11-01-2021, 08:05 PM | #1 |
Diligent Member
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ग़ज़ल- हुए हम तो आखेट तिरछी नज़र के
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ रहे घाट के ना रहे आज घर के हुए हम तो आखेट तिरछी नज़र के मिला ही जनम से कलर मुझको ऐसा मैं गोरा नहीं हो सकूँगा सँवर के यही सोचकर मैं तो इतरा रहा हूँ सलामत अभी बाल हैं मेरे सर के भजन में सुनो ध्यान अपना लगाओ तक़ाज़े यही हैं तुम्हारी उमर के तू बीरू नहीं, वो बसंती नहीं है चले आओ 'आकाश' नीचे उतर के ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 09/01/2021 ■■■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा "आकाश महेशपुरी" ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मोबाइल- 9919080399 Last edited by आकाश महेशपुरी; 13-01-2021 at 09:16 AM. |
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