23-02-2015, 01:53 PM | #1 |
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हास्यास्पद
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23-02-2015, 02:04 PM | #2 |
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Re: हास्यास्पद
सन्दर्भवश यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि कथेतर साहित्य (Non fiction) के लेखन में किसी भी नई बात को ऐसे ही नहीं लिख दिया जाता है। नई बात के पक्ष में सशक्त तर्क और अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत किये जाते हैं जिसे पाठक आसानी से स्वीकार कर लें।
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23-02-2015, 02:05 PM | #3 |
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Re: हास्यास्पद
आस्था से सम्बद्ध प्रकरणों में ऐसा करना बहुत कठिन होता है, क्योंकि जब पूर्वस्थापित सिद्धान्तों के स्थान पर एक नया सिद्धान्त तर्क और प्रमाण के आधार पर स्थापित किया जाता है तो आस्तिक अपनी अटल आस्था के कारण उसे अंगीकृत और स्वीकार करने से इन्कार कर देते हैं और कुपित हो जाते हैं।
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23-02-2015, 02:07 PM | #4 |
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Re: हास्यास्पद
ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आप अपनी सन्तान के अनैतिक अथवा असामाजिक कृत्यों को स्वीकार न करके अपनी सन्तान के पक्ष में उनके दुर्गुणों को छिपाने और अपनी सन्तान को बचाने में व्यस्त हो जाते हैं। आपकी सन्तान के विरुद्ध चाहे जितने अकाट्य अथवा सशक्त प्रमाण हों, आप उन्हें स्वीकार नहीं करते।
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23-02-2015, 02:09 PM | #5 |
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Re: हास्यास्पद
आपके सच्चे मित्र भी आपकी ही राह पर चलते हैं और आपकी सन्तान के पक्ष में ही बोलते हैं, क्योंकि आपकी इच्छा के विरुद्ध जाने वाले मित्रों को मित्रों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि मित्र का प्रथम कर्तव्य होता है संकट के समय अपने मित्र को बचाना, न कि फँसाना।
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12-06-2015, 03:21 PM | #6 |
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Re: हास्यास्पद
kuch kuch aisa hi pk film ke saath bhi hua jitni buri bate aamir khan ke bare me likhi gai utani raju hirani ya vidhu vinod chopra ke bare me nahi jab ki us film ki patkatha likhne wale wahi the.Hindu kuritiyo ka uphas karne wali film oh my god ko bhi itana nahi kaha gaya kyuki usme paresh rawal hindu the na jane ye andh kattarta kab jaegi.
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