17-05-2016, 12:50 PM | #1 |
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khawaabon ki basti
Per ab kanha kisi ke main kuch kehta hoon, deewaron sa chup rehta hoon, Hai meri appni khawaabon ki basti, bas unper main chalta rehta hoon!! Bachpan ki baat aur thi jab har choti baat pe jharne behte the, Per ab kanha kisi ki baaton ko dil pe leta hoon, jharno ko bas ander he behne deta hoon, Hai meri appni khawaabon ki basti, bas unper main chalta rehta hoon!! |
19-05-2016, 09:30 AM | #2 |
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Re: khawaabon ki basti
[बचपन की बात और थी जब लड़खड़ा जाया करती थी जुबां,बहुत दिनों बाद आपका आना हुआ. अच्छा लगा. आपकी कविता इतनी बढ़िया है कि दोबारा सरलता से पढ़ने के लिये इसे देवनागरी में लिखना पड़ा. अन्य पाठकों को भी मजा आयेगा. आपके लेखन में जो गहराई है, वह कम ही देखने में आती है. इसी प्रकार लिखते रहें और शेयर करते रहें. हार्दिक धन्यवाद, राहुल जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
22-05-2016, 03:48 AM | #3 |
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Re: khawaabon ki basti
[QUOTE=rajnish manga;558445][indent][बचपन की बात और थी जब लड़खड़ा जाया करती थी जुबां,
पर अब कहाँ किसी से कुछ कहता हूँ, दीवारों सा चुप रहता हूँ, है मेरी अपनी ख्वाबों की बस्ती, बस उन पर में चलता रहता हूँ!! बचपन की बात और थी जब हर छोटी बात पे झरने बहते थे, पर अब कहाँ किसी की बातों को दिल पे लेता हूँ, झरनों को बस अंदर ही बहने देता हूँ, है मेरी अपनी ख्वाबों की बस्ती, बस उन पर मैं चलता रहता हूँ!!] khoobsurat rachna ... bachapan se sundar jivan ke koi bhi din nahi hai |
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