My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Hindi Forum > Blogs
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 27-10-2015, 11:28 PM   #1
अरुण कान्त शुक्ल
Junior Member
 
Join Date: Aug 2015
Posts: 3
Rep Power: 0
अरुण कान्त शुक्ल is on a distinguished road
Default रामकिशोर भट्ट (कहानी)

मैं चौथी मंजिल के मेरे बेटे के फ्लैट से नीचे कंपाउंड में उतर कर सुबह सबेरे की चहलकदमी के लिए नीचे आया तो कल कि तरह आज भी मेरी उन महानुभाव से मुलाकात हुई जो मेरे वाले ब्लाक के ही किसी फ्लैट में रहते हैं | मेरे नमस्कार के प्रत्युत्तर में उन्होंने भी मुझे नमस्कार कहा | कल भी ऐसा ही हुआ था | पर , कल के प्रत्युत्तर और आज के प्रत्युत्तर में यह अंतर अवश्य आया कि उनके चेहरे पर मुझसे परिचय करने कि मंशा स्पष्ट दिखाई दी | मैंने उनकी इस मंशा को पढ़ते हुए तुरंत ही अपना पूरा नाम उन्हें बताया और कहा कि मैं आप के इस शहर में नया नया ही आया हूँ | उन्होंने भी अपना परिचय दिया और कहा कि वे भी यहाँ अपने बेटे के साथ तीसरी मंजिल के फ्लैट में रहते हैं | मेरी तरह वे भी इस शहर के क्या , इस राज्य के भी निवासी नही हैं | फर्क यही है कि उन्हें अब इस शहर में ज़्यादा अजनबीपन नही लगता क्योंकि पिछले तीन वर्षों से वे यहाँ हैं | मैंने उन्हें बताया कि मेरा रिटायरमेंट कुछ माह पूर्व ही हुआ है | मेरा बेटा लगभग दो साल से इस शहर में है हालाकि वह भी इस टाउनशिप के फ्लैट में हाल ही में शिफ्ट हुआ है |


जहाँ , मैं और मुझसे नवपरिचित महानुभाव खड़े होकर बात कर रहे थे , उसी के पास उस टाउनशिप का भारी भरकम द्वार था और वहीँ पर द्वार के दोनों ओर गार्ड्स की गुमठियां थीं | शायद एक बार मैं चार गार्ड की ड्यूटी वहां लगती थी | टाउनशिप की दक्षिण और उत्तर दिशा में ऐसे दो बड़े दरवाज़े और थे | यह टाउनशिप लगभग 1300 एकड़ में बसी होगी | जिसमें उच्च आय वर्ग तथा माध्यम आय वर्ग के लगभग 100 स्वतंत्र आवास तथा 100 फ्लैट वाले चार ब्लॉक बने हुए थे | टाउनशिप के लगभग मध्य में एक सुन्दर बगीचा था , जिसमें मॉर्निंग वाक वालों के लिए पाथवे भी बना हुआ था | कम्युनिटी हॉल , क्लब , जिम जैसी तमाम आधुनिक सुविधाएं भी मौजूद थीं | इस टाउनशिप में मेरा यह चौथा दिन था और मॉर्निंग वाक के लिए निकलने का दूसरा दिन | मैं कल भी मॉर्निंग वाक के लिए बगीचे नहीं गया था बल्कि चारों ब्लॉक को घेरते हुए चारों तरफ जो सीमेंट रोड थी, उस पर ही घूमकर वापस हो गया था | वे महानुभाव भी कल ऐसा ही किये थे और शायद रोज ही ऐसा करते भी होंगे | उन्होंने मुझसे पूछा कि आप गार्डन जायेंगे या कल के समान आज भी ब्लॉक के चारों ओर घूमेंगे | मैंने कहा कि मुझे अधिक भीड़ भाड़ नही रुचती है | हम दोनों एक साथ ही आगे बढ़े | महोदय , जैसा कि मैंने आपको बताया कि मैं इस टाउनशिप में एकदम नया था और न तो उस शहर के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी थी और ना ही उस टाउनशिप के बारे में , जहाँ मैं रह रहा था | सही पूछिए तो चौबीसों घंटे मेरा मन अपने उस छोटे से शहर में वापस जाने के लिए व्याकुल रहता था , जहाँ मैंने जीवन के अधिकांश वर्ष नौकरी करते हुए बिताए थे | यह भी तय ही था कि जल्दी ही मैं वहां से निकल लूँगा | इसलिए मेरा कोई भी इरादा आपको इधर उधर कि बातें बताकर उलझाने का नही है | दरअसल , दूसरे दिन के उस मॉर्निंग वाक में मेरे साथ वह घटना हुई , जिसकी याद आने पर काफी दिनों तक मेरे रोंगटे खड़े हो जाते थे | आज रौंगटे तो खड़े नही होते हैं पर ह्रदय में जो व्याकुलता पैदा होती है , उससे निजात पाने में काफी वक्त लगता है | हुआ यूं कि जब मैं अपने उन नवपरिचित मित्र के साथ दूसरा चक्कर लगा रहा था तो उन्होंने बात शुरू करते हुए कहा कि क्या आप इस बात को मानते हैं कि अब ये दुनिया हम जैसे बूढों के रहने लायक नहीं रह गयी है? मैंने उनको प्रश्नवाचक निगाहों से देखा और लगभग पूर्ण सहमती में सिर हिलाते हुए कहा कि हाँ, ऐसा तो है और शायद पहले भी ऐसा ही होता होगा| मुझे लगा कि अवश्य ही महानुभाव शहरों में बढ़ती हुई उदण्डता या विखंडित होते परिवारों में वृद्धों की उपेक्षा से व्यथित होंगे| अनेक बार स्वयं मुझे भी नव-धनाड्य परिवारों के शोहदों की बदतमीजियों से दो चार होना पड़ा था| मैंने आदत के अनुसार बात को सैद्धांतिक जामा पहनाने की कोशिश करते हुए कहा कि, हाँ, आजकल चारों तरफ मसल और मनी-पॉवर का बोलबाला है| विशेषकर, ये जो पिछले ढाई दशक में भ्रष्टाचार और अवैध कमाई करके धनिकों का नया वर्ग तैयार हुआ है, पूरी सोसाईटी को अपने बाप की जागीर समझकर चलता है| उन्होंने कोई प्रतिवाद नहीं किया| दो-चार कदम चलने के बाद वे बोले, रिटायरमेंट के बाद क्या कर रहे हैं? कहीं कुछ काम करने का इरादा है क्या? मैंने कहा कि व्यस्त तो मैं हूँ, लिखने पढने का शौक है, वही करता रहता हूँ| पर, आर्थिक आय के नजरिये से कोई काम-धंधा नहीं करता हूँ और न ही ऐसा करने की कोई मंशा है| फिर कैसे चलता है? मैंने बताया कि मुझे पेंशन मिलती है और उससे थोड़ा ठीक ठाक गुजारा हो जाता है| हूँ, उनका हुंकारा मुझे सुनाई दिया| फिर वे बोले, पेंशन सबको नहीं मिलती| प्राईवेट सेक्टर में तो आप मान लो कि पेंशन है ही नहीं| मैंने कहा, हाँ प्राईवेट सेक्टर में काम करने वाले 92% लोगों को कोई पेंशन नहीं है| फिर उन्होंने इतना पढ़-लिख जाने के बाद भी बच्चों को ढंग का रोजगार नहीं मिलता, इसके बारे में बताया| यह भी बताया कि बड़े-बड़े पैकेज बस दिखाने के होते हैं, हाथ में जो आता है, उससे किसी की दवा-दारु भी नहीं हो सकती| मैं चूंकि नौकरी के दौरान यूनियन में सक्रिय था तो उनकी सभी बातों के मर्म को समझ रहा था| पर, किसी भी बात को आगे बढ़ाने के बजाय, मैंने केवल हाँ-हूँ करके ही चलना जारी रखा| मैं थोड़ा विस्मित तब हुआ, जब हम उस बड़े गेट के पास पहुंचे, जहां गार्ड खड़े रहते हैं| मैंने ध्यान दिया कि गुमठी के बाहर खड़े दोनों गार्ड मुझे बड़े ध्यान और अचरज से देख रहे हैं| मुझे लगा कि जब मैंने उन महानुभाव के साथ चलना शुरू किया था, तब भी वे मुझे वैसे ही देख रहे थे| अब अच्छा यही होगा कि आप लोगों की सुविधा के खातिर और चूंकि कहानी के अंत में भी किसी न किसी नाम की जरुरत पड़ेगी ही, इन महानुभाव का नाम जान लिया जाए| मैंने उनसे पूछा कि आपका शुभनाम, तो उन्होंने पहले तो थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई और फिर कहा रामकिशोर| पहले मैंने सोचा कि पूरा नाम पूछूं, फिर न जाने क्या सोचकर चुप लगा ली| हाँ, तो जब मैं रामकिशोर जी के साथ बात करते करते बड़े गेट के पास पहुंचा तो दोनों गार्ड मुझे घूर रहे थे| मुझे लगा कि वे दोनों पहले भी शायद ऐसे ही घूर रहे थे| मैं उनके विषय में ज्यादा सोचता, उसके पहले रामकिशोर जी ने मेरा ध्यान खींचते हुए गेट के बाहर की ओर स्थित एक डेली नीड्स की दुकान की तरफ इशारा किया और कहा कि दो साल पहले वहां एक ऐसी घटना हुई थी, जिसके कारण इसी ब्लाक की तीसरी मंजिल में रहने वाले एक वृद्ध ने आत्महत्या कर ली थी| वैसे भी जब आप किसी नयी जगह रहने जाते हैं तो वहां की लीक से हटकर किसी भी घटना के बारे में जानने की आपकी जिज्ञासा असाधारण रूप से बढ़ी हुई होती है| मैंने तुरंत उनसे पूछा, क्या हुआ था? उन्होंने आगे बढ़ने का इशारा करते हुए कहा, उस बूढ़े की कोई गलती नहीं थी, वह बिचारा बस थोड़ी लालच में आया और फिर शर्म के कारण फंस गया| मैंने फिर से कुछ पूछने की बजाय, उनकी तरफ ऐसी निगाहों से देखा, जिनका मतलब होता है, अब आगे भी कहो! रामकिशोर जी भी समझ गए, बोले उन वृद्ध याने भट्ट महोदय की आदत थी कि इसी ब्लाक के तीन चक्कर लगाने के बाद वे सामने की उस डेली नीड्स की दुकान में जाते थे और अपनी पोती के लिए एक रुपये की दो चाकलेट लेते थे, जो वह छोटी बच्ची रोज स्कूल लेकर जाती थी| भट्ट महोदय एक निजी स्कूल में शिक्षक थे और वहीं से रिटायर हुए थे| उनका एक बेटा और एक बेटी थी| दोनों ने कंप्यूटर में उच्च शिक्षा के साथ साथ बिज़नेस मेनेजमेंट का कोर्स भी कर रखा था, पर ढंग की नौकरी नहीं लगी थी| बेटी सहकर्मी के साथ शादी के बाद अपेक्षाकृत ठीक ठाक जिन्दगी बिता रही थी, पर, बेटा किसी अच्छे जॉब के इंतज़ार में इस शहर में किसी डीलर के यहाँ सेल्समेन का काम कर रहा था| भट्ट महोदय ने अपनी जीवन भर की बचत और अपने रिटायरमेंट पर मिला भविष्यनिधि और ग्रेच्युटी का पूरा पैसा लगाकर इस टाऊनशिप के इस ब्लाक में दो बेडरूम का फ्लेट तीसरी मंजिल में लिया था| नतीजा वही था, जो ऐसे मामलों में होता है, बहू टाऊनशिप के घरों की स्त्रियों के ब्लाऊज और बच्चों के कपड़े सिलती थी और भट्ट महोदय पास ही चलने वाली एक कोचिंग इन्स्टीट्यूट में 1000 रुपये मासिक पर रोज दिन में तीन पीरियड अंगरेजी पढ़ाते थे| मैंने उपरोक्त पूरा वर्णन, भूमिका आप जो भी कुछ कहिये, न केवल ध्यान से सुनी बल्कि रामकिशोर की को बीच में टोका भी नहीं| इस बीच हमारा तीसरा राऊंड भी पूरा हो चुका था और मैंने गेट के पास पहुँचने के बाद ध्यान दिया कि वे दोनों गार्ड फिर मुझे घूर रहे थे| फिर, वह हादसा क्या था, मैंने रामकिशोर जी से पूछा? मेरी बढ़ी हुई जिज्ञासा के बावजूद, मैं चौथे राऊंड के बाद पांचवां राऊंड लगाने के मूड में बिलकुल नहीं था| पर, रामकिशोर जी, जो उम्र में अवश्य ही मुझसे चार-पांच वर्ष बड़े होंगे, बिलकुल भी थके नहीं लग रहे थे| रामकिशोर जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि दो साल पहले की बात है, मुझे तो तारीख भी याद है, 15 अगस्त, भट्ट महोदय ने रोज की तरह ब्लाक के तीन चक्कर लगाए और फिर एक रुपये का सिक्का लेकर उस डेली नीड्स की दुकान पर पोती के लिए चाकलेट लेने गए| इतना कहकर रामकिशोर जी ने मेरी तरफ देखा, उनकी आँखों में अजीब तरह की चमक थी| मुझे याद आया, आज भी तो 15 अगस्त है, आजादी का दिन| लालकिले से देश की केटिल क्लास को देशप्रेम की अफीम चटाने का दिन| रामकिशोर जी ने कहा, 15 अगस्त भट्ट महोदय का पैदा होने का दिन भी था| मैंने कहा, आपका मतलब उनका बर्थडे| हाँ, रामकिशोर जी बोले, भट्ट महोदय अकसर कहा करते थे, एक 15 अगस्त को अँधेरी कोठरी से निकलकर इस जेलखाने में आये थे, किसी 15 अगस्त को इस दूसरे जेलखाने से उड़ लेंगे| भट्ट महोदय के लिए यदि माँ का गर्भ अँधेरी कोठरी था तो ये दुनिया एक जेलखाना| हाँ, तो मैं बता रहा था, रामकिशोर जी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि उस दिन सुबह भट्ट महोदय रोज की तरह डेली नीड्स की दुकान पर गए, उन्होंने अपने पाजामे की जेब से एक रुपया का सिक्का निकालकर दुकानदार को दिया और जब दुकानदार चाकलेट निकालने के लिए मुड़ा तो उनका ध्यान नीचे पाँव के पास पड़े नोट पर गया| उन्होंने दाहिने पाँव के अंगूठे और उसके बाजू वाली अंगुली से नोट को पकड़कर, पाँव को उपर उठाया| फिर, बाएं हाथ से नोट को पकड़कर देखा, नोट एक हजार का था| उनकी एक माह की कमाई, मेहनत, जो भी आप कह लें| आप क्या सोचते हैं, रामकिशोर जी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा, भट्ट महोदय के मन में एक सेकेण्ड के हजारवें हिस्से के लिए भी ये ख्याल आया होगा कि वे हजार के नोट के बारे में दुकानदार को न बताएं और अपनी जेब में रख लें| नहीं मित्र, नहीं, रामकिशोर जी ने मुझे संबोधित करते हुए कहा, भट्ट महोदय ने वह नोट तुरंत जेब में नहीं रखा, वे उसे हाथ में पकड़कर दुकानदार के पलटने का इंतज़ार करने लगे| बस यही दो या तीन सेकेण्ड का समय भट्ट महोदय के लिए काल का दूत बन गया| हुआ यूं कि दुकानदार चाकलेट निकालकर जैसे ही मुड़ा, भट्ट जी के पीछे एक मोटरसाईकिल आकर रुकी और उस पर सवार एक उज्जड से जवान ने बड़ी भद्दी गाली देते हुए दुकानदार से पूछा, अबे यहाँ कहीं मेरा एक हजार का नोट गिर गया है, किसी को मिला क्या? दुकानदार बोला आपके जाने के बाद तो कोई आया नहीं, बस दादा जी आये हैं, यहाँ तो किसी को नहीं मिला| दुकानदार के जबाब में अनायास भट्ट महोदय भी शामिल हो गए| लड़का उनसे पूछता तो उनका जबाब वह नहीं होता, जो दुकानदार ने दिया था| बल्कि वे अपनी मुठ्ठी खोलकर उस लड़के को दिखाते कि उन्हें मिला है और वे दुकानदार को यह बताने ही वाले थे| पर, ऐसा कुछ नहीं हुआ| दुकानदार के जबाब में अनायास शामिल हो गए भट्ट महोदय नई परिस्थिति पर विचारकर कुछ कह पाते कि लड़के ने मोटर साईकिल के एक्सीलेटर को जोर से घुमाया, तेज आवाज हुई, यूं लगा कि लड़का जाने वाला है| घटनाक्रम तेजी से बदल रहा था| इस बीच जाने कब और कैसे तेज गति से उनका बायाँ हाथ पाजामे की बाईं जेब में गया और फिर उतनी ही तेज गति से वापस बाहर भी आ गया| कहानी के इस मोड़ पर आकर रामकिशोर जी थोड़ा रुके और फिर अपनी नज़रों को मेरे चेहरे पर गड़ाते हुए उन्होंने मुझसे पूछा कि आपको क्या लगता है, भट्ट महोदय के मन में नोट को लेकर लालच आ गयी थी? स्पष्ट था, मुझे जबाब देना ही था| बिना मेरे जबाब के कहानी आगे नहीं बढ़ेगी, यह रामकिशोर जी नज़रों से स्पष्ट था| मैंने कहा नहीं, यदि वह लड़का अनायास पूरे घटनाक्रम में प्रवेश नहीं करता तो भट्ट महोदय दुकानदार से चाकलेट लेते समय दुकानदार को उस नोट के बारे में अवश्य ही बताते| मेरा जबाब सुनकर रामकिशोर जी के चेहरे पर एक संतोष का भाव उभरा| पर, मैंने कहा, कुछ क्षणों के लिए भट्ट महोदय के मन में नोट उनका हो सकता है, ये भाव अवश्य आये ही होंगे| वरना, वे नोट उठाने के पहले ही दुकानदार को वहां नोट पड़े रहने की जानकारी दे देते| रामकिशोर जी ने सहमती में सिर हिलाया और फिर कहा निजी स्कूल का सेवानिवृत शिक्षक, जिसकी जीवन भर की कमाई दो बच्चों को पालने-पढ़ाने में और अंत में एक घरोंदा खरीदने में लग गयी हो और रिटायरमेंट के बाद अपनी दवा-दारु के लिए उसे 1000 रूपये मासिक पर सप्ताह में पांच दिन कोचिंग इन्स्टीट्यूट में पढ़ाना पड़ता हो, 1000 का नोट देखकर उसके मन में लालच आ जाना अस्वाभाविक नहीं है| पर, मैंने कहा, यदि सब कुछ नार्मल रहता तो उन्होंने उस लालच पर अवश्य ही विजय प्राप्त की होती| मैंने यह अंतिम बात, यह मानकर कही थी कि भट्ट महोदय ने उस नोट को अपनी जेब में रख लिया था| रामकिशोर जी ने मेरी ओर देखते हुए कहा, क्या आप ये सोच रहे हैं कि भट्ट महोदय ने वह नोट अपनी जेब में रख लिया था? नहीं, भट्ट महोदय नोट को जेब में नहीं छोड़ सके थे, उन्होंने जेब में हाथ तो बस हड़बड़ में डाला था| वे अनायास एक ऐसे जाल में फंस गए थे, जिसमें से निकलने का रास्ता उन्हें सूझ ही नहीं रहा था| पूरी जिन्दगी ईमानदारी और सादगी से बिता चुके शिक्षक भट्ट का चेहरा इस सारी उहा-पोह में चोर ठहराए जाने की भयावह कल्पना से सफ़ेद पड़ गया था| लड़के ने भी शायद भट्ट महोदय के हाथ की हलचल को भांप लिया था| वो मोटरसाईकिल को बंद कर भट्ट महोदय के ठीक बाईं बगल में आकर खड़ा हो गया और भट्ट महोदय की बंद मुठ्ठी को पकड़कर बोला, मुठ्ठी खोल बुढ्ढे, इसमें क्या है? अवाक् भट्ट महोदय की जबान पर जैसे ताला लग गया था कि उस लड़के ने भट्ट महोदय के हाथ में नोट देखकर कहा बुढ़ऊ शर्म नहीं आती, बाप का माल समझकर दबाने की फिराक में था क्या? भट्ट महोदय जो अभी तक कुछ चैतन्य हो गए थे लड़के पर बिफरते हुए बोले, ठीक से बात करो बेटा, नोट दबाना होता तो कबका जेब में रख लिया होता| दुकानदार या तो परिस्थिति को बिलकुल नहीं समझ पा रहा था या नौजवान के बेक ग्राऊंड से पूरी तरह वाकिफ होने के कारण बीच में कुछ नहीं बोलने में ही अपनी भलाई देख रहा था| डीएसपी का बेटा इस पूरे इलाके का रसूखदार दादा है, इससे पंगा लेना मतलब दुकानदारी बंद करना है| नौजवान ने भट्ट महोदय की मुठ्ठी से नोट को छीन लिया और उन्हें एक जोरदार धक्का दे दिया| भट्ट महोदय जमीन पर गिर पड़े, उन्हें बहुत अपमानित लगा| इस बीच कई लोग वहां आकर खड़े हो गए थे, उनमें से कुछ उसी टाऊनशिप के भट्ट जी के परिचित भी थे| शोरगुल के बाद गार्ड्स ने भट्ट महोदय के बेटे को भी फोन कर दिया था| वो आया और अपने पापा को साथ ले गया| भट्ट महोदय ने उससे कहने की कोशिश की कि वो बेटा..बेटा बोला, कोई बात नहीं पापा..उसके मुंह कौन लगेगा? आपको वो पैसा नहीं उठाना था| यदि जरुरत थी तो मुझसे कहते| भट्ट महोदय चुपचाप बेटे के साथ घर वापस चले गए| इस सब में पोती की चाकलेट दुकान में ही छूट गयी| अब मेरी बारी थी, मैंने रामकिशोर जी की तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखा| वे बोले, इसके बाद जो हुआ, वह बहुत दुखद है| घर पहुंचकर भट्ट महोदय अपने कमरे में चले गए| करीब आधे घंटे बाद उनके घर से रोने की आवाजें आने लगी थीं| उन्होंने अपने कमरे में फांसी लगा ली थी| इस बीच चौथा चक्कर पूरा हो गया था| मै और रामकिशोर जी एक साथ पार्किंग में लिफ्ट की ओर बढ़े| गार्ड अभी भी मुझे घूर रहे थे| तीसरी मंजिल पर रामकिशोर जी लिफ्ट से बाहर निकले| मैंने चौथी मंजिल के अपने फ्लेट में पहुँचने के बाद अपने लड़के को पूरी बात बताई| उसने कहा, हाँ, फिर भट्ट महोदय का बेटा भी कुछ दिनों में उस फ्लेट को बेचकर चला गया था| फिर अचानक उसे जैसे कुछ याद आया, वह बोला क्या नाम बताया आपने उस बुजुर्ग का, जिसने आपको यह कहानी बताई, रामकिशोर मैंने कहा| उसने नीचे गार्ड से फोन पर कुछ पूछा और फिर कहा की कल से पापा आप मार्निंग वाक् के लिए गार्डन जाना| मैंने पूछा गार्ड ने क्या बताया, वो बोला, जिन्होंने फांसी लगाई थी, उनका पूरा नाम रामकिशोर भट्ट था|
अरुण कान्त शुक्ला
20/2/15
अरुण कान्त शुक्ल is offline   Reply With Quote
Old 28-10-2015, 11:59 AM   #2
Deep_
Moderator
 
Deep_'s Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Posts: 1,810
Rep Power: 39
Deep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond reputeDeep_ has a reputation beyond repute
Default Re: रामकिशोर भट्ट (कहानी)

बहुत ही सुंदर और ह्रदयस्पर्शी कहानी है। आप से अनुरोध है की पुरी कहानी एक ही पोस्ट में डाल देने के बजाय ईन्हें टुकडों में बांट कर पोस्ट करें, ताकि रुचि बनी रहे। आप अगर चाहें तो प्रतिकात्मक चित्र /फोटो वहैरह भी रख सकतें है।
धन्यवाद।
Deep_ is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 02:53 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.