05-03-2015, 11:11 PM | #11 | |
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Re: कुछ ओर!
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07-03-2015, 01:42 PM | #12 | |
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Re: कुछ ओर!
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12-03-2015, 10:55 PM | #13 |
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Re: कुछ ओर!
आदतन
छेड़ दी वो ही बात आदतन, रोए फिर सारी रात आदतन, चैन न जाने कहां सो गया... जाग उठे जज़्बात आदतन। रुत बदली, मौसम भी बदले, बदल गए हालात आदतन... तुम बदले, दुनिया बदली, मन क्या चाहे सौगात आदतन? हुआ वही, होता जो अक्सर, आंखो से गीरी बरसात आदतन, उन आंसु में पिघल चले, जो पुछे थे सवालात आदतन! आगे क्या करते बात आदतन? खा ली हमने मात आदतन! खत्म हुई हर बार की तरहा... आखरी वो मुलाकात आदतन! (दीप १२.३.१५)
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Last edited by Deep_; 13-03-2015 at 08:46 PM. |
12-03-2015, 11:38 PM | #14 |
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Re: कुछ ओर!
बहुत बढिया....बहुत बहुत बढिया......अब जब से आपको भी गजल लिखते देख रही हूँ तो मुझे भी बहुत मन हो रहा है कि कुछ लिखूँ , पर समझ नहीं आता कि आप लोग इतने अच्छे शब्द लेकर कहाँ से आते हैं? मुझे तो कुछ सूझता ही नहीं.....
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12-03-2015, 11:45 PM | #15 |
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Re: कुछ ओर!
एक बार शुरु कर दिजीए बस! आप भी कमाल का अच्छा सोचते और लिखते तो हो ही!
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12-03-2015, 11:48 PM | #16 |
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Re: कुछ ओर!
जी कोशिश करूँगी कि मैं भी आप लोगों जैसे लिख सकूँ.......
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13-03-2015, 11:44 AM | #17 | |
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Re: कुछ ओर!
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13-03-2015, 08:44 PM | #18 |
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Re: कुछ ओर!
खुब खुब धन्यवाद रजनीश जी!
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13-03-2015, 10:22 PM | #19 |
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Re: कुछ ओर!
शाम
यह दिन ढल रहा है, पर शाम रुक गई है, वो पंछी उड़ रहें है, आवाम रुक गई है। जो धुप में थी दौडी, वह बादलों की टोली, ईस सांझ के किनारे, सरेआम रुक गई है। सब रास्ते, चौराहे, गलीयां तो थक गई है, चहलपहल भी लेने... आराम रुक गई है। बस पोंछ कर पसीना, मैं आगे बढ रहा हुं, मेरी जिंदगानी हो कर बेनाम रुक गई है! (दीप १३.३.१४)
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13-03-2015, 10:55 PM | #20 |
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Re: कुछ ओर!
वाह...वाह !! आपकी कविताओं को पढ़ कर यही कह सकते हैं कि 'एक से बढ़ कर एक'. सारी रचना अद्वितीय है, किंतु उपरोक्त पंक्तियाँ आपकी कल्पना की जैसे खूबसूरती बयान करती है. बहुत बहुत धन्यवाद, दीप जी.
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