29-11-2015, 12:19 PM | #1 |
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चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
कालिदास से बदला लेने के उद्देश्य से हमने अपनी कहानी 'आइ एम सिंगल अगेन' में कालिदास का वर्णन बहुत कम किया, फिर भी ऐतिहासिक कहानी होने के कारण इतिहास में उल्लिखित तथ्यों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। यही कारण था- हमारी हास्य कहानी 'आइ एम सिंगल अगेन' में न होते हुए भी कहानी का सबसे बड़ा खलनायक कालिदास ही था, क्योंकि ऐतिहासिक कहानी का सबसे बड़ा तथ्य यह था कि विद्योत्तमा के राजमहल से निकाले जाने के बाद ज्ञान प्राप्त करके कालिदास महाराजा विक्रमादित्य के राजदरबार का कवि बन चुका था और मालव देश में उसकी वापसी कभी भी हो सकती थी। यह बात चाणक्य के संज्ञान में थी और जब विद्योत्तमा ने चाणक्य से दूसरी बार ब्रेकअप किया तो चाणक्य समझा कि कालिदास की वापसी हो चुकी है और उसी समय महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने भी मालव देश में तैनात मौर्य देश के गुप्तचरों से प्राप्त सूचना के आधार पर कालिदास की वापसी की पुष्टि की। वस्तुतः मालवदेश में कालिदास की वापसी के मसले पर मौर्य देश के गुप्तचर विभाग ने बहुत बड़ा गच्चा खाया था, क्योंकि कालिदास को विद्योत्तमा के राजमहल में प्रवेश करते हुए सभी ने देखा था, किन्तु उसकी वापसी कोई नहीं देख सका था, जबकि सच्चाई यह थी कि कालिदास विद्योत्तमा का चरण स्पर्श करने का प्रयत्न करने के बाद विद्योत्तमा को ठुकराकर वापस चला गया था। इस बात का संक्षिप्त उल्लेख सिर्फ़ अजूबी के देश स्वाहा के राजपत्र में किया गया था, किन्तु उस ओर किसी का ध्यान नहीं गया था। मौर्य देश के गुप्तचर विभाग से हुई चूक के कारण कालिदास की वापसी की खबर की पुष्टि होते ही चाणक्य के पास सिर्फ़ एक ही रास्ता बचता था- वह यह कि विद्योत्तमा को एक बधाई-संदेश भेजकर विद्योत्तमा से हमेशा के लिए किनारा कर ले, फिर भी कालिदास की वापसी की अन्तरिम पुष्टि करने के लिए चाणक्य ने मालवदेश की यात्रा की और पाया कि मालव देश के राजपत्र में से वे सभी अभिलेख हटाए जा चुके थे जिसमें चाणक्य का उल्लेख था। इसके अतिरिक्त विद्योत्तमा की बेरुखी को देखते हुए कालिदास की वापसी की घटना को सत्य मानते हुए चाणक्य वापस मौर्य देश लौट गया। चाणक्य की वापसी की ख़बर सुनते ही विद्योत्तमा ने मालवदेश में काला झण्डा फहराकर शोक मनाया, किन्तु चाणक्य ने इसे विद्योत्तमा का हाई वोल्टेज़ ड्रामा समझकर अनदेखा कर दिया। चाणक्य के मौर्य देश वापस जाने के बाद महारानी विद्योत्तमा भिखारिन और कवियित्री विद्या के भेष में मौर्य देश में आकर रहने लगी। इसे चाणक्यगीरी में विस्तृत रूप से लिखा जा चुका है। विद्योत्तमा और चाणक्य के ब्रेकअप का समाचार सुनकर विद्योत्तमा की सहेली एवं सेनापति अजूबी भी नाचने-गाने वाली मधुबाला के भेष में मौर्य देश में आकर रहने लगी। कुछ दिन बाद विद्योत्तमा और अजूबी ने अपने-अपने देशों के राजदरबार के कवियों अौर कलाकारों को मौर्य देश में बुला लिया। विद्योत्तमा और अजूबी से सम्बन्धित होने के कारण इन कलाकारों को 'चाणक्य गेस्ट हाउस' में ठहराया जाता। मौर्य देश में एकाएक कलाकारों की लम्बी-चौड़ी भीड़ देखकर आठों दिशाओं से ज्ञान बटोरने में विश्वास रखने वाले महामंत्री राजसूर्य बड़े प्रसन्न हुए तथा विद्या, मधुबाला और अन्य कलाकारों की तारीफ़ों के पुल बाँधते हुए साहित्य-रस का पान करके आनन्दित होने लगे। इसे भी चाणक्यगीरी में विस्तृत रूप से लिखा जा चुका है। मौर्य देेश में अजूबी को चाणक्य पर डोरे डालता हुआ देखकर विद्योत्तमा ने अजूबी की निन्दा करते हुए मालवदेश के राजपत्र में लिखा- 'ऊपरवाला सब देखता है।' मालवदेश का राजपत्र पढ़कर अजूबी विद्योत्तमा से लड़ने के लिए मालवदेश पहुँच गई और उसने क्रोधपूर्वक विद्योत्तमा से कहा- 'तुम्हें ऐसा कहने का कोई अधिकार नहीं। तुम्हारा चाणक्य से ब्रेकअप हो चुका है और मैंने अपनी टाँग तुम्हारे ब्रेकअप होने के बाद फँसाई है!' विद्योत्तमा ने क्रोधपूर्वक कहा- 'टाँग तोड़ दूँगी तुम्हारी। चाणक्य से आज मेरा ब्रेकअप हुआ तो क्या हुआ? कल 'ब्रेकडाउन' भी हो सकता है। चाणक्य मेरा था, मेरा है, और मेरा ही रहेगा।' इस बात पर अजूबी और विद्योत्तमा में तलवारें खिंच गईं और दोनों में तलवारबाज़ी होने लगी और तलवारबाज़ी में दोनों के कपड़े फट गए। उसी समय विद्योत्तमा की राजज्योतिषी ज्वालामुखी ने आकर दोनों की लड़ाई बन्द करवाने के लिए चतुराईपूर्वक झूठ बोलते हुए कहा- 'तुम लोग चाणक्य के लिए यहाँ आपस में लड़-मर रही हो और मौर्य देश में मालव देश और मैसूर पर हमला करने के लिए वहाँ की सेनाएँ गुपचुप रूप से तैयारी कर रही हैं।' ज्वालामुखी की बात सुनकर विद्योत्तमा और अजूबी ने आपस में लड़ना बन्द कर दिया। विद्योत्तमा ने आश्चर्यपूर्वक ज्वालामुखी से पूछा- 'तुम्हें कैसे पता?'
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30-11-2015, 11:25 AM | #2 |
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Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
लड़ाई बन्द करवाने के चक्कर में झूठ बोलकर अपनी ही बातों में फँसी ज्वालामुखी ने सकपकाकर और अधिक सफ़ेद झूठ बोलते हुए कहा- 'यह बात मुझे अपनी तांत्रिक शक्ति से पता चली है। आपस में लड़ने से इस समस्या का हल नहीं निकलेगा। चैन की नींद सोने के लिए हमें चाणक्य को ख़त्म करना होगा। इसके लिए मौर्य देश में अजूबी चाणक्य पर डोरे डाले अौर स्वयं विद्योत्तमा अजूबी का समर्थन करे तो चाणक्य अजूबी के प्रेमजाल में अवश्य फँस जाएगा। इसके बाद अजूबी चतुराईपूर्वक चाणक्य को मैसूर बुलाए। मैसूर में चाणक्य को अकेला पाकर उसका काम तमाम कर दिया जाएगा।'
अजूबी ने अपने मन में सोचा- 'ज्वालामुखी की योजना के अनुसार काम करने में ही बुद्धिमानी है। ऐसे तो विद्योत्तमा चाणक्य से इश्क़ लड़ाने नहीं देगी। आने दो चाणक्य को मैसूर। बेडरूम में चाणक्य की चिकनी लाइट मारती खोपड़ी सहलाकर चाणक्य का काम तमाम कर दूँगी। जब चाणक्य अपना हो जाएगा तो भला मुझे चाणक्य से डरने की क्या ज़रूरत?' विद्योत्तमा ने अपने मन में सोचा- 'ज्वालामुखी की योजना के अनुसार काम करने में ही बुद्धिमानी है। डालने दो अजूबी को चाणक्य पर डोरे। चाणक्य मुझसे प्रेम करता होगा तो अजूबी की तरफ कभी नहीं जाएगा और अगर गया भी तो मैसूर में चाणक्य को उसकी दगाबाज़ी की सज़ा मिल ही जाएगी। मैसूर में अजूबी चाणक्य का काम तमाम कर देगी और सर्वदेश महासंघ में मेरा नाम भी कहीं नहीं आएगा। चाणक्य मेरा नहीं तो किसी का नहीं होने दूँगी!' पूर्वनियोजित योजना के अनुसार मौर्य देश में अजूबी चाणक्य पर डोरे डालने लगी और विद्योत्तमा अजूबी का समर्थन करने लगी। यह देखकर चाणक्य के कान खड़े हो गए, क्योंकि चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में चल रही अपनी पुस्तक 'नाट्य लेखन विधा' के सातवें अध्याय में लिखा था- 'जब अपनी प्रेमिका स्वयं प्रेम करना छोड़कर अपनी सहेली को प्रेम करने के लिए उकसाए तो इसका अर्थ होता है- प्रेमिका किसी असाध्य बीमारी के कारण मरने वाली है अौर मरने से पहले वह अपने प्रेमी को अपनी सहेली के साथ देखकर खुश होना चाहती है।' चाणक्य का दिल हाहाकार करने लगा- 'बाहर से हट्टी-कट्टी मोटी-ताज़ी लगने वाली विद्योत्तमा को इतनी खतरनाक बीमारी? अगर विद्योत्तमा को पता चल गया कि मुझे उसकी खतरनाक बीमारी के बारे में पता चल चुका है तो मुझे दुःखी देखकर बेचारी और दुःखित हो जाएगी। इसलिए विद्योत्तमा को खुश रखने के लिए ज़रूरी है- वही किया जाए जो विद्योत्तमा चाहती है, तभी बेचारी विद्योत्तमा की आत्मा को शान्ति मिलेगी।' चाणक्य ने अत्यन्त दुःखित मन से अजूबी को हरी झण्डी दिखा दिया। चाणक्य के हरी झण्डी दिखाते ही अजूबी ने एक चाल चलकर विद्योत्तमा को मौर्य महल से निष्कासित करवाना चाहा, किन्तु चाणक्य ने एक कान से सुनकर दूसरे से बाहर निकाल दिया।
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01-12-2015, 09:28 AM | #3 |
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Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
चाणक्य के हरी झण्डी दिखाने के कारण नाराज़ विद्योत्तमा ने मालव देश के राजपत्र में लिखा- 'मैंने कुत्ते को छोड़ दिया, क्योंकि कुत्ता बदल गया!'
मालव देश के राजपत्र में प्रकाशित घोषणा की सूचना मिलते ही चाणक्य के कान खड़े गए, क्योंकि कुत्ता छोड़ने की घोषणा करके विद्योत्तमा ने गुप्त रूप से चाणक्य से ब्रेकअप करने की घोषणा की थी। इसका अर्थ स्पष्ट था- मौर्य देश के गुप्तचर विभाग द्वारा जारी सूचना झूठी थी अौर कालिदास की वापसी नहीं हुई थी। एक यक्ष प्रश्न और था- यदि कालिदास की वापसी नहीं हुई थी तो विद्योत्तमा अजूबी का प्रोमोशन क्यों कर रही थी? इसके पीछे क्या राज़ था? क्या वाकई विद्योत्तमा को कोई असाध्य बीमारी थी? इन सबका उत्तर जानने का एक ही उपाय था- वह यह कि विद्योत्तमा की इच्छानुसार अजूबी से इश्क़ लड़ाया जाए और विद्योत्तमा की निगरानी की जाए। चाणक्य की नज़रों में बीमार विद्योत्तमा को बीमारी के कारण दिन-प्रतिदिन दुबला होना चाहिए था, किन्तु विद्योत्तमा दुबले होने के स्थान पर मोटी होती जा रही थी। विद्योत्तमा को दिन-प्रतिदिन मोटा होता देखकर चाणक्य समझा कि विद्योत्तमा को कोई अनोखी बीमारी है जिसके कारण विद्योत्तमा मोटी होते-होते एक दिन मर जाएगी। मौर्य देश के राजवैद्यों अौर राजहकीमों ने भी 'मोटा होकर मरने वाली अनोखी बीमारी' के बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की तो चाणक्य विद्योत्तमा की अनोखी बीमारी देखकर और अधिक चिन्तित अौर दुःखित हो गया। होली पर चाणक्य की मैसूर-यात्रा (इसे चाणक्यगीरी में विस्तृत रूप से लिखा जा चुका है।) का कार्यक्रम स्थगित होते ही अजूबी की संदेहास्पद गतिविधियों को देखते हुए महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने मौर्य देश के भूतपूर्व न्यायाधीश लाल बहादुर सिल अौर न्यायधीश बहादुर लाल बट्टा की अध्यक्षता में 'सिल-बट्टा जाँच समिति' गठित की। न्यायाधीश एल० बी० सिल और बी० एल० बट्टा को मैसूर में गधे पर बैठकर इधर-उधर घूमकर जासूसी करते देखकर अजूबी के छक्के छूट गए और उसने तुरन्त विद्योत्तमा को इस बारे में सूचित किया। विद्योत्तमा ने हँसते हुए कहा- 'चिन्ता करने की कोई बात नहीं, क्योंकि षड़यन्त्र के बारे में हम तीन लोगों के अलावा चौथा अौर कोई नहीं जानता।' अजूबी संतुष्ट हो गई, किन्तु न्यायाधीश सिल-बट्टा बड़े ही जीवट किस्म के इन्सान थे। कैसा भी टेढ़ा मामला हो- पीसकर चटनी बना ही देते थे। दोनों ने द्रविड़ देश में बना विशेष दाना डालकर अजूबी और विद्योत्तमा का राजकीय कबूतर हैक करके असलियत का पता लगा ही लिया। मैसूर में मामले की जाँच पूरी करके सिल-बट्टा समिति ने महागुप्तचर वक्रदृष्टि को रात बारह बजे अपनी रिपोर्ट सौंपी तो मौर्य देश में हड़कम्प मच गया। सिल-बट्टा समिति ने अपनी रिपोर्ट में 'मालव देश की राजज्योतिषी ज्वालामुखी की सलाह पर मैसूर में चाणक्य को मारने के लिए विद्योत्तमा ने अजूबी को दी थी सुपाड़ी' लिखकर तत्काल मैसूर और मालवदेश पर सैन्य कार्यवाही की संस्तुति की थी। सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट के अाधार पर महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने आसमान में लाखों की संख्या में लाल रंग से रंगे कबूतर उड़ा दिए। आसमान में लाल रंग का कबूतर उड़ता देखकर सेनापति प्रचण्ड ने मौर्य देश की सेनाओं को बड़े पैमाने पर युद्ध का अभ्यास करने का आदेश दिया। महामंत्री राजसूर्य ने सम्पूर्ण मौर्य देश में हाई अलर्ट घोषित करते हुए द्रविड़ सम्राट त्रय सोलृन, सेरन, पाण्डियन को मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की ओर से विशेष आपातकालीन राजाज्ञा जारी की। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का विशेष आपातकालीन राजाज्ञा प्राप्त होते ही द्रविड़ देश में हड़कम्प मच गया और सोलृन, सेरन, पाण्डियन ने एक आपातकालीन सभा करके मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए तीनों देशों की सेनाओं के एकल महासेनापति के रूप में ओट्रैक्कन्नु को नियुक्त किया। सात फिट लम्बा ओट्रैक्कन्नु एक आँख से काना था इसीलिए उसका नाम ओट्रैक्कन्नु पड़ गया था। ओट्रैक्कन्नु के बारे में कहा जाता था कि उसे चक्रव्यूह बनाकर लड़ने में महारथ हासिल था और वह अकेले पाँच हज़ार लोगों से लड़ सकता था। महासेनापति ओट्रैक्कन्नु ने सोलृन, सेरन और पाण्डियन की विशाल सेनाअों के साथ मैसूर साम्राज्य की सीमाओं को सील करके मैसूर पर शिकंजा कसना शुरू किया तो मैसूर महाराजा दशवाहन (कृपया ध्यान दें- वस्तुतः उस समय मैसूर नंद अौर मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत ही था और मौर्य साम्राज्य के बाद ई०पू० 3 में शतवाहन मैसूर का महाराजा बना। अपनी कहानी के उद्देश्य को देखते हुए हमने यह कल्पना की कि शतवाहन के पूर्वज दशवाहन उस समय मैसूर के महाराजा थे।) के होश उड़ गए। भय से थर-थर काँपता हुआ दशवाहन मैसूर सीमा पर डेरा डाले ओट्रैक्कन्नु से भेंट करने के लिए कई सेवकों के साथ मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक लेकर पहुँचा। ओट्रैक्कन्नु को प्रसन्न करने के लिए सिर पर घड़ा रखकर 'करकाट्ट' नृत्य करने वालों की टोली भी नृत्य करते हुए दशवाहन के साथ चल रही थी। दशवाहन को देखते ही ओट्रेक्कन्नु ने क्रोधपूर्वक उसका कॉलर पकड़कर हवा में तान दिया और गरजती हुई आवाज़ में कहा- 'चमगादड़ होकर तेरी इतनी हिम्मत? पर कतर दिए जाएँगे तेरे। फिर कभी न उड़ पाएगा। पता है न तुझे- एक बार पर कतर दिए जाने के बाद चमगादड़ के पर कभी नहीं उगते।' दशवाहन ने हाथ जोड़कर थर-थर काँपते हुए कहा- 'ऐसी क्या गलती हुई हमसे? भुनगे को सज़ा देने के लिए इतनी बड़ी सेना लेकर आए हैं?' द्रविड़ सम्राट त्रय के महासेनापति ओट्रैक्कन्नु ने क्रोधपूर्वक मैसूर महाराजा दशवाहन से कहा- 'नमकहराम, तुझे अच्छी तरह से पता है- द्रविड़ सम्राट त्रय हिज़ हाइनेस सोलृन, हिज़ हाइनेस सेरन और हिज़ हाइनेस पाण्डियन के अनुरोध पर नंद सम्राट धननन्दा और मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त ने मैसूर पर सिर्फ़ इसलिए कब्ज़ा नहीं किया जिससे हमें गर्म-गर्म मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक खाने को मिलता रहे। मैसूर छोड़ने के एवज में मौर्य संस्थापक चाणक्य जब-तब द्रविड़ देश की यात्रा करके हमसे इट्लि, बूरी, बुरोट्टा, दोसै, अप्पम्, वडै, ऊत्तप्पम्, पोंगल, उप्पुमा और केसरी की दावत खाते रहते हैं।' मैसूर महाराजा दशवाहन ने थर-थर काँपते हुए कहा- 'पता है। सब पता है। मैं नमकहरामी कैसे कर सकता हूँ? मैंने द्रविड़ सम्राट त्रय हिज़ हाइनेस सोलृन, सेरन, पाण्डियन की शान में कभी गुस्ताखी नहीं की। मैसूर से रोज़ गर्म-गर्म मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक से भरे सैकड़ों रथ द्रविड़ सम्राट त्रय की सेवा में रवाना किए जाते हैं। फिर क्या गुस्ताखी हुई हमसे?' ओट्रैक्कन्नु ने कहा- 'मुझे कुछ नहीं पता। हमें सिर्फ़ मैसूर पर शिकंजा कसने के लिए कहा गया है। आदेश मिलते ही हम ईंट से ईंट बजा देंगे। हो सकता है- मैसूर बोण्डा में मिर्च ज़्यादा हो गई हो या मैसूर पाक में चीनी कम हो गई हो! इसीलिए द्रविड़ सम्राट त्रय की गाज मैसूर पर गिरने वाली हो।' दशवाहन ने घबड़ाकर कहा- 'कैसी बात करते हैं आप। हमारे राजकीय बावर्ची कोई आज से मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक बना रहे हैं जो मिर्च अौर चीनी कम-ज़्यादा कर दें। आप खुद चखकर देख लीजिए।' दशवाहन के संकेत पर साथ आए सेवकों ने मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक से सजी थाल ओट्रैक्कन्नु के सामने कर दी। ओट्रैक्कन्नु ने मैसूर बोण्डा अौर मैसूर पाक खाते हुए कहा- 'वाह-वाह, बड़ा अच्छा और स्वादिष्ट बना है। कोई कमी नहीं है। फिर क्यों द्रविड़ सम्राट त्रय आपसे नाराज़ चल रहे हैं?' महासेनापति ओट्रैक्कन्नु के साथ-साथ दशवाहन भी गम्भीरता के साथ विचारमग्न हो गया। मौर्य देश में रातों-रात बड़े पैमाने पर युद्ध का अभ्यास शुरू होते ही किसी बड़े युद्ध की आशंका से मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त थर-थर काँपने लगे और वहाँ से फरार होने के लिए मूँगफली का ठेला लेकर राजमहल से बाहर निकले, किन्तु इस बार भी वाल्मीकि ने चापड़ लहराकर उन्हें राजमहल के अन्दर धकेल दिया। मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मन ही मन 'मौर्य देश में डेमोक्रेसी बिल्कुल नहीं है। मूँगफली बेचने की मनाही है। जब देखो राजा बने रहो। यह भी कोई बात हुई!' भुनभुनाते हुए राजमहल के अन्दर जाकर चाणक्य अौर वाल्मीकि को मन लगाकर कोसने लगे और फिर अपना राजमुकुट ज़मीन पर पटक-पटक कर अपना गुस्सा उतारने लगे।
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01-12-2015, 09:31 AM | #4 |
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Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त को राजमहल के अन्दर धकेलकर वाल्मीकि मौर्य देश में चल रही गड़बड़ी को सूँघने के लिए चाणक्य-निवास में जाकर छिप गए, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि मौर्य सेना को हमले के लिए रवाना करने के लिए चाणक्य का आदेश लेने के लिए महागुप्तचर वक्रदृष्टि वहाँ ज़रूर आएँगे। वाल्मीकि ने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। थोड़ी ही देर में महागुप्तचर वक्रदृष्टि चाणक्य के सामने हाज़िर हुए और अपनी लंगोट में छिपाई सिल-बट्टा समिति की गोपनीय रिपोर्ट निकालकर चाणक्य को देते हुए मौर्य सेना को मालवदेश पर हमला करने के लिए रवाना करने के लिए आदेश की माँग की। चाणक्य ने सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट को सिरे से नकारते हुए महागुप्तचर वक्रदृष्टि की माँग को खारिज कर दिया अौर सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट की मिनी फ़ाइल पर 'अति गोपनीय' लिखकर अपनी लंगोट में छिपा लिया, क्योंकि मौर्य देश के सैन्य नियमानुसार गोपनीय फाइलों को महागुप्तचर वक्रदृष्टि अपनी लंगोट में छिपाकर चलते थे और अति गोपनीय फाइलों को चाणक्य अपनी लंगोट में छिपाकर चलते थे। सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट खारिज होते ही महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चाणक्य-निवास में बनाए हरे रंग से रंगे कबूतरों का दबड़ा खोल दिया अौर थोड़ी ही देर में आसमान में लाखों की संख्या में हरे रंग के कबूतर उड़ने लगे। आसमान में हरे रंग के कबूतर उड़ते हुए देखकर महामंत्री राजसूर्य ने मौर्य देश में लगे हाई अलर्ट को समाप्त करने की घोषणा करते हुए युद्ध का अभ्यास रोके जाने का आदेश पारित किया और द्रविड़ देश के लिए जारी मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त की आपातकालीन विशेष राजाज्ञा को वापस लेने की घोषणा की। मैसूर पर हमले की आशंका टलते ही द्रविड़ सम्राट त्रय सोलृन, सेरन, पाण्डियन ने चैन की साँस लिया और इस खुशी को ताड़ी के साथ प्याज़ और अण्डे का ऊत्तप्पम् खाकर मनाया। गर्म-गर्म स्वादिष्ट मैसूर बोण्डा और मैसूर पाक के रास्ते में आया बहुत बड़ा संकट जो टल गया था।
थोड़ी देर बाद महागुप्तचर वक्रदृष्टि ने चाणक्य से मौर्य महल में ठहरी भिखारिन विद्या के कारण चाणक्य की जान को खतरा बताया, क्योंकि विद्या अपने पास खंजर रखती थी। बदले में चाणक्य ने मौर्य देश के संविधान में 'विद्या को किसी हालत में गिरफ्तार न करने' का संशोधन करने का आदेश पारित करते हुए (इसे चाणक्यगीरी में पहले ही लिखा जा चुका है।) विद्या के नाम से छोटी तोप का लाइसेंस बनाकर छोटी तोप लेकर आने का आदेश दिया तो वाल्मीकि के कान खड़े हो गए- 'छोटी तोप तो सिर्फ़ राजा-महाराजाओं को उपहार स्वरूप दिया जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं- भिखारिन विद्या के भेष में स्वयं महारानी विद्योत्तमा मौर्य महल में रह रही हो? और यह बात चाणक्य के अतिरिक्त और किसी को न पता हो!' वाल्मीकि का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। विद्योत्तमा की इतनी हिम्मत? मौर्य देश में रहकर मेरे मित्र चाणक्य को जान से मारने की साजिश रचे! इतनी बड़ी साजिश रचने वाली विद्योत्तमा को ज़िन्दा छोड़ना खतरे से खाली नहीं। विद्योत्तमा का काम तमाम करना ही होगा। चाणक्य तो विद्योत्तमा के प्रेम में अन्धा हो गया है। कुछ दिखाई ही नहीं देता। इतनी बड़ी सिल-बट्टा समिति की रिपोर्ट को धूल समझकर रद्द कर दिया! चाणक्य-निवास से बाहर आकर वाल्मीकि ने विद्योत्तमा का काम तमाम करने के लिए एक योजना बनाई और पानी वाला नारियल का ठेला मौर्य महल के सामने लगाकर चापड़ से काट-काटकर नारियल का पानी बेचने लगे। उनकी योजना थी- नारियल का पानी पीने के लोभ में विद्योत्तमा अवश्य आएगी अौर चापड़ से नारियल काटने के बहाने विद्योत्तमा का सिर एक ही वार में क़लम कर दिया जाएगा। समाचार-पत्रों में ज़्यादा से ज़्यादा यही छपेगा- 'मौर्य महल के सामने नारियल का पानी बेच रहे वाल्मीकि के चापड़ का निशाना चूकने के कारण नारियल की जगह मालव देश की महारानी विद्योत्तमा का सिर क़लम।' रात दो बजे मौर्य महल के सामने वाल्मीकि को पानी वाला नारियल बेचते देखकर मौर्य महल में विद्या के भेष में रह रही विद्योत्तमा के कान खड़े हो गए। इतना बड़ा लेखक नारियल बेच रहा है? ज़रूर कुछ दाल में काला है। अपने संदेह की पुष्टि करने के लिए विद्योत्तमा ने खिड़की से वाल्मीकि से पूछा- 'क्या बात है, वाल्मीकि जी? रात दो बजे नारियल का पानी बेच रहे हैं?'
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01-12-2015, 09:54 AM | #5 |
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Re: चाणक्यगीरी : निर्वहण-अंश
सिल-बट्टा जांच समिति, थर थर कांपते हुए राजा, मैसूर पाक और मैसूर बोण्डा से भरे हुये रथ और मूंगफली का ठेला धकेलते मौर्य सम्राट को देख कर दिल बाग बाग हो गया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 01-12-2015 at 09:56 AM. |
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