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Old 18-04-2014, 06:10 PM   #71
rajnish manga
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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

ब्राह्मण ने जो हुआ था उसे कह सुनाया.

“यह तो बहुत गड़बड़ हो गयी!” सियार के मुंह से निकला, जब ब्राह्मण की बात खत्म हुई, “क्या आप मुझे एक बार फिर से सारी घटना बताने का कष्ट करेंगे ताकि मैं इसे ठीक से समझ सकूँ.”

ब्राह्मण ने पुनः सारी बात दोहराई लेकिन सियार ने सिर हिला कर बताया कि उसे अब भी कुछ समझ नहीं आया.

“यह बड़ी अजीब सी बात है,” उसने अफ़सोस जताते हुये कहा, “ऐसा लगता है कि आप जो एक कान से बोलते हैं वह दूसरे कान से निकल जाता है! चलिए वहां चलते हैं जहां यह सब वारदात हुई. हो सकता है वहां पहुँच कर मैं कुछ समझ सकूँ और कोई सलाह दे सकूँ.”

सो, वे दोनों पिंजरे के पास वापिस आये. बाघ वहां अपने दांत और पंजे तेज कर रहा था और ब्राह्मण का इंतज़ार कर रहा था.

“तुमने बहुत देर लगा दी?” बाघ दहाड़ा, “मगर अब हमें अपना भोजन शुरू करना चाहिये.”

“हमें?” उस दुखी ब्राह्मण ने सोचा. उसकी टांगें डर के मारे कांप रही थीं, “बात करने का कितना बढ़िया तरीका है यह!”

“मुझे सिर्फ पांच मिनट दीजिये, महाराज!” उसने विनय पूर्वक कहा, “ताकि मैं यहाँ आये हुये सियार को सारी बात समझा सकूँ, उसे समझने में थोड़ा वक़्त लगता है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 18-04-2014, 06:13 PM   #72
rajnish manga
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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

बाघ ने उसकी बात मान ली. अब ब्राहमण ने नये सिरे से सारी दास्तान इस प्रकार सुनानी शुरू कर दी जिससे कोई बात छूट न जाये. वह इसे अधिक से अधिक लम्बा खींचना चाहता था.

“ओह, मेरी खोपड़ी को भी न जाने क्या हो गया है?” सियार सकपकाते हुये और अपने पंजे झटकते हुये बोला, “जरा मुझे समझने दो कि यह सब कैसे हुआ? आप पिंजरे के अन्दर थे, और बाघ महाराज टहलते हुये आये ... ?”

“ओफ़्फ़ो!” बाघ ने बीच में टोकते हुये कहा, “तुम भी कैसे मूर्ख हो? पिंजरे के अन्दर मैं था.”

“हाँ, अब समझ में आ गया,” सियार ने नकली डर से कांपते हुये कहा, “हाँ! तो मैं पिंजरे के अन्दर था – न – नहीं मैं नहीं – हे भगवान, ये मुझे क्या हो रहा है? चलो देखता हूँ ! बाघ महाराज ब्राह्मण के अन्दर थे, और पिंजरा टहलता हुआ वहाँ आया --- नहीं यह भी नहीं, खैर जाने दीजिये, -- आप अपना खाना शुरू करें, लगता है मुझे कुछ समझ में नहीं आएगा!”

“अरे, तुम्हें क्यों नहीं समझ में आएगा?” बाघ ने सियार की बेवकूफ़ी पर झुंझलाते हुये बात को आगे बढ़ाया, “मैं तुम्हें समझाता हूँ! इधर देखो – मैं बाघ हूँ –“
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Old 18-04-2014, 06:15 PM   #73
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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

“जी हाँ, महाराज!"

"और ये वो ब्राह्मण है –“

“जी हाँ, महाराज!"

“और वह रहा पिजरा – “

“ जी हाँ, महाराज!”

“ और मैं पिंजरे के अन्दर था – बात समझ में आयी?"

“हां s- न- नहीं- मुझे क्षमा करें, महाराज -“

“तो फिर -- ?” बाघ अधीर होते हुये गुर्राया.

“कृपया, महाराज! आप पिंजरे के अन्दर कैसे गये?”

“कैसे?? जैसे आम तौर पर होता है!! और कैसे??”

“ओह, मैं क्या करूँ. मेरा तो सर चकरा रहा है. आप रुष्ट न हों, महाराज, मगर आम तौर पर यह कैसे होता है?”

इस पर बाघ का संयम जाता रहा और सियार को समझाने के लिये वह पिंजरे में घुस कर चिल्लाया,

“इस तरह !! ...... आशा है अब तुम्हें सारी बात समझ में आ गई होगी?”

“बिलकुल!!” सियार ने हँसते हुये कहा. उसने बड़ी सफाई से पिजरे का द्वार बंद करते हुये कहा, “अगर आप बुरा न मानें तो मैं ये कहना चाहूँगा कि अब सारा मामला समझ में आ गया है.”

ब्राह्मण ने सियार का आभार प्रगट किया और अपने रास्ते पर अग्रसर हो गया.
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Old 19-04-2014, 12:27 AM   #74
Dr.Shree Vijay
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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

Quote:
Originally Posted by rajnish manga View Post
चीनी कथा
हुंगशान पर्वत की कहानी

गरीब ब्राह्मण, बाघ और सियार

दोनों कथायें सिर्फ मनोरंजक हि नही अपितु ज्ञानवर्धक हैं........


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*** Dr.Shri Vijay Ji ***

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.........: सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे :.........


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Old 14-07-2016, 08:00 PM   #75
rajnish manga
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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

गरीब
(मालवी लोक कथा)


काली, अंधेरी रात । तेज, मूसलाधर बारिश । ऐसी कि रूकने का नाम ही नहीं ले रही । मानो सारे के सारे बादल आज ही रीत जाने पर तुले हों । पांच झोंपडियों वाले 'फलीए' की, टेकरी के शिखर पर बनी एक झोंपडी । झोंपडी में आदिवासी दम्*पति । सोना तो दूर रहा, सोने की कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हो रही । झोंपडी के तिनके-तिनके से पानी टपक रहा । बचाव का न तो कोई साधन और न ही कोई रास्*ता । ले-दे कर एक चटाई । अन्*तत: दोनों ने चटाई ओढ ली । पानी से बचाव हुआ या नहीं लेकिन दोनों को सन्*तोष हुआ कि उन्*होंने बचाव का कोई उपाय तो किया ।चटाई ओढे कुछ ही क्षण हुए कि आदिवासी की पत्*नी असहज हो गई । पति ने कारण जानना चाहा । पत्*नी बोली तो मानो चिन्*ताओं का हिमालय शब्*दों में उतर आया । उसने कहा - 'हमने तो चटाई ओढ कर बरसात से बचाव कर लिया लेकिन बेचारे गरीब लोग क्*या करेंगे ?'


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Default Re: मनोरंजक लोककथायें

प्रेम न जाने जाति कुजाति
(भोजपुरी लोककथा)


बहुत समय पहले की बात है । एक बार राजा विक्रमादित्य को किसी कारणवश अपना राज्य छोड़ना पड़ा। घूमते-घूमते वे एक दूसरे राज्य हौलापुर में आ गए । विक्रमादित्य को पता चला कि हौलापुर का राजा प्रतिदिन रात को अपने शयनकक्ष के द्वार पर एक नया पहरेदार नियुक्त करता है और सुबह उस पहरेदार को राजदरबार में बुलाकर एक प्रश्न पूछता है । उत्तर न दे पाने के कारण उस पहरेदार को फाँसी की सजा हो जाती है । इसप्रकार शयनकक्ष पर पहरा देनेवाला कोई पहरेदार जीवित नहीं बचता है क्योंकि कोई भी उत्तर नहीं दे पाता है ।

राजा विक्रमादित्य को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने हौलापुर के राजा से अनुनय की कि वह उन्हें अपने शयनकक्ष का पहरेदार नियुक्त कर लें । राजा तैयार हो गया और विक्रमादित्य शयनकक्ष की पहरेदारी करने लगे । आधी रात को विक्रमादित्य ने राजा को अपने शयनकक्ष से निकलते देखा । विक्रमादित्य भी चुपके-चुपके राजा का पीछा करने लगे । राजा छिप-छिपकर श्मशान-घाट पहुँचा जहाँ पहले से ही डोम की पुत्री बेसब्री से राजा की प्रतीक्षा कर रही थी । राजा वहीं रखी एक टूटी खाट पर बैठकर डोम की पुत्री से प्रेम भरी बातें करने लगा । कुछ समय बाद राजा बोला कि भूख लगी है । डोम की पुत्री ने कहा कि अभी खाने के लिए मेरे पास शवों पर चढ़ाए गए मिठाई-बतासे आदि हैं । राजा ने मिठाई-बतासे आदि खाकर उसी टूटी खाट पर सो गया । भिनसारे (लगभग रात के चार बजे) राजा उठा और राजमहल में आ गया । राजा से पहले ही विक्रमादित्य भी राजमहल पहुँचकर शयनकक्ष की पहरेदारी शुरु कर दिए थे।

जब राजदरबार लगा तो राजा ने शयनकक्ष के पहरेदार (विक्रमादित्य) को बुलाया और कहा, "कहो सिपाही रात की बात ।"

इसपर विक्रमादित्य ने कहा, महाराज संकेत के रूप में कहता हूँ ताकि राजदरबार और आपकी गरिमा बनी रहे । इसके बाद विक्रमादित्य ने कहा, "भूख न जाने जूठी भात, नींद न जाने टूटी खाट, और प्रेम न जाने, जाति कुजाति ।"

विक्रमादित्य के इस उत्तर से राजा बहुत प्रभावित हुआ और राजपाठ त्यागकर तपस्या करने वन में चला गया ।
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Last edited by rajnish manga; 14-07-2016 at 08:06 PM.
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