17-03-2021, 12:54 PM | #1 |
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ग़ज़ल- आये थे वीराने से...
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ आये थे वीराने से फिर वही वीरानी है चार दिन के जीवन की बस यही कहानी है लौटना नहीं मुमकिन है सफ़र ये जीवन का छोड़ जाये बचपन भी कब रुकी जवानी है उम्र ये गुजर जाती रोटियाँ कमाने में है कमर झुकी सी जो बोझ की निशानी है बेवफ़ा ज़माने में अश्क़ यूँ बहाना क्या टूटना तो है इसको दोस्ती पुरानी है पूछते ही रहते हो है 'आकाश' जीवन क्या दर्द का समुंदर है पर ख़ुशी चुरानी है ग़ज़ल- आकाश महेशपुरी दिनांक- 09/03/2021 ■■■■■■■■■■■■■■■■ वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी' ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरनाथ जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश पिन- 274304 मो- 9919080399 *मापनी- 212 1222 212 1222 |
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