09-01-2017, 06:36 PM | #11 |
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Re: शायर व शायरी
साभार: शमशाद शाद ऐसा नहीं कि दोस्तो चाहत नहीं मिली दिल ही को प्यार करने की फ़ुर्सत नहीं मिली जब भी कहीं हुआ है मेरा उनसे सामना आँखों को देखने की इजाज़त नहीं मिली सहरा की धूप में ही रहा गामज़न सदा सायों को आज़माने की मोहलत नहीं मिली वहम-ओ-गुमान में ही कहीं छिप गया है वो दिल में कहीं भी उसकी अलामत नहीं मिली यूं तो हर एक अज़्व पे उस का है इख़तियार दिल पर मगर दिमाग़ को सबक़त नहीं मिली राहों की ख़ाक छानी है मैंने तमाम उम्र इक पल सुकूँ से सोने की फ़ुर्सत नहीं मिली मकर-ओ-फ़रेब होते हैं ख़ूबी में अब शुमार ढूँढा मगर कहीं भी सदाक़त नहीं मिली कैसा गिला, ये कैसी शिकायत अरे मियां छोड़ो ये बोलना कि रफ़ाक़त नहीं मिली यूं तो रहे हैं कितनों की पहली पसंद हम लेकिन हर इक से अपनी तबीयत नहीं मिली तन्हाइयों से इस लिए रग़बत रही कि शाद मुझको मेरे मिज़ाज की संगत नहीं मिली
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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