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Old 12-03-2015, 10:45 PM   #11
Deep_
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Originally Posted by pavitra View Post
बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......क्योंकि आप खुद ही खुद की बेहतर हिफाजत कर सकती हैं , किसी और से उम्मीद करना बेकार है।
सही बात है। खुद कुदरतने भी औरत को पुरुष से निर्बल बना कर और बच्चे के जन्म की जिम्मेदारी दे कर अन्याय किया है। अमरिका, ब्रिटन जैसे देशो में भी औरतों को पुरी स्वतंत्रता कहां है? वहां भी औरतो पर कितने अत्याचार होते है!

जैसा की पवित्राजी ने कहा की औरतों को चाहिए के वे अपने पैरो पर खड़ी हो जाए, पैसे कमाने लगे, अपने अस्तित्व को और मज़बुत बनाएं।

महिलाओं से खास कर के मेरी विनती है...जब कभी 'निर्भया कांड' जैसे मामले हो वहां चुप्पी न साधे। आपके घर का पुरुष भले बोले न बोले, आप जरुर ईसे एक मुद्दा बनाए। घर के लडकों को औरत जात की महत्ता समजाए और उसे महिला वर्ग की ईज्जत करना सिखाएं।
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Old 13-03-2015, 12:33 AM   #12
Pavitra
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Originally Posted by deep_ View Post
जैसा की पवित्राजी ने कहा की औरतों को चाहिए के वे अपने पैरो पर खड़ी हो जाए, पैसे कमाने लगे, अपने अस्तित्व को और मज़बुत बनाएं।

महिलाओं से खास कर के मेरी विनती है...जब कभी 'निर्भया कांड' जैसे मामले हो वहां चुप्पी न साधे। आपके घर का पुरुष भले बोले न बोले, आप जरुर ईसे एक मुद्दा बनाए। घर के लडकों को औरत जात की महत्ता समजाए और उसे महिला वर्ग की ईज्जत करना सिखाएं।
दीप जी , महिलाएँ खुद कैसे कह सकती हैं कि हमारी इज्जत करो??? ये तो पुरुषों को सोचना चाहिये ।
और महिलाएँ चाहे कितना भी आवाज उठाएँ , स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक कि पुरुषों में नैतिकता नहीं आती।
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Old 13-03-2015, 12:56 AM   #13
Deep_
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Originally Posted by pavitra View Post
दीप जी , महिलाएँ खुद कैसे कह सकती हैं कि हमारी इज्जत करो??? ये तो पुरुषों को सोचना चाहिये ।
और महिलाएँ चाहे कितना भी आवाज उठाएँ , स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक कि पुरुषों में नैतिकता नहीं आती।
नैतिकता तो आने से रही। बचपन से ही जब लडकों में लडकी के प्रति (जाने अन्जाने में...परिवार के सभ्यों द्वारा ही) निम्न भाव भर दिया जाता है तो फिर वह कैसे सुधरेंगे? लडकों को बचपन से ही स्त्री के प्रति आदर सिखाना पडेगा।

सभी महिला को अडोस पडोस की घरेलु हिंसा, मारपीट वगैरह के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी। अगर घर के कोई पुरुष की सोच स्त्री जाती के प्रति छोटी हो....तो उसे उस की मा, बहेन, बेटी, बहु वगेरह मिलझुल के ही सुधार सकती है। यह एक जंग है। ईसमे लडाई तो लडनी ही होगी।
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Old 13-03-2015, 01:45 PM   #14
Rajat Vynar
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बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......कभी कभी सोचती हूँ कि सच में औरतों की क्या जिन्दगी है , मैं सभी औरतों के बारे में नहीं कह रही पर ज्यादातर औरतें आज भी एक दबी हुई , घुटन भरी जिन्दगी जीती हैं । महिलाओं से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखता है ये समाज । कोई फर्क नहीं पडता कि आप कामकाजी हैं या घरेलू , आपके ऊपर ही सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं , और उम्मीद की जाती है कि आप उफ तक ना करें और सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभायें । समझती हूँ मैं कि उम्मीद भी उसी से की जाती है जिस पर भरोसा हो कि वो उन जिम्मेदारियों को निभा सकेगा । पर फिर भी जिम्मेदारियों के साथ कुछ अधिकार भी मिलने चाहिये जिससे उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके ।


हाल ही में एक विवादित डोक्युमेन्ट्री देखी , और देखने के बाद महसूस हुआ कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि ये समाज कितना नीचे जा चुका है । कोई भी महिला अगर इसे देखे तो शायद खुद ही बुर्का पहनना पसन्द करे या घूँघट में चले , और अगर वो ऐसा कर भी ले तब भी जरूरी नहीं है कि वो सुरक्षित रहेगी। हमारे समाज का एक बडा वर्ग इतनी निम्नतम सोच रखता है , जिसका शायद हम महिलाएँ कभी अन्दाजा भी नहीं लगा पाएँगी। अगर अशिक्षित वर्ग घटिया सोच वाला हो तब तो समझ आता है , लेकिन जब पढे-लिखे लोगों की सोच सुनी तो लगा कि क्या वास्तव में पुरुष इतने निम्नतम स्तर के होते हैं । यकीकन वे ऐसे ही होते हैं , मैं नहीं कहती कि हर पुरुष बुरा होता है पर ये भी सच है कि पुरुषों का एक बडा वर्ग आज भी निहायत ही निम्न सोच वाला है ।

अन्त में बस इतना ही कहूँगी कि बेहतर है कि महिलाएँ अपने पैरों पर खडी हो जायें , कमा सकें , और शायद हमारी किस्मत में हमेशा चौकन्ना रहना ही लिखा है इसलिये किसी पर भी अन्धविश्वास ना करते हुए , सभी को जाँचें - परखें ......क्योंकि आप खुद ही खुद की बेहतर हिफाजत कर सकती हैं , किसी और से उम्मीद करना बेकार है।
हुत अच्छा लिखा है आपने, पवित्रा जी। मेरे पास इस समस्या का एक अति उत्तम समाधान है। यदि हम सभी पुरुषों को बचपन से तगड़ी ट्रेनिंग देकर ‘डेमी’ बना दें तो इस समस्या का स्थाई समाधान निकल सकता है।
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Old 13-03-2015, 09:18 PM   #15
Rajat Vynar
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कभी उसके जन्मदिन पर उसे तोहफा दें.

आपके तोहफे की उसे भूख नहीं होती बल्कि उसे आप उसके अस्तित्व का एहसास दिलाते हो .उसकी अहमियत आप जताते हो .और आपके मन में उसके लिए कितना स्नेह और मान है वो आप जताते हो इसमे आपके अहंकार को कोई हानी नहीं है अपितु साथ साथ आपका सम्मान उसकी नजर में और बढेगा ही .एईसी बड़े दिल वाली होतीं है गृहणिया.

​हम तो अपनी कहानी के पात्रों का जन्मदिन तक नहीं भूलते।
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Old 14-03-2015, 12:10 PM   #16
soni pushpa
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बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......कभी कभी सोचती हूँ कि सच में औरतों की क्या जिन्दगी है , मैं सभी औरतों के बारे में नहीं कह रही पर ज्यादातर औरतें आज भी एक दबी हुई , घुटन भरी जिन्दगी जीती हैं । महिलाओं से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखता है ये समाज । कोई फर्क नहीं पडता कि आप कामकाजी हैं या घरेलू , आपके ऊपर ही सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं , और उम्मीद की जाती है कि आप उफ तक ना करें और सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभायें । समझती हूँ मैं कि उम्मीद भी उसी से की जाती है जिस पर भरोसा हो कि वो उन जिम्मेदारियों को निभा सकेगा । पर फिर भी जिम्मेदारियों के साथ कुछ अधिकार भी मिलने चाहिये जिससे उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके ।


हाल ही में एक विवादित डोक्युमेन्ट्री देखी , और देखने के बाद महसूस हुआ कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि ये समाज कितना नीचे जा चुका है । कोई भी महिला अगर इसे देखे तो शायद खुद ही बुर्का पहनना पसन्द करे या घूँघट में चले , और अगर वो ऐसा कर भी ले तब भी जरूरी नहीं है कि वो सुरक्षित रहेगी। हमारे समाज का एक बडा वर्ग इतनी निम्नतम सोच रखता है , जिसका शायद हम महिलाएँ कभी अन्दाजा भी नहीं लगा पाएँगी। अगर अशिक्षित वर्ग घटिया सोच वाला हो तब तो समझ आता है , ले

अन्त में बस इतना ही कहूँगी कि बेहतर है कि महिलाएँ अपने पैरों पर खडी हो जायें , कमा सकें , और शायद हमारी किस्मत में हमेशा चौकन्ना रहना ही लिखा है इसलिये किसी पर भी अन्धविश्वास ना करते हुए , सभी को जाँचें - परखें ......क्योंकि आप खुद ही खुद की बेहतर हिफाजत कर सकती हैं , किसी और से उम्मीद करना बेकार है।
[QUOTE=Pavitra;549246][size="3"]बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......कभी कभी सोचती हूँ कि सच में औरतों की क्या जिन्दगी है , मैं सभी औरतों के बारे में नहीं कह रही पर ज्यादातर औरतें आज भी एक दबी हुई , घुटन भरी जिन्दगी जीती हैं । महिलाओं से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखता है ये समाज । कोई फर्क नहीं पडता कि आप कामकाजी हैं या घरेलू , आपके ऊपर ही सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं , और उम्मीद की जाती है कि आप उफ तक ना करें और सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभायें । समझती हूँ मैं कि उम्मीद भी उसी से की जाती है जिस पर भरोसा हो कि वो उन जिम्मेदारियों को निभा सकेगा । पर फिर भी जिम्मेदारियों के साथ कुछ अधिकार भी मिलने चाहिये जिससे उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके ।


हाल ही में एक विवादित डोक्युमेन्ट्री देखी , और देखने के बाद महसूस हुआ कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि ये समाज कितना नीचे जा चुका है । कोई भी महिला अगर इसे देखे तो शायद खुद ही बुर्का पहनना पसन्द करे या घूँघट में चले , और अगर वो ऐसा कर भी ले तब भी जरूरी नहीं है कि वो सुरक्षित रहेगी। हमारे समाज का एक बडा वर्ग इतनी निम्नतम सोच रखता है ,

प्रिय पवित्रा जी सबसे पहले माफ़ी चाहूंगी देर से रिप्लाई के लिए और साथ ही आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने अपने इतने सुलझे हुए विचार यहाँ रखे ... जी पवित्रा जी हमारे समाज की यही विडंबना है की पुरुष में एहंकार की अधिकता है जिस वजह से वो नारी का सम्मान और आदर नहीं कर पाते ..
अनपढ़ लोग नारी के साथ मारपीट करते है दारू पीकर सताते हैं और कई तरह के अत्याचार नारी सहती है किन्तु सिर्फ अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग कई एइसे देखे गए हैं जो नारी सम्मान की बात को समझते तक नहीं क्यूंकि उनका mane egoआड़े आता है.
purush सब जानते समझते हैं की एक महिला के बिना उनका जीवन अधुरा है फिर भी वे नारी को सम्मान नहीं दे पाते ..
आपने जो बुरका ओढ़ने वाली बात कही पवित्रा जी इससे मेरे मन में एक ख्याल आया की पुराने ज़माने में पर्दा प्रथा शायद हमारे पूर्वजो ने इसीलिए ही बनाई होगी, ताकि एइसे वहशियों से महिलाओं की रक्षा हो सके . किन्तु मै नहीं मानती की पर्दाप्रथा से महिलाएं सुरक्षित हो सकतीं है क्यूंकि सिर्फ चेहरा ढकने से स्त्री नहीं बच सकती. क्यूंकि मन का गंदापन उन कुछ पुरुषों के अन्दर होता है जो स्त्री को हीन समझते हैं.

Last edited by soni pushpa; 14-03-2015 at 12:33 PM.
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Old 14-03-2015, 12:31 PM   #17
soni pushpa
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Originally Posted by deep_ View Post
सही बात है। खुद कुदरतने भी औरत को पुरुष से निर्बल बना कर और बच्चे के जन्म की जिम्मेदारी दे कर अन्याय किया है। अमरिका, ब्रिटन जैसे देशो में भी औरतों को पुरी स्वतंत्रता कहां है? वहां भी औरतो पर कितने अत्याचार होते है!

जैसा की पवित्राजी ने कहा की औरतों को चाहिए के वे अपने पैरो पर खड़ी हो जाए, पैसे कमाने लगे, अपने अस्तित्व को और मज़बुत बनाएं।

महिलाओं से खास कर के मेरी विनती है...जब कभी 'निर्भया कांड' जैसे मामले हो वहां चुप्पी न साधे। आपके घर का पुरुष भले बोले न बोले, आप जरुर ईसे एक मुद्दा बनाए। घर के लडकों को औरत जात की महत्ता समजाए और उसे महिला वर्ग की ईज्जत करना सिखाएं।


जी हाँ दीप जी विदेशो में भी महिलाओं पर अत्याचार होते हैं एइसा नहीं की भारत में ही होते हैं अत्याचार , क्यूंकि पुरे विश्व को इश्वर ने दो तरह के इन्सान महिला और पुरुष के रूप में विभक्त किया है . और हर जगह महिलाओं को ज्यदा सहना पड़ा है ... नारी सम्मान की बातें है हमारे शास्त्रों में की जहाँ नारी का पूजन होता है उसका सम्मान होता है( पूजन शब्द का यहाँ ये अ र्थ लगाया गया हैसम्मान से )किन्तु आज शास्त्रों की बातो को कौन मानता है? कोई नहीं..
सस्कर की कमी, निरंकुशता और बेशर्मी ने आज महिला के सम्मान को बहुत कम कर दिया है
और इसलिए बलात्कार, छेड़खानी जैसी घटनाएँ बढ़ गई है समाज में . जिसे महिलाएं सह रही हैं .
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