23-03-2017, 06:28 PM | #1 |
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Bhagat Singh-Sukhdev-Rajguru
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 23-03-2017 at 06:33 PM. |
23-03-2017, 07:07 PM | #2 |
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Re: Bhagat Singh-Sukhdev-Rajguru
मैं नास्तिक क्यों हूँ (सरदार भगत सिंह) – एक अंश
समाज को इस ईश्वरीय विश्वास केविरुद्ध उसी तरह लड़ना होगा जैसे कि मूर्ति-पूजा तथा धर्म-संबंधी क्षुद्रविचारों के विरुद्ध लड़ना पड़ा था। इसी प्रकार मनुष्य जब अपने पैरों परखड़ा होने का प्रयास करने लगे और यथार्थवादी बन जाए तो उसे ईश्वरीय श्रद्धाको एक ओर फेंक देना चाहिए और उन सभी कष्टों, परेशानियों का पौरुष के साथसामना करना चाहिए जिसमें परिस्थितियाँ उसे पलट सकती हैं। मेरी स्थिति आजयही है। यह मेरा अहंकार नहीं है। मेरे दोस्तों, यह मेरे सोचने का ही तरीकाहै जिसने मुझे नास्तिक बनाया है। मैं नहीं जानता कि ईश्वर में विश्वास औररोज-बरोज की प्रार्थना - जिसे मैं मनुष्य का सबसे अधिक स्वार्थी और गिराहुआ काम मानता हूँ - मेरे लिए सहायक सिद्ध होगी या मेरी स्थिति को और चौपटकर देगी। मैंने उन नास्तिकों के बारे में पढ़ा है, जिन्होंने सभी विपदाओंका बहादुरी से सामना किया, अतः मैं भी एक मर्द की तरह फाँसी के फंदे कीअंतिम घड़ी तक सिर ऊँचा किए खड़ा रहना चाहता हूँ। देखना है कि मैं इस पर कितना खराउतर पाता हूँ। मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा। जब मैंने उसेअपने नास्तिक होने की बात बतलाई तो उसने कहा, 'देख लेना, अपने अंतिम दिनोंमें तुम ईश्वर को मानने लगोगे।' मैंने कहा, 'नहीं प्रिय महोदय, ऐसा नहींहोगा। ऐसा करना मेरे लिए अपमानजनक तथा पराजय की बात होगी। स्वार्थ के लिएमैं प्रार्थना नहीं करुंगा।' पाठकों और दोस्तो, क्या यह अहंकार है? अगर है, तो मैं इसे स्वीकार करता हूँ। (भगत सिंह का यह आलेख ‘Why I am an Atheist’ लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित और लाहौर से छपने वाले अखबार ‘The People’ में दिनांक 27 सितंबर 1931 को छपा था. आपको याद होगा कि लाला लाजपत राय की शहादत का बदला लेने के लिये ही भगत सिंह और उनके साथियों ने 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॅान्डर्स की हत्या की थी)
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