24-03-2016, 01:55 PM | #1 |
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क्या ये मेरा गुनाह है?
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24-03-2016, 01:56 PM | #2 |
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भगवान ने हरेक इन्सान के लिए एक ही हवा बनाई है ये नहीं लिखा किसी भी धर्म ग्रन्थ में की ये हवा सिर्फ हिन्दू के लिए है या ये हवा सिर्फ मुस्लिम के लिए है या सिर्फ क्रिश्चियन के लिए है वो दिव्य सत्ता जिसे आप और मैं खुदा भगवान या गॉड कहते हैं वो ही इस सृष्टि का इस दुनिया का सच्चा रचयिता है उसने हम सबको बनाया है और सबके लिए एक सी व्यवस्था रखी है जो जीने के लिए बेहद जरुरी है जैसे की हवा , पानी अनाज इन तीनो के बिना मानव जीवन असंभव सा है न ? और आप ध्यान दे इस बात पर की भगवान ने यदि ये दुनिया बनाई है तो उसने कहीं ये नहीं कहा की ये सिर्फ हिन्दुओं के लिए है , मुस्लिम मेरी बनाई इस हवा का उपयोग नहीं कर सकते, न ही ये कही कहा है की मेरी बनाई इस हवा से क्रिस्चियन भाई बहन साँस नहीं ले सकते और यदि खुदा ने ये सब बनाया तो उन्होंने भी ये नहीं कहा की हिंदी या क्रिस्चियन के लिए ये वर्जित है मेरी बनाई हवा का उपयोग ये लोग नहीं कर सकते कही नहीं लिखा ना एइसा ? और यदि इशा मसीह ने हवा बनाई है तो उन्होंने भी कही नहीं कहा की हिन्दू या मुस्लिम मेरी बनाई हवा का उपयोग नहीं कर सकते ..इसी तरह से पानी के लिए भी आप सोच सकते हैं भगवान ,खुदा , इशा मसीह ने ये नहीं कहा की ये सिर्फ मुझे मानने वालों के लिए है .
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24-03-2016, 01:57 PM | #3 |
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Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
चलो एकबार ये मान भी लिया जाय की सबके भगवान अलग अलग होते हैं तो सोचिये की यदि भगवान अलग हैं तो उन्होंने पूरी दुनिया के लिए एक ही व्यवस्था क्यूँ रखी यदि भगवान अलग होते खुदा अलग होते इशामसीह अलग होते तो वो अपने लोगों के लिए अलग हवा अलग पानी अलग ही जीवन शैली बनाते सबके शरीर जो लहूँ की वजह से चलते हैं आज दुनिया में वो लहू या तो सिर्फ भगवान ने दिया होता अपने हिन्दुओं के लिए या फिर खुदा ने सिर्फ बनाया होता अपने अपनों के लिए हिन्दुओं के सरीर में और कुछ होता जिससे उनका जीवन चलता न ? और क्रिस्चियन भाई बहनों के शरीर में और कुछ होता पर सोचिये जरा की भगवन खुदा या मसीहा सब एक दिव्य सत्ता है अलौकिक सत्ता है जिसकी नज़रों में कोई भेदभाव नहीं है उन्होंने सबके लिए एक ही हवा एक ही तरह का पानी और एक ही लहू दिया और संसार को बताया है की मैं एक हूँ ///,,..दुनिया में कई रंगबिरंगे फूल बनायें है .किसी फूल पर ये कभी कहीं लिखा नहीं मिला की ये फूल सिर्फ मेरे बन्दे के लिए मैंने बनाया है क्यूंकि मैं भगवान हु तो ये हिन्दू का , क्यूंकि मैं खुदा हूँ तो ये फूल सिर्फ मुस्लिम के लिए है और क्यूंकि मैं गॉड हूँ तो ये क्रिस्चियन का है
जिनके लिए हम सभी मानव उनके बच्चों के समान हैं हम सब उसी दिव्या सत्ता के अलौकिक सत्ता के अंश हैं हम सिर्फ मानव हैं इंसान हैं जरुरत है तो उस सर्वोच्च सत्ता को समझने की और उनकी बनाई सृष्टि को संकुचितता त्यागकर व्यापक दृष्टि से निहारने की पर उस दिव्य और अलोकिक सत्ता के हम इंसानों ने अनेक नाम रख दिए, धर्म बना दिए तब तक ठीक था पर धर्म के नाम पर उसी खुदा के बनाये बन्दों को उसी भगवान के बनायें बन्दों को उसी एशामसीह के बनाये बन्दों को हम क्यूँ जाट पात के भेदभाव के नाम पर धर्म के नाम पर कुचल रहे हैं? एइसे अत्याचार से सोचिये हमारा भगवान हमारा खुदा हमारा इशु खुश होगा ? जरा सोचिये कितना दुःख होता होगा उस दिव्य अलोकिक सत्ता को जिसे हम भगवान , खुदा या मसीहा कहते हैं और हम उन्हें पूजते हैं . |
24-03-2016, 01:58 PM | #4 |
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Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
सभी धर्म अच्छी अच्छी बातें ही सिखलाते हैं कोई धर्म कोई भगवान झूठ बोलना नहीं सिखलाता हरेक धार्मिक पुस्तक ग्रन्थ हम इंसानों को सच्चाई और अच्छे से जीने का सन्देश देती है .. तो क्यों न हम अपना दृष्टिकोण बदलें और गहराई से ईश्वरीय सत्ता के आव्हान को समझे सुने और जीवन में उतारें .
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24-03-2016, 01:59 PM | #5 |
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Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
आज जब जब कोई समाचार पत्र ये खबर देता है की दंगों की वजह से हजारो जाने गई, कई लोग मौत के घाट उतारे गए देख्न सुनकर के दिल दहल जाता है और एक ख़याल आता है मन में की हममे ताकत है की हम एक इंसान बनाये? फिर जिन्हें हम आपना सर्वोपरि मानते हैं उनकी मेहनत को क्यों अनंत की आगोश में भेज देते हैं. इंसानी करुना का अंत हो रहा है आज बेवजह कई घर बर्बाद हो रहे हैं कई बच्चे अनाथ और कई माँ बाप बेऔलाद हो रहे हैं आखिर क्यूँ ?? आखिर क्यों ??? जबकि सर्वोच्च सत्ता तो सिर्फ एक है भले ही हम इंसानों ने उनके नाम अलग अलग रख दिए . उस दर्द को काश आत्मदाह करके दूसरों का जीवन लेने वाले समझ सकते/// काश इंसानों में सिर्फ इंसानियत रहती/// काश हमने दुनिया का सिर्फ एक धर्म रखा होता और वो धर्म होता सिर्फ और सिर्फ इंसानियत का तो आज कोई बच्चा अनाथ न होता कोई माँ बाप बेऔलाद न होते कोई औरत बेवा न होती किसी का घर न उजड़ता ..
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24-03-2016, 02:00 PM | #6 |
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Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
हम इंसान अपने दिलों में सिर्फ सबके लिए स्नेह नहीं रख पाते यदि नफ़रत का स्थान स्नेह ले ले तो सोचिये ये दुनिया कितनी सुन्दर बन जाती न? जहाँ सिर्फ खुशिया और सुख होते ,हंसी के फुवारे होते , कोई आंसू न होता कोई दिल दहलाने वाली कहानिया न बनती . अरे प्यार से जीने के लिए ही एइसे ही उम्र छोटी है तो क्यों इतने प्यारे जीवन को नफ़रत की आग में हम झोंक रहें हैं ?
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24-03-2016, 02:01 PM | #7 |
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Re: क्या ये मेरा गुनाह है?
जब जब एईसी वारदातें होतीं हैं तब तब मन बेहद दुखी होजाता है और एईसी चार लाइन लिखकर मन मना लेती हूँ पर एकबात जरुर कहना चाहूंगी की मासूम और बेक़सूर लोगों की हत्या के बाद उनके अपनों की जो हालत होती है उसी जगह ये दंगाई खुद को रखें और इस दर्द को महसूस करें और समझे की कितना दर्द होता है जीवन बर्दाब हो जाते हैं तब जाने वाले तो चले जाते है पर पीछे बचे लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ता है क्यूंकि अपनों का विरह जीवन का सबसे बड़ा दुःख है . और सिर्फ धर्म के नाम पर आज दुनिया में सबसे ज्यदा हत्याएं होतीं है जबकि उसी धर्म को बनाने वाला तो समदर्शी है उसके लिए कोई बेगाना नहीं सब अपने हैं ..फिर उसे चाहे भगवान कहा जाय , चाहे खुदा कहा जाय, चाहे ईशा मसीह कहा जाय..
आपका कोई गुनाह नहीं होगा यदि आप हरेक धर्म के नियंता को एक ही मानें समदर्शी बने उनकी तरह ही तब आप सच्चे जागरुक धर्मिष्ठ कहलायेंगे |
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