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Old 27-02-2015, 05:02 PM   #1
rajnish manga
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Default धर्म परिवर्तन पर एक विमर्श

धर्म परिवर्तन पर एक विमर्श
साभार: लामा डोबूम टुल्कु

धर्म के रूपांतरण के लिए संस्कृत शब्द है धर्मपरिवर्तन। तिब्बत के किसी भी प्राचीन पारंपरिक ग्रंथ में इस विषय पर कोई प्रमाणित शब्द नहीं है। मुझे नहीं पता कि इसके लिए चीनी भाषा में कोई शब्द है या नहीं। हालाँकि, किसी की स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन की अवधारणा बौद्ध संदर्भ में भी कही गई है। इसका अर्थ है कि किसी एक विशेष धर्म का अनुयायी जिसके अनुसार वह पला और बढ़ा है, वह किसी अन्य धर्म में विशिष्ठ लाभदायक विशेषताएं देखता है तो वह अपनी इच्छाशक्ति के अनुसार किसी और धर्म को अपना सकता है। तिब्बती भाषा में एक शब्द है जिसका अर्थ है एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होना। वह शब्द है कोस-लग्स स्ग्युर-बा। धर्म का मुख्य उद्देश्य मोक्ष तक पहुंचना है, भौतिकता का लाभ नहीं, इसीलिए अगर मोक्ष की प्राप्ति के लिए या फिर किसी को सही रास्ता दिखाने के लिए अगर किसी को धर्म परिवर्तन की आवश्यकता महसूस होती है, तो धर्म परिवर्तन करना पूरी तरह से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों के अनुरूप है। दूसरों के हित में धर्म परिवर्तन करना, हो सकता है कि ऐसा करना किसी की परिस्थिति की मांग हो या फिर किसी भी कार्य के परिणाम के रूप में किसी अन्य व्यक्ति के लिए धर्म परिवर्तन किया जा रहा हो, ऐसे में यहाँ बहुत ही ध्यान से जाँच पड़ताल करने की आवश्यकता है।
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Old 27-02-2015, 05:10 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: धर्म परिवर्तन पर एक विमर्श

देखना यह चाहिए कि:

1) कहीं धर्म परिवर्तन का कारण धार्मिक उपदेश या प्रवचन तो नहीं?

2) कहीं किसी को धर्म परिवर्तन के लिए लालच तो नहीं दिया जा रहा? या कोई किसी के बहकावे में आकर तो अपना धर्म परिवर्तन नहीं कर रहा?

3) या कहीं यह परिवर्तन ज़बरदस्ती के प्रभाव के कारण तो नहीं आ रहा? पहली स्थिति धर्म के संपूर्ण इतिहास में प्रचलित है, और आज यह मान्यता प्राप्त परंपरा है। बहुत सी धार्मिक परंपराओं ने अपने धर्म के बारे में प्रवचन या उपदेश देने के लिए अपने धर्मदूत को दूसरे जगत में भेजा है, और यह बहुत ही पवित्र कार्य या उपदेश देना उनका धर्म माना जाता है। जबकि, यदि यह विषय दूसरे या तीसरे सवाल का है, तो यहाँ ध्यान से सोच-विचार करने की आश्यकता है, सामाजिक या आर्थिक महत्व धर्म परिवर्तन के कारण हो सकते हैं। यह हो सकता है कि एक धार्मिक प्रणाली दूसरे की तुलना में समाज में किसी व्यक्ति को अधिक ऊँची प्रतिष्ठा दिला सकती हो। यह भी संभव है कि यह प्रणाली आजीविका और शिक्षा के बेहतर अवसर प्रदान कर सकती हो।

ऐसे सभी मामलों में, व्यक्ति को यह आजादी होनी चाहिए कि वह स्वयं अपना निर्णय ले कि उसे अपना धर्म परिवर्तन कर किसी अन्य धर्म को अपनाना है या नहीं। ऐसे मामलों में, एक ऐसी योग्य प्रक्रिया होनी चाहिए जो संबंधित पक्षों और समुदाय को स्वीकार्य हो। अलग-अलग अमान्य हथकंडे अपना कर जबरदस्ती किसी का धर्म परिवर्तन करवाना और अपने धर्म के पालन के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य करना, न तो उचित और न ही स्वीकार्य है। धार्मिक उपदेश न सिर्फ पूरी सत्यनिष्ठा से दिया जाना चाहिए बल्कि यह पूरी तरह से शीतल भी होना चाहिए।

ऐसा कहा जाता है कि जिस धार्मिक संस्कृति में आप पले-बढ़े हैं, जीवनपर्यंत उसी का पालन करना, धार्मिक अभ्यास का सबसे सुरक्षित और सबसे अच्छा तरीका है। मेरी समझ से इस कथन का यह अभिप्राय है कि जीवन की सामान्य स्थितियों में अस्थायी लाभ के लिए एक नए धर्म का अनुकरण ठीक है, लेकिन कठिन क्षणों में, जैसे कि मृत्यु, यहां भारी भ्रम की संभावना हो सकती है। जरूर, नए धर्म में मजबूत नींव रखने के लिए यह एकदम अलग परिस्थिति हो सकती है। कुछ तपस्वी व्यक्तियों के अपवाद के साथ, सामान्य रूप से धार्मिक व्यक्तियों के लिए प्रेरणा त्रिमुखी की जानी चाहिए: एक- जीवन में खुश रहने के लिए, दो- मृत्यु के समय सहज रहने के लिए, और तीन- जीवन से परे मजबूत सुरक्षा की भावना के लिए।
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Old 27-02-2015, 06:06 PM   #3
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Default Re: धर्म परिवर्तन पर एक विमर्श

मुझे तो धर्म परिवर्तन में कुछ भी गलत नहीं लगता ..................... सविधान में भी लिखा है धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में
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Old 27-02-2015, 09:29 PM   #4
rajnish manga
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Default Re: धर्म परिवर्तन पर एक विमर्श

Quote:
Originally Posted by dipu View Post
मुझे तो धर्म परिवर्तन में कुछ भी गलत नहीं लगता ..................... सविधान में भी लिखा है धार्मिक स्वतंत्रता के बारे में
दीपू जी, आपका कथन सही है. उपरोक्त आलेख में भी कहा गया है की व्यक्ति को यह आजादी होनी चाहिए कि वह स्वयं अपना निर्णय ले कि उसे अपना धर्म परिवर्तन कर किसी अन्य धर्म को अपनाना है या नहीं। ....(लेकिन) अलग-अलग अमान्य हथकंडे अपना कर या जोर-जबरदस्ती से किसी का धर्म परिवर्तन करवाना और अपने धर्म के पालन के लिए किसी व्यक्ति को बाध्य करना, न तो उचित और न ही स्वीकार्य है। धार्मिक उपदेश न सिर्फ पूरी सत्यनिष्ठा से दिया जाना चाहिए बल्कि यह पूरी तरह से दबाव या प्रलोभन से मुक्त भी होना चाहिए।
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