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Old 13-12-2017, 03:16 PM   #1
soni pushpa
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आपके बच्चों के पास अच्छी वुद्धि है बस इसी बात से संतोष मत कर लेना, उसे वुद्धि के साथ-साथ अच्छे संस्कारों से अवश्य सिंचित करियेगा। बच्चों को सिखाओ नहीं करके दिखाओ, इससे वो जल्दी सीख जाते हैं। बच्चे वो नहीं करते जो आप कहते हैं, बच्चे वो करते हैं जो आप करते हैं। चाहकर भी आप अपने बच्चों से अपने पैर नहीं छुआ सकते इसके लिए पहले आपको स्वयं अपने माता-पिता के पैर प्रतिदिन छूने होंगे।
जो बात जीभ से कही जाती है उसका प्रभाव ज्यादा नहीं होता, जो बात जीवन से करके दी जाती है उसका ज्यादा प्रभाव होता है। अच्छी बातें केवल चर्चा का विषय नहीं हों वो चर्या ( आचरण ) का विषय जरूर बनें। आप चिल्लाओगे तो बच्चे भी चिल्लाना सीख जायेंगे।
अपने बच्चों को जीविका निर्वहन की ही शिक्षा मत देना, अच्छा जीवन जीने की भी शिक्षा देना। एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण मंदिर बनाने जैसा ही है।
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Old 14-12-2017, 03:12 PM   #2
rajnish manga
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Originally Posted by soni pushpa View Post
....बच्चों को सिखाओ नहीं करके दिखाओ, इससे वो जल्दी सीख जाते हैं। ....चाहकर भी आप अपने बच्चों से अपने पैर नहीं छुआ सकते इसके लिए पहले आपको स्वयं अपने माता-पिता के पैर प्रतिदिन छूने होंगे।

....अपने बच्चों को जीविका निर्वहन की ही शिक्षा मत देना, अच्छा जीवन जीने की भी शिक्षा देना। एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण मंदिर बनाने जैसा ही है।
बहुत सुंदर .... वाह .... वाह .... इस छोटे से आलेख के ज़रिये आपने एक महत्वपूर्ण विषय की ओर हम सबका ध्यान आकर्षित किया है. आपने सत्य कहा कि बच्चे कहने से कोई बात इतनी नहीं सीखते जितना वह अपने बड़ों का आचरण देख कर सीखते हैं. बाल मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों को सिखाने का यह एक सफल व आजमाया हुआ तरीका है. बहुत दिनों बाद आपका आलेख पढने को मिला. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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Old 15-12-2017, 03:04 PM   #3
soni pushpa
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[QUOTE=rajnish manga;562472]बहुत सुंदर .... वाह .... वाह .... इस छोटे से आलेख के ज़रिये आपने एक महत्वपूर्ण विषय की ओर हम सबका ध्यान आकर्षित किया है. आपने सत्य कहा कि बच्चे कहने से कोई बात इतनी नहीं सीखते जितना वह अपने बड़ों का आचरण देख कर सीखते हैं. बाल मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों को सिखाने का यह एक सफल व आजमाया हुआ तरीका है. बहुत दिनों बाद आपका आलेख पढने को मिला. आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.[/QUOTE
भाई बहुत बहुत धन्यवाद-- इस छोटे से आलेख को आपने पसंद किया और इतने सुन्दर शब्दों से सराहना की ..
माफ़ी चाहती हूँ भाई आपसे और अपने पाठकों से बहुत दिन हो गए कुछ लिख नहीं पाई थी किन्ही कारण से। .
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