19-11-2014, 02:23 PM | #111 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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19-11-2014, 02:27 PM | #112 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
बेटिया इस देश का भविस्य हैं, सही में ये तश्वीर उन लोगो के मूह पे बहुत बड़ा तमाचा है जो लोग बेटी को एक आफत समज के उनको पैदा होने से पहले कोख में ही मार देते हैं ये समज के की ये बेटी हमारे लिए एक खर्चे का न्योता है. इस फोरम और इस पोस्ट के माध्यम से में ऐसे लोगो को कहना चाहूंगी की कृपया करके बेटी को एक बेटे जैसा अधिकार दे उसे अपने पर बोझ न सम्झे.
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19-11-2014, 05:30 PM | #113 | |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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प्रिय पुष्पा जी, 1. सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार.... 2. आपने एक सुंदर प्रश्न रख्खा हें कि " jub ghar ki chaar diwari se use bahar nikalne diya jayega tab hi uski pratibha ka pata dunia ko chalega sabke samne aaye tab hi wo apni yogyata bata sakti hai " ? तों मेरे हिसाब से इस प्रश्न का उत्तर आपने ही दे दिया हें - kintu jub exhibition me heere ko rakha jata hai tab hi log uski parakh kar sakte hain ... यह बात तों जोहरी अच्छी तरह से जानता हें कि हीरे को कब उचित स्थान और उचित समय पर सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना हें, अनमोल वस्तुओं को हाट बजार या सब्जीमंडी में तों प्रदर्शित नही किया जाता हें...... इस कथा का मूल हार्द बेटियों कि परवाह(Care), उनकीं फ़िक्र से हें, जिसको संत महात्मा जी ने अनमोल हीरे से बेटियों कि तुलना करके श्रेठतम उदाहरण द्वारा समझाया कि बेटियां अनमोल हें, यहाँ पर चार दीवारी में बंध रखने कि जैसी कोई बात ही नही हें, और ना ही इस कथा में ऐसा कोई प्रश्न किया गया हें........
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*** Dr.Shri Vijay Ji *** ऑनलाईन या ऑफलाइन हिंदी में लिखने के लिए क्लिक करे: .........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :......... Disclaimer:All these my post have been collected from the internet and none is my own property. By chance,any of this is copyright, please feel free to contact me for its removal from the thread. |
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20-11-2014, 10:34 AM | #114 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
[QUOTE=Dr.Shree Vijay;540302][SIZE="3"][COLOR="Blue"]प्रिय पुष्पा जी, 1. सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए आपका हार्दिक आभार....
2. आपने एक सुंदर प्रश्न रख्खा हें कि " jub ghar ki chaar diwari se use bahar nikalne diya jayega tab hi uski pratibha ka pata dunia ko chalega sabke samne aaye tab hi wo apni yogyata bata sakti hai " ? तों मेरे हिसाब से इस प्रश्न का उत्तर आपने ही दे दिया हें - kintu jub exhibition me heere ko rakha jata hai tab hi log uski parakh kar sakte hain ... यह बात तों जोहरी अच्छी तरह से जानता हें कि हीरे को कब उचित स्थान और उचित समय पर सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करना हें, अनमोल वस्तुओं को हाट बजार या सब्जीमंडी में तों प्रदर्शित नही किया जाता हें...... इस कथा का मूल हार्द बेटियों कि परवाह(Care), उनकीं फ़िक्र से हें, जिसको संत महात्मा जी ने अनमोल हीरे से बेटियों कि तुलना करके श्रेठतम उदाहरण द्वारा समझाया कि बेटियां अनमोल हें, यहाँ पर चार दीवारी में बंध रखने कि जैसी कोई बात ही नही हें, और ना ही इस कथा में ऐसा कोई प्रश्न किया गया हें....... डॉ श्री विजय जी , बहुत बहुत आभार , आपने इस कहानी के जिस स्वरुप को आपनी नजर से देखा वो पहली नजर में मुझे भी बहुत अच्छा लगा की, संत जी ने कितने अछे से समझाया किन्तु आपसे इतना पूछना चाहूंगी की हमारे समाज में बाबाओ ने इस तरह की कहानियो द्वारा अपरोक्ष रूप से स्त्री स्वतंत्रता पर बंदिश नही लगाईं ? आपको एइसा कभी नही लगा क्या ? मेरे ख्याल से आप जरुर मानते हैं इस बात को क्यूंकि आपने इसी सूत्र में महिलाओं के लिए बहुत अच्छा अच्छा लिखा है . बाकि डॉ श्री विजय जी मैंने आपने सभी विचार हीरे की परख वाले ब्लॉग में रखे हैं please आप उसे पढियेगा तब आप समझ जायेंगे की मैंने कुछ गलत बात नही कही . |
20-11-2014, 04:50 PM | #115 | |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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प्रिय पुष्पा जी, आपने मुझसे अच्छा प्रश्न किया हें, मेरा स्वभाव और मेरी सोंच सदा ही सकारात्मक हैं, आज तक मेरे जीवन में और फोरम में भी मैने कभी किसी के दिल को ठेस नहीं पहुचाई और ना ही किसी के लिये ओछे शब्दों का उपयोग किया मैने सदा जीवनोपयोगी सार ही ग्रहण किया भूसे कों वहीं रहने दिया, मैने सदा ग्लास आधा भरा हुआ ही देखा किसी कों अगर आधा खाली नजर आये तों वह उनकी सोंच, क्युकी सत्य तों दोनों ही कह रहें हैं, यह तों हुई मेरी अपनी बात अब आतें हें आपके प्रश्न पर ..... प्रश्न : किन्तु आपसे इतना पूछना चाहूंगी की हमारे समाज में बाबाओ ने इस तरह की कहानियो द्वारा अपरोक्ष रूप से स्त्री स्वतंत्रता पर बंदिश नही लगाईं? आपको एइसा कभी नही लगा क्या ? जितनी इज्जत स्त्री यों कि यहाँ इसी भारत में थी उतनी तों शायद समग्र संसार में भी नही थी, यहाँ यही सिखाया जाता था " जहाँ नारी कि पूजा होतीं हें वहीं देवताओं का निवास होता हें " यही हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता थी, आप इतिहास उठाके देख लीजिए जितना नाम यहाँ नारियों ने किया उतना तों शायद पुरुषों ने भी नहीं किया ! आप जो बात कर रही हें वो आज के आजाद भारत कि हें तों आज भी यहाँ बेटियां कई क्षेत्रोंमें पुरुषों से एक कदम आगे ही हें, वह मैने उपरोक्त कई चित्रों में प्रस्तुत किया हें, रही बात बाबा ऑ की तों बाबाओं और संतो में बहुत बड़ा भेद हें, संतो की बातें सदा ही सारगर्भित होती हें, इन तथा कथित बाबाओं की नही, आज इन तथा कथित बाबाओं की वजह से संत समाज कों भी हिन् भावनाओं से देखा जा रहा हें, यह बातें फिर कभी !!!
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20-11-2014, 11:11 PM | #116 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
पुष्पा सोनी जी और डॉ श्री विजय दोनों ने ही यहाँ अपने अपने सारगर्भित विचार हम सब से साझा किये जिससे हमें उन दोनों के दृष्टिकोण को जानने का अवसर प्राप्त हुआ. हमारे समाज में जहाँ अच्छाइयाँ दिखाई देती हैं, वहां बुराईयां भी कम नहीं हैं. आधुनिक स्त्री ने सृजनात्मक, व्यावसायिक, कार्मिक, आर्थिक या राजनैतिक क्षेत्र में आज जो मुकाम हासिल किया है वह अपने बूते पर हासिल किया है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. सैंकड़ों साल तक हमारे ढकोसलाग्रस्त तथा पुरुष प्रधान समाज ने अनुसूचित जाति के लोगों और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा और कहा:
ढोल गँवार सूद्र पसु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी अगर आज इनकी स्थिति में कुछ बदलाव दिखाई देता है तो इसका श्रेय इन तबकों के निरंतर संघर्ष तथा हार न मानने की इनकी दृढ़ इच्छा शक्ति को दिया जाना चाहिए. इन दोनों तबकों के प्रति हमारे समाज की सोच के उदाहरण आपको इतिहास की किताबों में नहीं बल्कि दैनिक समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में मिल जायेंगे. हमारा कर्तव्य है की हम इस बदलाव को नम्रता पूर्वक स्वीकार करें. बहुत बहुत धन्यवाद.
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21-11-2014, 10:07 AM | #117 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
[QUOTE=Dr.Shree Vijay;540336][size="3"][color="blue"]
प्रिय पुष्पा जी, आपने मुझसे अच्छा प्रश्न किया हें, मेरा स्वभाव और मेरी सोंच सदा ही सकारात्मक हैं, आज तक मेरे जीवन में और फोरम में भी मैने कभी किसी के दिल को ठेस नहीं पहुचाई और ना ही किसी के लिये ओछे शओं का निवास होता हें " यही हमारी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता थी, आप इतिहास उठाके देख लीजिए जितना नाम यहाँ नारियों ने किया उतना तों शायद पुरुषों ने भी नहीं किया ! dr shree vijay ji धन्यवाद ... सबसे पहले आपको बताना चाहूंगी की मैंने आपके लिए एइसा नही कहा की आपने किसी के दिल को ठेस लगे वेइसी बातें कही है ... मेने आपके बहुत सारे सूत्र पढ़े हैं और जिससे मेरी नजर में आपका सम्मान बहुत है.. मैंने देखा है हर सूत्र में की आपने सूत्र के सकारात्मक भाव को ही अपनाया है जो की आपके स्वाभाव से पाठक को परिचित करता है. रही बात मेरे प्रश्न की.. जिसके जवाब में आपने बताया की प्राचीन काल से हमारे यहाँ स्त्रियों का सम्मान होता आया है, तो आपको याद दिलाना चाहूंगी की जिन दिनों में स्त्री सम्मान की बातें होती थी, उन्हें मान दिया जाता था तब का लिखा है ये रामायण का दोहा ...ढोर गवांर शुद्र पशु नारी है ताडन के ये ... अधिकारी याने की पशुओ के साथ समानता की गई इस समाज में .. हर युग में एक समय एइसा आया है की महिलाओं को अपमान का सामना करना पड़ा है.. सत युग में सती, त्रेता में सीता , द्वापर युग में द्रौपदी और कलियुग में तो आज हजारो दामिनियाँ और कोमल कलियों को कितना कुछ सहना पड़ रहा है. आज के समय की छवि हमे रोज समाचार पत्र में टीवी में पढ़ने , देखने मिलती है जी हाँ संतो और बाबाओ में फर्क है किन्तु संत श्री यदि सार गर्भित उदहारण देते हैं तो उन्हें समाज को समझाना जरुरी है की स्त्री पुरुष में भेद न रखकर बेटी को हीरा समझकर उसे डिब्बे में बंद करने की बजाय उसे आगे बढ़ने का मौका दें लोग समाज को ये समझाए की बेटे को सबसे पहले संस्कारी बनाये क्यूंकि संतों की वाणी समाज पर ज्यदा असर करती है . डॉ श्री विजय जी फिर आपसे कहना चाहूंगी की आपसे मुझे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नही ये तो जब बात बेटियों की, महिलाओं की बंदिश की आती हैउनके साथ होते भेदभाव की आती है और इस भेदभाव की वजह से किसी बेटी का ज्ञान किसी बेटी का टेलेंट धरा का धरा रह जाता है और इस भेदभाव की वजह से कोई बेटी अपना जीवन बर्बाद होते देखते रहती है कुछ नही कह सकती मन मसोस कर रह जाती है तब मन में दुःखी होता है की हमारे समाज में आखिर एइसा भेदभाव क्यों.. क्यूँ ??? |
21-11-2014, 10:26 AM | #118 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
[QUOTE=rajnish manga;540388][font=arial][size=3]पुष्पा सोनी जी और डॉ श्री विजय दोनों ने ही यहाँ अपने अपने सारगर्भित विचार हम सब से साझा किये जिससे हमें उन दोनों के दृष्टिकोण को जानने का अवसर प्राप्त हुआ. हमारे समाज में जहाँ अच्छाइयाँ दिखाई देती हैं, वहां बुराईयां भी कम नहीं हैं. आधुनिक स्त्री ने सृजनात्मक, व्यावसायिक, कार्मिक, आर्थिक या राजनैतिक क्षेत्र में आज जो मुकाम हासिल किया है वह अपने बूते पर हासिल किया है, इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. सैंकड़ों साल तक हमारे ढकोसलाग्रस्त तथा पुरुष प्रधान समाज ने अनुसूचित जाति के लोगों और महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक समझा और कहा:
ढोल गँवार सूद्र पसु नारी, ये सब ताड़न के अधिकारी आदरणीय रजनीश जी ,, बिलकुल सटीक बात कही आपने महिलाएं आज भी आपने हक़ के लिए संघर्ष कर रहीं हैं और फलस्वरूप उन्हें कुछ अंशों तक ही सफलता मिली है पूरी नही ... जी आपने दोहे की बात कही है जो, उसपर कई प्रश्न चिन्ह लग जाते हैं की राम के ज़माने में भी नारी सुखी नही थी ? जबकि ये दोहा तब लिखा गया था जब सागर ने राम की प्रर्थना को अनसुनी की और लक्षमण ने कहा था की ढोर गंवार शुद्र पशु नारी ताडन के है सब अधिकारी तब वहां स्त्री ने क्या दोष किया था ? क्या गुनाह था उसका ? फिर भी स्त्री के लिए इतनी बड़ी बात कह दी .जबकि समुद्र पुरुष स्वरुप में प्रकट हुआ था .ये कहानी हमने रामायण के प्रवचन देते संतो द्वारा ही सुनी है रजनीश जी ..बहुत बहुत धन्यवाद |
02-12-2014, 08:58 PM | #119 | |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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04-12-2014, 04:28 PM | #120 |
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Re: मुझे मत मारो :.........
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