकरी की तलाश में था. शुरू में कोई खास चॉइस नहीं थी. चाहता था कि इतना मिल जाये जिससे मुझ अकेले प्राणी का गुजारा हो जाये. उन दिनों मैं घर से बाहर दिल्ली मैं रह रहा था. तभी मेरे एक मित्र ने बताया कि एक सॉफ्ट ड्रिंक कंपनी को कुछ नौजवानों की तलाश है जो ताजा ताजा कॉलेज से निकले हों. नौकरी अल्पकालिक थी. सर्दियां शुरू हो गयी थीं. उन दिनों अक्तूबर के दूसरे या तीसरे सप्ताह से मौसम बदल जाता था और हलके फुल्के वूलन कपड़े दिखाई देने लगते थे. हमारी कंपनी ने उन्हीं दिनों एक नये फ्लेवर वाला ड्रिंक निकाला था जिसको मार्केट में इंट्रोड्यूस करना बाकी था. कंपनी की योजना यह थी कि सर्दियों के शुरुआती दिनों में घर घर जा कर लोगों को इस पेय के बारे में बताया जाये और उन्हें सैम्पल के तौर पर दो बार छः छः बोतलें फ्री सप्लाई की जाये. अगली गर्मियों में उसका कमर्शियल उत्पादन किया जाना था.
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Old 06-11-2014, 08:54 PM   #3
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जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)


उन दिनों अभी प्लास्टिक की बोतलों में कोल्ड ड्रिंक सप्लाई नहीं होती थी. कांच की छोटी बोतलों में ही नया पेय भी निकाला गया था. इन खाली बोतलों की कीमत ग्राहक से ली जाती थी जो अन्ततः रिफंडेबल थी. हमने दक्षिणी दिल्ली से इस अभियान की शुरुआत की. हमारी पूरी टीम दो-तीन दिन एक कॉलोनी में जाती और उसे उस अवधि में कवर करने की कोशिश करते. दो-दो लोगों को इकठ्ठा एक एक घर में भेजा जाता. हम जिस घर में जाते वहां दरवाजे की घंटी बजा कर पहले स्वयं का परिचय देते कि हम फलां कंपनी से आये हैं और फिर अपने नए पेय के बारे में उन्हें बताते और फिर अपनी फ्री स्कीम के बारे में भी उन्हें समझाते. उस अभियान के दौरान हमें बहुत से खट्टे-मीठे अनुभव हुये.

हर घर में नए लोग. इन लोगों में बड़े-बूढ़े भी होते थे, नौजवान स्त्री-पुरुष भी होते थे, किशोर-किशोरियां भी होते थे. हरेक का बोलने का अपना अपना तरीका होता. उन दिनों एक बात अच्छी थी. आज की तरह लोग अजनबी लोगों से बात करने में या उन्हें घर के अंदर बुलाने के मामले में इतने रिज़र्व नहीं थे. हालांकि सभी लोग एक से नहीं थे, फिर भी हमने देखा कि अधिकतर लोग दरवाजा खोल कर हमसे अच्छी तरह बात करते और हमारी बात सुनते और अक्सर अपनी बैठक में बैठने का अवसर भी देते. इस बीच हम उन्हें अपनी स्कीम के बारे में बताते और उनकी सहमति होने पर अपना पेय उन्हें सप्लाई करके, खाली बोतलों के पैसे लेकर उनका धन्यवाद करते और अगले घर की ओर प्रस्थान कर जाते.
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Old 06-11-2014, 08:57 PM   #4
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जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)



जैसा कि आप ऊपर पढ़ चुके हैं अधिकतर लोग हमें सहयोग देते और हमें प्रोत्साहित करते. लेकिन कुछ व्यक्ति कड़वे और कठोर स्वभाव के होते थे. कई लोग तो हमारी शक्ल देख कर ही भड़क जाते, कुछ लोग बाहर से ही टरका देते, कुछ अन्य लोग हमसे बहुत बुरी तरह पेश आते जैसे कि हम उनके ज़रखरीद गुलाम हों या कोई चोर-उचक्के हों. लेकिन क्योंकि हम अपनी कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में वहां जाते थे, अतः हम उनसे लड़ भी नहीं सकते थे. हां, उनकी बात बुरी अवश्य लगती थी और दिल में तीर की तरह चुभती थी. हम ऐसे सभी लोगों की कड़वी बातें सुनकर पी जाते थे और अपनी बात हम उन्हें शांतिपूर्वक समझाने का प्रयत्न करते.

ऐसे ही एक अवसर पर हमने एक घर में पहुँच कर घंटी बजाई. “कौन है?” अंदर से किसी बड़ी उम्र के पुरुष की भारी आवाज आयी. हम गेट के बाहर ही थे और वो जाली वाले दरवाजे के पीछे से बोल रहे थे. ज़ाहिर था कि वो हमें देख रहे थे लेकिन बाहर से हम उन्हें नहीं देख पा रहे थे. हमने विनम्रतापूर्वक अपने आने का मकसद बताया और उनसे दो मिनट का समय माँगा.

“चले जाओ यहाँ से. हमें कुछ नहीं लेना,” उन सज्जन ने हिकारत से जवाब दिया.

“अंकल, हम फ्री सैम्पलिंग करवा रहे हैं. यह हमारी कंपनी की एक पब्लिसिटी कैंपेन है. एक बार आप हमारी बात सुन तो लें.” हमने उन्हें अपनी बात समझाने की चेष्टा की.
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जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)


“अरेsss ... सुना नहीं तुमने? जाते हो या नहीं !!” यह सुनते ही हम तो शर्म से पानी पानी हो गए. मेरा साथी तो रुआंसा सा हो गया था. मगर मैंने हौसला नहीं छोड़ा.

“अंकल, आप यह ड्रिंक ज़रा पी कर तो देखें, और प्लीज़, अपनी राय से भी हमें अवगत करायें.” मैंने विनीत हो कर कहा.

“तुम यहाँ से दफ़ा होते हो या पुलिस को फ़ोन करूँ.” उन महाशय का पारा नीचे आने का नाम न ले रहा था.

हम जैसे ही वापिस जाने के लिए मुड़े कि हमें किसी लड़की का स्वर सुनाई दिया,

“सुनिये...sss... !!” हमने आवाज की दिशा में देखा. द्वार पर एक बीस बाईस वर्ष की नवयुवती खड़ी थी. हमारे चेहरे पर आश्चर्य की मुद्रा देख कर उसने कहा, “आप लोग अंदर आ जाइये.” हम गेट खोल कर अंदर दाखिल हुये. डर लगा कि कोई कुत्ता ही हमला न कर दे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

“घबराइये नहीं, इधर से अंदर आ जाइये,” उसने हमसे कहा. फिर अपने पापा से मुखातिब हो कर बोली, “पापा, ये भले लोग हैं. पिछले दो दिनों से अपने नए कोल्ड ड्रिंक की पब्लिसिटी के लिए कॉलोनी में सबसे मिल रहे हैं.” फिर हमसे बात करने लगी, “बुरा न मानियेगा, कुछ दिनों से पापा की तबीयत ठीक नहीं है. किसी का आना जाना पापा को अच्छा नहीं लगता. किसी भी अजनबी को देख कर क्रोध करने लगते हैं.”
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जीवन की सीख (Jiwan ki Seekh)


“हां, अब बताइये, क्या कहना चाहते हैं,” उसने हमसे कंपनी की स्कीम के बारे में पूछा. हमने उसका शुक्रिया करते हुये स्कीम के बारे में बताया.

हम उस लड़की और उसके पापा के व्यवहार के अंतर से हैरान हो रहे थे. पहले एक व्यक्ति हमसे भिखारी की तरह ट्रीट कर रहा था और दूसरी ओर उसकी पुत्री ने हमें इंसान का दर्जा देते हुये बातचीत की. उसने मुझे और मेरे मित्र को मामूली सेल्समैन होने के बावजूद सम्मान देते हुये अपने घर में बिठाया. यह देख कर मेरी आँखों में नमीं आ गई और मैंने दो क्षण के लिये अपना मुंह फेर लिया. उस लड़की की इंसानियत देख कर उसके प्रति मेरा मन सम्मान व प्रशंसा से भर गया.

उस लड़की ने न सिर्फ हमारी बात सुनी बल्कि स्कीम के मुताबिक हमसे नए कोल्ड ड्रिंक के कार्टन भी लिये. हमने यह वादा किया कि उन्हें समय समय पर सप्लाई मिलती रहेगी. हमने उनका धन्यवाद किया और वहां से बाहर आ गए. वह दिन मेरे लिये एक महत्वपूर्ण दिन था. उस दिन मुझे व्यवहारिक जीवन की बहुत बड़ी शिक्षा मिली थी.
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Old 07-11-2014, 12:02 PM   #7
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Default Re: जीवन की सीख: रजनीश मंगा

धन्यवाद मित्र !आपने अपने जीवन के अनुभव से हमे परिचित कराया है मेरी एक इच्छा है कि आप अपने जीवन के वो पल हमारी साथ शेयर करे जो आप उन्हें दुबारा पाना चाहते है !
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