10-08-2020, 05:00 PM | #11 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
विजय रेलवे यार्ड से गुजर रहा है, देखता है कि एक भिखारी सर्दी में ठिठुर रहा है. विजय उसे अपना कोट दे देता है. कोट देने के बाद विजय पुल की सीढ़ियों से उतर कर रेल की पटरियों की तरफ़ बढ़ने लगता है. भिखारी को विजय पर शक होता है. वह विजय के पीछे चल देता है. विजय के पीछे-पीछे चल रहे भिखारी का पैर बदलते हुए रेल ट्रैक में फंस जाता है. उस पटरी पर दूर से ट्रेन आ रही है, विजय भिखारी को बचाने का प्रयास करता है. लेकिन विजय उस भिखारी को बचा नहीं पाता है. अगले दिन सुबह मिस्*टर घोष अख़बार में भिखारी के मरने की छपी हुई खबर को पढ़ रहे हैं. दरअसल मिस्टर घोष उस खबर को पढ़ने से ज्यादा पास बैठकर चाय बना रही पत्नी मीना को सुना रहे हैं. मिस्टर घोष, ‘शक्ल पहचानना भी मुश्किल हो गया है. उस नौजवान की जेब में एक ख़त पाया गया. जिसमें वह एक नज़्म अपने आख़िरी पैग़ाम की सूरत में दुनिया के लिए छोड़ गया. शायर का नाम विजय था.’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
10-08-2020, 05:01 PM | #12 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
लेकिन किसी को पता नहीं था कि विजय मरा नहीं है, वह एक पागलख़ाने में है. वहीं दूसरी तरफ अब गुलाबो की जिंदगी का एक ही मक़सद है कि वो विजय की किताब छपवाना चाहती है. वह मिस्टर घोष के पास जाती है और अपने ज़ेवरों की पोटली रख देती है. गुलाबो कहती है, ‘मेरी ज़िंदगी की सारी पूंजी… ये इन्हें छपवाने की क़ीमत है. मैं इससे ज्*़यादा और कुछ नहीं दे सकती. इनका छपना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है. अगर आप इन्हें छाप दें तो उम्र भर आपका एहसान मानूंगी.’
विजय की किताब छप गई है. किताब की जबरदस्त बिक्री होती है. एक दुकान के कोने में गुलाबो कहती है, ‘काश! तुम यह अपनी आंखों देखते!’. दूसरी तरफ अस्*पताल में विजय लेटा है. बगल में बैठी नर्स ‘परछाइयां’ की नज़्म बोल बोल कर पढ़ रही है. जिसे सुनने के बाद विजय बिस्तर से उठ जाता है. यह देखकर नर्स चौंक जाती है और ‘डॉक्*टर!… डॉक्*टर!’ चिल्*लाने लगती है. डॉक्टर के आने पर विजय कहता है कि यह उसकी नज़्में हैं. विजय को सुनने के बाद डॉक्*टर ने कहा, ‘अजी साहब, जिस विजय ने यह किताब लिखी है, वह न जाने कब के मर चुके हैं! ठीक से याद कीजिए… क्*या नाम है आपका?’
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10-08-2020, 05:03 PM | #13 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
विजय अपने विजय होने का दावा करता है. उसकी शिनाख़्त के लिए मिस्टर घोष को बुलाया जाता है. मिस्टर घोष झूठ बोलते हैं कि यह विजय नहीं है. इस तरह से विजय पागलख़ाने आ जाता है. पागलखाने में एक दिन विजय सड़क पर मालिश वाले अब्*दुल सत्तार (जॉनी वाकर) को गुजरे हुए देखता है. विजय ने अब्दुल को आवाज़ दी. पहले तो अब्*दुल सत्तार उसे विजय का भूत समझा, बाद में उसके जीवित होने का पूरा भरोसा होने पर चालाकी पागलख़ाने से निकाल लिया. पागलख़ाने से निकल कर विजय भाईयों के पास पहुंचा, जहां दोनों भाईयों ने उसे पहचानने से इनकार कर दिया. मंझले भाई ने यहां तक कहा, ‘मान न मान… मैं तेरा मेहमान! हमारा झूठा भाई बनते हुए तुम्*हें शर्म नहीं आती!’.
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10-08-2020, 05:03 PM | #14 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
भाईयों से धक्के खाकर विजय ट्राम में बैठता है. विजय की झूठी मौत को आज एक साल पूरा हो गया. कलकत्ते के ही किसी बड़े हाल में बड़ी शान के साथ विजय की मौत की पहली बरसी मनाई जाने वाली है. ट्राम में बैठा एक शख़्स अपने दोस्*त कह रहा है, ‘विजय बहुत बड़े शायर तो थे ही, साथ में मेरे दोस्*त भी थे. अक़्सर मेरे पास पैसों की मदद मांगने आया करते थे. मैं न होता तो वो 6 महीने पहले ही आत्*महत्*या करके मर गए होते.’ विजय बड़ी खामोशी से यह सब सुन रहा है.
लोगों से खचाखच भरा एक बहुत बड़ा सा हॉल. स्टेज पर मिस्*टर घोष, उनकी पत्नी मीना और अन्*य लोग बैठे हैं. दर्शकों में अब्*दुल सत्तार और गुलाबो बैठे हैं. विजय के दोनों भाई और दोस्त भी मौजूद हैं. विजय हॉल में सबसे पीछे है. स्टेज पर मिस्*टर घोष विजय की शान में भाषण दे रहे हैं, ‘साहिबान, आप लोग तो जानते हैं कि शायर-ए-आज़म विजय मरहूम की बरसी मनाने हम लोग यहां जमा हुए हैं. पिछले साल इसी दिन वह मनहूस घड़ी आई थी, जिसने दुनिया से इतना बड़ा शायर छीन लिया. अगर हो सकता तो मैं अपनी सारी दौलत लुटा कर भी, ख़ुद बिक कर भी, विजय को बचा लेता लेकिन ऐसा न हो सका. क्यों? आप लोगों की वज़ह से! कहने को तो दुनिया कहती है विजय ने अपनी जान दे दी, लेकिन दरअसल आप लोगों ने उनकी जान ले ली. काश! आज विजय मरहूम ज़िंदा होते तो वह देखते कि जिस समाज ने उन्हें भूखा मारा, आज वही समाज उन्हें हीरे और जवाहरात में तौलने के लिए तैयार है. जिस दुनिया में वह गुमनाम रहे, आज वही दुनिया उन्हें अपने दिलों के तख्*़त पर बैठाना चाहती है. उन्हें शोहरत का ताज पहनाना चाहती है. उन्हें ग़रीबी और मुफ़लिसी की गलियों से निकाल कर महलों में राजा बनाना चाहती है’.
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10-08-2020, 05:04 PM | #15 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
यह सब सुनने के बाद विजय हॉल में पीछे की तरफ़ फ़र्श पर बैठ जाता है. विजय के दोनों हाथ चौखठों से लगे हुए हैं. चौखठ के पीछे रोशनी है और इस रोशनी में विजय गा रहा है, ‘ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया, ये इंसा के दुश्मन, समाजों की दुनिया, ये दौलत के अंधे रिवाज़ों की दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! हर इक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी, निगाहों में उलझन, दिलों में उदासी, ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, यहां इक खिलौना है इंसा की हस्ती, ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती, यहां पर तो जीवन से है मौत सस्ती, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जवानी भटकती है बदकार बन कर, यहां जिस्म सजते हैं बाज़ार बन कर, यहां प्यार की क़द्र ही कुछ नहीं है, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है!, जला दो इसे, फूंक डालो ये दुनिया, मेरे सामने से हटा दो ये दुनिया, तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया, ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है….
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 10-08-2020 at 05:09 PM. |
06-09-2020, 04:01 PM | #16 | |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
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08-09-2020, 07:29 PM | #17 |
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Re: गुरुदत्त की फिल्म प्यासा
बहुत बढ़िया सर जी
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