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Old 25-10-2015, 04:15 PM   #11
Deep_
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Default Re: ये कैसी भक्ति है ?

सही बात है पुष्पा जी। में एक ओर बात जोड़न चाहूंगा की कभी भी नारियल या फुल को मुर्ति की ओर फैंकना नहीं चाहिए। आप फुलों को उछाल कर अर्पित कर सकते है। नारियल भी केवल अग्नि में आहुति के समय उछाल सकतें है अगर अग्नि बहुत तेज हो।

रही बात शिवलिंग पर दूध चढाने की तो खास कर के omg फिल्म के रिलीझ के बाद कई एसे विडीयो और लेखनी सामने आई जो कुछ यह कहती थी.....



ईश्वर तो मा-बाप है। मां-बाप को बच्चे चाहे गलती से या जानबुज कर उन्हें चोट पहुंचाएंगे फिर भी वह नाराज कभी नहीं होंगे। ईश्वर तो सर्वव्यापी है ही, चाहे कोई माने न माने, समज़े न समज़े, देख पाए या न देख पाए।
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Old 25-10-2015, 11:42 PM   #12
soni pushpa
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Default Re: ये कैसी भक्ति है ?

Quote:
Originally Posted by rajat vynar View Post
शायद आप अभी मेरी बात ठीक से समझ नहीं पाईं। ईश्वर के सर्वव्यापी होने के सिद्धान्त को सभी जानते हैं, किन्तु घर पर बने मन्दिर में पूजा करने के फल में और सिद्धपीठ मंदिर में पूजा करने के फल में अन्तर होता है। यही कारण है यदि स्वयं विष्णु भगवान आकर भक्तों के घर में बने मन्दिर में बैठ जाएँ और रोज़ सुबह-शाम अपने हाथ से भक्तों को प्रसाद खिलाएँ तो भी भक्तगण तब तक तृप्त नहीं होंगे जब तक उन्हें तिरुपति के मंदिर के दर्शन का टिकट न मिल जाए। घर के मंदिर में खुद भगवान बैठे हैं जैसी बातों पर कौन यकीन करेगा? लोग तो तभी यकीन करेंगे जब आप तिरुपति में दर्शन करके बड़े साइज़ वाला लड्डू प्रसाद के रूप में उनके हाथ में न थमा दें। नहीं तो आपको लोग नास्तिक और ईश्वर विरोथी ही समझेंगे। अतः दर्शन का टिकट पाने के लिए भक्तगण संघर्ष करते ही रहेंगे।

भगवान के ऊपर नारियल इत्यादि फेंके जाने की घटना से आप व्यथित लग रही हैं, किन्तु हम तो यही समझते हैं कि यह तो भगवान की इच्छा है। भगवान को ज़रा भी भक्तों के नारियल फेंकने से कष्ट होता तो वे स्वयं इस पद्धति को परिवर्तित करके भक्तों को दर्शन देते। भगवान कोई मनुष्प तो हैं नहीं जो उन्हें नारियल जैसी छोटी वस्तु से चोट लग जाए, क्योंकि ईश्वर को सर्वशक्तिमान कहा गया है। हम मनुष्य भगवान के ऊपर हिमालय पर्वत फेंक कर भी उन्हें चोट नहीं पहुँचा सकते।

आपकी बात का जवाब आपकी ही टिपण्णी में है रजत जी ..धन्यवाद
soni pushpa is offline   Reply With Quote
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भक्ति या दिखावा, यह कैसी भक्ति, yeh kaisi bhakti


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