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#1 |
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![]() गुरु को दे अंगूठा जब एकलव्य बने महान हो लगन कुछ सीखने की इनसे सीखे हम जग को हिला सकते नहीं किसी से पीछे हम गुरु-शिष्य की फिर वही परम्परा जगानी है हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है | अपने प्राणों की आहुति देकर जो चले गये इन्कलाब का नारा दे ,गोली खाकर जो चले गये स्वतंत्रता -गणतन्त्र दिवस पाठशाला तक सिमट गये जिनके हाथों में बागडोर वो मधुशाला तक सिमट गये जो भूल गये भारत माँ को ,फिर उनको याद दिलानी है हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है | आओ जरा इतिहास को पलटो हर पापी की साख को पलटो उदहारण तुम्हे बहुत मिलेंगे आगे आओ ,साथ बहुत मिलेंगे हमसब को मिलकर ,भारत की संस्कृति वापिस लानी है हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है ||[/size] Last edited by महर्षि त्रिपाठी; 30-07-2015 at 05:14 PM. |
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#2 | |
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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#3 |
Member
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मित्र rajnish manga जी ,कविता की सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार ,,दुआ दें ऐसी ही रचनाये आपके मंच पर पोस्ट कर सकूँ |
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#4 |
Super Moderator
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मैं आपको अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ, मित्र, और उम्मीद करता हूँ कि आपकी खूबसूरत रचनायें निरंतर पढ़ने को मिलती रहेंगी.
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#5 |
Administrator
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हमसब को मिलकर ,भारत की संस्कृति वापिस लानी है
हमे भी इन सितारों में एक जगह बनानी है क्या खूब लिखा है महर्षि जी, दिल को छु लिया. ![]() |
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#6 |
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आपका धन्यवाद आ.abhisays जी ,,रचना आपको पसंद आयी ,,मेरा लिखना सफल हुआ |
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#7 |
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खुबसुरत रचना। माफी चाहूंगा अब तक मैने ईसे पढा नहीं था।
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इन सितारों में, जगह बनानी है, in sitaron me, jagah banani hai |
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