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Old 26-02-2015, 03:16 PM   #31
Rajat Vynar
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Talking Re: आक्षेप का पटाक्षेप

७. रूद्र-संहिता, युद्ध खंड, अध्याय २४ के अनुसार विष्णु असुरेन्द्र जालंधर की स्त्री वृंदा का सतीत्व अपहरण करने में तनिक भी नहीं हिचके असुरेन्द्र जालंधर को वरदान था कि जब तक उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व कायम रहेगा, तब तक उसे कोई भी मार नहीं सकेगा असुरेन्द्र जालंधर के वध के लिए विष्णु को परस्त्रीगमन जैसे घृणित उपाय का आश्रय लेना पड़ा ''विष्णु------पुत्भेद्नाम'' अर्थात्- विष्णु ने जालंधर दैत्य की राजधानी जाकर उसकी स्त्री वृंदा का सतिवृत्य (पतिवृतय) नष्ट करने का विचार किया इधर शिव जालंधर के साथ युद्ध कर रहा था और उधर विष्णु महाराज ने जालंधर का वेश धारण कर उसकी स्त्री वृंदा का सतीत्व नष्ट कर दिया, जिससे वह दैत्य मारा गया जब वृंदा को विष्णु का यह छल मालूम हुआ तो उसने विष्णु से कहा- ''धिक्------तापस:।'' अर्थात्- 'हे विष्णु ! पर स्त्री के साथ व्यभिचार करने वाले, तुम्हारे ऐसे आचरण पर धिक्कार है अब तुम को मैं भली भाँति जान गई तुम देखने में तो महासाधु जान पड़ते हो, पर हो तुम मायावी, अर्थात् महाछली


क्या उपरोक्त अनुच्छेद विष्णु की साफ़-सुथरी छवि प्रस्तुत कर रहा है?


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Old 26-02-2015, 03:18 PM   #32
Rajat Vynar
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Talking Re: आक्षेप का पटाक्षेप

उपरोक्त अनुच्छेदों (१ से ७ तक) के प्रमाणों से कुकी जी का आग्रह 'सकारात्मक लिखिए' स्वतः धराशाई नहीं हो जाता? क्योंकि जब सब कुछ नकारात्मक हो तो सकारात्मक कैसे लिखा जा सकता है?

उपरोक्त अनुच्छेदों के प्रमाणों से पवित्रा जी द्वारा लगाया गया- 'देवी-देवताओं के गलत चित्रण' का आक्षेप और आरोप भी निराधार हो जाता है


सोनी पुष्पा जी का तर्क कि अपने लेखन के लिए स्वत: लेखक ही जिम्मेदार है तो हमने अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर दिया है।



अतएव यह स्पष्ट है- दोष हमारी रचनाओं में नहीं, हिंदू धर्म ग्रंथों में है। हमने तो सिर्फ़ धर्म ग्रंथों में पूर्वस्थापित तथ्यों का हास्य-व्यंग्य के उद्देश्य से आधुनिकीकरण ही किया है।







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Old 26-02-2015, 03:54 PM   #33
emptymind
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Default Re: आक्षेप का पटाक्षेप

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Originally Posted by Rajat Vynar View Post
उपरोक्त अनुच्छेदों (१ से ७ तक) के प्रमाणों से कुकी जी का आग्रह 'सकारात्मक लिखिए' स्वतः धराशाई नहीं हो जाता? क्योंकि जब सब कुछ नकारात्मक हो तो सकारात्मक कैसे लिखा जा सकता है?

उपरोक्त अनुच्छेदों के प्रमाणों से पवित्रा जी द्वारा लगाया गया- 'देवी-देवताओं के गलत चित्रण' का आक्षेप और आरोप भी निराधार हो जाता है

सोनी पुष्पा जी का तर्क कि अपने लेखन के लिए स्वत: लेखक ही जिम्मेदार है तो हमने अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर दिया है।

अतएव यह स्पष्ट है- दोष हमारी रचनाओं में नहीं, हिंदू धर्म ग्रंथों में है। हमने तो सिर्फ़ धर्म ग्रंथों में पूर्वस्थापित तथ्यों का हास्य-व्यंग्य के उद्देश्य से आधुनिकीकरण ही किया है।
मेरे यूनियन मे शामिल होने हेतू एकदम सही पात्र है।
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