06-09-2016, 01:08 PM | #1 |
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Ganesh utasav or pratham swadeshi aandolan
गणेश उत्सव और प्रथम स्वदेशी आंदोलन की कहानी जरूर पढ़ें । 1894 मे अंग्रेज़ो ने भारत मे एक बहुत खतरनाक कानून बना दिया !जिसे कहते हैं धारा 144 ! ये कानून आज आजादी के 67 साल बाद देश मे वैसा का वैसा चलता है! उस कानून मे ये था कि किसी भी स्थान 5 भारतीय से अधिक भारतीय इकट्ठे नहीं हो सकते ! समूह बनाकर कहीं प्रदर्शन नहीं कर सकते ! और अगर कोई ब्रिटिश पुलिस का अधिकारी उनको कहीं इकट्ठा देख ले तो आप विश्वास नहीं कर सकते कितनी कड़ी सजा उनको दी जाती थी ! उनको कोड़े से मारा जाता था ! और हाथो से नाखूनो तक को खींच लिया जाता था ! 1882 मे भारत के क्रांतिकारी जिनका नाम था बंकिम चंद्र चटर्जी उन्होने एक गीत लिखा था जिसका नाम था वन्देमातरम ! तो इस गीत को गाने पर अंग्रेज़ो ने प्रतिबंद लगा दिया ! और गीत गाने वालों को जेल मे डालने का फरमान जारी कर दिया ! तो इन दोनों बातों के कारण लोगो मे अंग्रेज़ो के प्रति बहुत भय आ गया था !! लोगो मे अंग्रेज़ो के प्रति भय को खत्म करने के लिए और इस कानून का विरोध करने के लिए लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की ! और सबसे पहले पुणे के शनिवारवाडा मे गणपति उत्सव का आयोजन किया गया ! 1894 से पहले लोग अपने अपने घरो मे गणपति उत्सव मनाते थे लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे ! तो पुणे के शनिवारवडा मे हजारो लोगो की भीड़ उमड़ी ! लोकमान्य तिलक ने अंग्रेज़ो को चेतावनी दी कि हम गणपति उत्सव मनाएगे अंग्रेज़ पुलिस उन्हे गिरफ्तार करके दिखाये ! कानून के हिसाब से अंग्रेज़ पुलिस किसी राजनीतिक कार्यक्रम मे उमड़ी भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती थी लेकिन किसी धार्मिक समारोह मे उमड़ी भीड़ को नहीं !! इस प्रकार पूरे 10 दिन तक 20 अक्तूबर 1894 से लेकर 30 अक्तूबर 1894 तक पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव मनाया गया ! हर दिन लोक मान्य तिलक वहाँ भाषण के लिए किसी बड़े व्यक्ति को आमंत्रित करते ! 20 तारीक को बंगाल के सबसे बड़े नेता बिपिन चंद्र पाल वहाँ आए !! और ऐसे ही 21 तारीक को उत्तर भारत के लाला लाजपत राय वहाँ पहुंचे ! इसी प्रकार एक ही परिवार मे पैदा हुए तीन क्रांतिकारी भाई जिनको चापेकर बंधु कहा जाता है वहाँ पहुंचे ! वहाँ 10 दिन तक इन महान नेताओ के भाषण हुआ करते थे ! और सभी भाषणो का मुख्य मुद्दा यही होता था कि गणपति जी हमको इतनी शक्ति दें कि हम भारत से अंग्रेज़ो को भगाएँ ! गणपति जी हमे इतनी शक्ति दें के हम भारत मे स्वराज्य लाएँ ! इसी तरह अगले साल 1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा मे 11 गणपति स्थापित किए गए और उसके अगले साल 31 !और अगले साल ये संख्या 100 को पार कर गई ! फिर धीरे -धीरे पुणे के नजदीक महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरो मे ये गणपति उत्सव अहमदनगर ,मुंबई ,नागपुर आदि तक फैलता गया !! हर वर्ष हजारो लोग इकट्ठे होते और बड़े नेता उनमे राष्ट्रीयता भरने का कार्य करते ! और इस तरह लोगो का गणपति उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ता गया !!! और राष्ट्र के प्रति चेतना बढ़ती गई !! 1904 में लोकमान्य तिलक ने लोगो से कहा कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देशय स्वराज्य हासिल करना है आजादी हासिल करना है ! और अंग्रेज़ो को भारत से भगाना है ! बिना आजादी के गणेश उत्सव का कोई महत्व नहीं !! पहली बार लोगो ने लोकमान्य तिलक के इस उद्देश्य को बहुत गंभीरता से समझा ! इसके बाद एक दुर्घटना हो गई अपने देश में !! 1905 मे अंग्रेज़ो की सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया एक अंग्रेज़ अधिकारी था उसका नाम था कर्ज़न ! उसने बंगाल को दो हिस्सो मे बाँट दिया !एक पूर्वी बंगाल एक पश्चमी बंगाल ! पूर्वी बंगाल था मुसलमानो के लिए पश्चमी बगाल था हिन्दुओ के लिए !! हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था ! और इसका नाम रखा division of bengal act !! बंगाल उस समय भारत का सबसे बड़ा राज्य था और इसकी कुल आबादी 7 करोड़ थी ! लोकमान्य तिलक ने इस बँटवारे के खिलाफ सबसे पहले विरोध की घोषणा की उन्होने ने लोगो से कहा अगर अंग्रेज़ भारत मे संप्रदाय के आधार पर बंटवारा करते हैं तो हम अंग्रेज़ो को भारत में रहने नहीं देंगे !! उन्होने अपने एक मित्र बंगाल के सबसे बड़े नेता बिपिन चंद्रपाल को बुलाया अरबिंदो गोश जी को बुलाया और कुछ और अन्य बड़े नेताओं को बुलाया !! और उन्हे कहा की आप बंगाल मे गणेश उत्सव का आयोजन कीजिये !! तो बिपिन चंद्र पाल जी ने कहा कि बंगाल के लोगो पर गणेश जी का प्रभाव ज्यादा नहीं है ! तो तिलक जी ने पूछा फिर किसका प्रभाव है ?? तो उन्होने के कहा नवदुर्गा एक उत्सव मनाया जाता है उसका बहुत प्रभाव है !! तो तिलक जी ने कहा ठीक है मैं यहाँ गणेश उत्सव का आयोजन करता हूँ आप वहाँ दुर्गा उत्सव का आयोजन करिए !! तो बंगाल मे समूहिक रूप से दुर्गा उत्सव मनाना शुरू हुआ जो जब तक जारी है ! तो दुर्गा उत्सव और गणेश उत्सव के आयोजनो के माध्यम से लाखो-लाखो लोग तिलक जी के संपर्क मे आए और तिलक जी ने उन्हे कहा कि आप सब इस बंगाल विभाजन का विरोध करें !! तो लोगो ने पूछा कि विरोध का तरीका क्या होगा ??? तो लोकमान्य तिलक ने कहा कि देखो भारत मे अँग्रेजी सरकार ईसट इंडिया कंपन्नी की मदद से चल रही है ! ईस्ट इंडिया कंपनी का माल जब तक भारत मे बिकेगा तब तक अंग्रेज़ो की सरकार भारत मे चलेगी !! जब माल बिकना बंद हो गया तो अंग्रेज़ो के पास धन जाना बंद हो जाएगा ! और अँग्रेज़ भारत से भाग जाएँगे !! इस तरह से लोगो ने बँटवारे का विरोध किया ! और भंग भंग के विरोध मे एक आंदोलन शुरू हुआ ! और इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे (लाला लाजपतराय) जो उत्तर भारत मे थे !(विपिन चंद्र पाल) जो बंगाल और पूर्व भारत का नेतत्व करते थे ! और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जो पश्चिम भारत के बड़े नेता थे ! इस तीनों नेताओ ने अंग्रेज़ो के बंगाल विभाजन का विरोध शुरू किया ! इस आंदोलन का एक हिस्सा था (अंग्रेज़ो भारत छोड़ो) (अँग्रेजी सरकार का असहयोग) करो ! (अँग्रेजी कपड़े मत पहनो) (अँग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करो) ! और दूसरा हिस्सा था पोजटिव ! कि भारत मे स्वदेशी का निर्माण करो ! स्वदेशी पथ पर आगे बढ़ो ! लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दो मे इसको स्वदेशी आंदोलन कहा ! अँग्रेजी सरकार इसको भंग भंग विरोधे आंदोलन कहती रही !लोकमान्य तिलक कहते थे यह हमारा स्वदेशी आंदोलन है ! और उस आंदोलन के ताकत इतनी बड़ी थी !कि यह तीनों नेता अंग्रेज़ो के खिलाफ जो बोल देते उसे पूरे भारत के लोग अपना लेते ! जैसे उन्होने आरके इलान किया अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद करो !करोड़ो भारत वासियो ने अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद कर दिया ! उयर उसी समय भले हिंदुतसनी कपड़ा मिले मोटा मिले पतला मिले वही पहनना है ! फिर उन्होने कहाँ अँग्रेजी बलेड का इस्तेमाल करना बंद करो ! तो भारत के हजारो नाईयो ने अँग्रेजी बलेड से दाड़ी बनाना बंद कर दिया ! और इस तरह उस्तरा भारत मे वापिस आया ! फिर लोक मान्य तिलक ने कहा अँग्रेजी चीनी खाना बंद करो ! क्यू कि चीनी उस वक्त इंग्लैंड से बन कर आती थी भारत मे गुड बनाता था ! तो हजारो लाखो हलवाइयों ने गुड दाल कर मिठाई बनाना शुरू कर दिया ! फिर उन्होने अपील लिया अँग्रेजी कपड़े और अँग्रेजी साबुन से अपने घरो को मुकत करो ! तो हजारो लाखो धोबियो ने अँग्रेजी साबुन से कपड़े धोना मुकत कर दिया !और काली मिट्टी से कपड़े धोने लगे !फिर उन्होने ने पंडितो से कहा तुम शादी करवाओ अगर ! तो उन लोगो कि मत करवाओ जो अँग्रेजी वस्त्र पहनते हो ! तो पंडितो ने सूट पैंट पहने टाई पहनने वालों का बहिष्कार कर दिया ! इतने व्यापक स्तर पर ये आंदोलन फैला !कि 5-6 साल मे अँग्रेजी सरकार घबरागी क्यूंकि उनका माल बिकना बंद हो गया ! ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा चोपट हो गया ! तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव डाला ! कि हमारा तो धंधा ही चोपट हो गया भारत मे ! भारतीयो ने हमार समान खरीदना बंद कर दिया है ! हमारे सामानो की होली जालाई जा रही हैं ! लोकमान्य तिलक के 1 करोड़ 20 लाख कार्यकर्ता ये काम कर रहे हैं !हमारे पास कोई उपाय नहीं है आप इन भारतवासियो के मांग को मंजूर करो मांग क्या थी कि यह जो बंटवारा किया है बंगाल का हिन्दू मुस्लिम से आधार पर इसको वापिस लो हमे बंगाल के विभाजन संप्रदाय के आधार पर नहीं चाहिए !! ! और आप जानते अँग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा ! और 1911 मे divison of bangal act वापिस लिया गया ! और इस तरह पूरे देश मे लोकमान्य तिलक की जय जयकार होने लगी !! तो मित्रो इतनी बड़ी होती है बहिष्कार कि ताकत ! जिसने अंग्रेज़ो को झुका दिया और मजबूर कर दिया कि वो बंगाल विभाजन वापस लें ! हमेशा याद रखें कि दुश्मन को अगर खत्म करना है तो उसकी supply line ही काट दो ! दुश्मन अपने आप खत्म हो जाएगा ! स्वदेशी और स्वराज्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ! बिना स्वदेशी के स्वराज्य कभी संभव नहीं !! भारतीयो मे स्वदेशी की अलख जगाने वाले ! स्वदेशी आंदोलन के जनक लोकमान्य तिलक को शत शत नमन !! Internet ke madhyam se .. |
06-09-2016, 08:41 PM | #2 |
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Re: Ganesh utasav or pratham swadeshi aandolan
[1904 में लोकमान्य तिलक ने लोगो से कहा कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देशय स्वराज्य हासिल आपको भी गणेश उत्सव की बहुत बहुत शुभकामनायें, बहन पुष्पा जी. आज भारत आज़ाद है. लोकमान्य की वाणी फलीभूत हुयी. आज हम सब लोग खुशी से कह सकते हैं- गणपति बाप्पा मोरिया. धन्यवाद.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
06-09-2016, 09:54 PM | #3 | |
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Re: Ganesh utasav or pratham swadeshi aandolan
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