12-10-2016, 11:24 PM | #1 |
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इस राह पे आबाद थे (ग़ज़ल)
इस राह पे आबाद थे मयखाने बहुत से
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
12-10-2016, 11:44 PM | #2 |
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Re: इस राह पे आबाद थे (ग़ज़ल)
[QUOTE=rajnish manga;559631][indent]इस राह पे आबाद थे मयखाने बहुत से
बिखरे हैं यहाँ टूट के पैमाने बहुत से किसी ग़रीब की आहों का ये असर तो नहीं बस्ती बस्ती हैं बस गए वीराने बहुत से आती हैं बहारें हर इक दौरे खिज़ां के बाद इस जैसे सुने हमने भी अफ़साने बहुत से कारोबार-ए-वक़्त की ले कर शिकायतें मिलने चले खुदा से लो दीवाने बहुत से तेरे शहर ने हमको तो काफिर बना दिया अरे वह भाई आपकी इतनी पुरानी लिखी ग़ज़ल है ये तो बहुत भावपूर्ण है आती हैं बहारें हर इक दौरे खिज़ां के बाद[...इस जैसे सुने हमने भी अफ़साने बहुत से हर शख्स के सीने में हैं बुतखाने बहुत से. |
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