19-09-2020, 05:20 PM | #1 |
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नया मोबायल
अभी पिछले साल ही मेरा व्याह हुआ पर आज भी बाप की कमाई पर ही टिका हुआ। यूँ तो ससुराल से बहुत कुछ आया, पर मेरी मर्जी का कुछ भी नहीं आया। यहाँ तक कि बीवी भी, साथ में साइकिल और टी वी भी।। आप मानो या न मानो, ये बात जी में जानो तो जानो। मैं कैसा हूँ अजूबा? ककड़ी हूँ या खरबूजा? पर मेरे पास खुद का मोबायल नहीं है। जैसे गाडी तो है पर आयल नहीं है। इससे मेरी खतम हो चुकी है मोबिलिटी, साथ में डाउन हो रही है पर्सनेलिटी।। वैसे तो बीवी अपने साथ एक लायी है, वह थोड़े ही कोई पराई है? पर मुझे कम ही छूने देती है, और बहाने बना झिड़क देती है। इस मामले में उसके नई नवेली जैसे नखरे हैं, और यह बात मुझे रह रह के अखरे है। अब मैं कितना ओर सहूँ बेचारा। मैंने घरवालों के आगे मुँह फाड़ा।। पर वे साफ दिख रहे इस चक्कर में, किसी तरह मोबायल झटकें बीवी के पीहर से। बापू ने कई बार यह बात, मेरी जानू चुनिया को कही तकरार में। मा ने तो खुल्लम खुल्ला हल्ला बोल दिया, मैंने भी कुछ कहा परवान चढ़ते प्यार में।। आखिर अर्जी ऊपर तक पहुँच गयी, दुविधा के पाटों में सास ससुर को भींच गयी। चुनिया ने झिक झिक से हो कर बेहाल, फोन लगा बाप को भी दिया सदमे में डाल, डरते सहमते कह डाला यहाँ का सारा हाल, कुछ तो करो बापू तंग करे सारा ससुराल।। दुखी बाप ने किसी तरह बेटी को फोन पे पुचकारा, उस के सास ससुर को पानी पी पी दुत्कारा, पर बाद में सारा गुस्सा चुनिया की माँ पे उतारा। ये लालच के अंधे, दहेज के खूंटे से जकड़ के बंधे, कैसे कैसे इनके गोरखधंधे? गरीबों का सारा सुख चैन इन्होंने छीना, पराई बेटियों का हराम किया इन्होंने जीना, अरे दहेज के लोभी, अब कितना और बचा खून का पीना? बदहवासी से भरे उन कुछ ही पलों में, वह दिलजला खोया जग के बेरहम छलों में, संसार भर पर उसने उड़ेल दी अंदर की सारी आग। तमतमा गया चेहरा, मुख से लगे निकलने झाग।। तब चुनिया की माँ ने उनको हाथ पकड़ समझाया। अजी! नया नहीं कुछ इसमें ये तो सदियों से होता आया। सुनोजी! जब इतना दिया तो एक ये भी ओर सही, अब थूक भी दो गुस्सा सुनो ध्यान से मेरी कही। तोले भर का मंगल सूत्र, छिपा रखा मैंने गठड़ी में, खटिया के नीचे पड़ी, उस जंग लगी सन्दूकड़ी में। जंवाई राजा का उससे मोबायल आ जाएगा। बिटिया के ससुराल वालों का घर भी बस जाएगा।। आखिर मंगल सूत्र एक और, भेंट चढ़ा दहेज की ज्वाला में। नारी का सुहाग चिन्ह बिका, स्वार्थ की मधुशाला में।। पर विरोध कर इसका, इस समाज को कौन करे घायल? जो भी हो आ ही गया एक नया मोबायल।। बासुदेव अग्रवाल 'नमन' तिनसुकिया |
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