22-04-2019, 04:15 AM | #1 |
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गीत- नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी
★★★★★★★★★★★★★ शिला की तरह टूटते जा रहे हैं कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं न दादा के रिश्ते न दादी के रिश्ते सभी ढो रहे सिर्फ शादी के रिश्ते जड़ों में ही विष कूटते जा रहे हैं कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी न कोई है पन्ना न कोई कहानी विरासत मगर लूटते जा रहे हैं कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं क्यों पुरखे हमें अब नहीं याद आते ये रिश्तों के बिखराव मन को दुखाते घड़े भाव के फूटते जा रहे हैं कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं गीत- आकाश महेशपुरी ■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 22-04-2019 at 04:49 AM. |
25-04-2019, 11:46 AM | #2 |
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Re: गीत- नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी
शिला की तरह टूटते जा रहे हैं
कि रिश्ते सभी छूटते जा रहे हैं एक बहुत सुंदर व भावपूर्ण गीत के लिए धन्यवाद, आकाश जी. यह आज के वक़्त की तस्वीर है जहां सब लोग आत्म-केन्द्रित हो गए हैं.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
07-05-2019, 09:01 PM | #3 |
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Re: गीत- नहीं पूर्वजों की सहेजी निशानी
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