My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Hindi Literature
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 22-05-2022, 08:39 AM   #1
आकाश महेशपुरी
Diligent Member
 
आकाश महेशपुरी's Avatar
 
Join Date: May 2013
Location: कुशीनगर, यू पी
Posts: 942
Rep Power: 24
आकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud ofआकाश महेशपुरी has much to be proud of
Send a message via AIM to आकाश महेशपुरी
Default हवा-बतास (भोजपुरी कहानी)

हवा-बतास

'ये ईया! कुछ समय खातिर गाजियाबाद चलऽ ना!'
'ना बाबू! हमके शहर के पानी सूट ना करी... रहे दऽ।'
मोहन के ईया उनके मना क दिहली। मोहन के परिवार में उनके माई, बाबूजी, भाई आ बहिन गाँव में ईया के साथे रहत रहे लो। मोहन गाजियाबाद के एगो कारखाना में काम करत रहलन। उनके मेहरारु आ दू गो लइका उनही के साथे गाजियाबाद में रहे लो। मोहन कुछ दिन खातिर घरे आइल रहलन।
'ये ईया! एक बेर चलऽ त सही, हमरा पूरा विश्वास बा कि ओइजा के सुख-सुविधा तहार मन मोहि ली।' मोहन हाँथ जोरि के कहलन।
'बाबू! पूरा जिनिगी येही माटी में सिरा गइल अब ये बुढ़ौती में का दुनिया देखावल चाहत बाड़ऽ, छोड़ऽ जाये दऽ!'
'बस एक बेर चलऽ ना! हमरा आशा बा कि तहरा शहर में बहुते अच्छा लागी!'
मोहन के परिवार एगो बहुते सभ्य आ संस्कारित परिवार रहे। सब केहू इहे सोचे कि पूरनिया के सेवा हमहीं करीं। मोहन अपनो हिस्सा के सेवा क लिहल चाहत रहलन। येही से जिद प उतारू हो गइलन। नाती के जिद देखि के ईया के एक ना चलल। ऊ गाजियाबाद जाये खातिर तइयार हो गइली। मजबूरी में घरवो के लोग जाये के इजाजत दे दिहल।
सबेरे मोहन अपनी कार से शहर खातिर चल दिहलन। कई घंटा के सफर के बाद गाड़ी जब गाजियाबाद पहुँचल त ईया के माथा जवन लमहर यात्रा के कारन पहिलहीं से घुमावत रहे, शहर के अजीब दुर्गंध से अउर तेज घुमावे लागल। उनके उल्टी प उल्टी होखे लागल। मोहन कुल्ला करऽवलन आ कोल्डड्रिंक ले के अइलन। ईआ कहली 'हम ई ना पीअबि, ई बहुते नटई जरावेला। चलऽ अब उल्टी ना होई।' ईया तनी सा पानी पियली फेर गाड़ी आगे बढ़ि चलल।
'बाबू येहिजा येतना बसात कवन ची बा हो?'
'नाला के पानी हऽ। अपनी गाँवे के नहर जेतना चाकर बा, ओकरो से चाकर येइजा के नाला बा। जेइमें शहर के तमाम खराब फल, सब्जी, अनाज, खाना, कपड़ा-लत्ता, पलास्टिक इहाँ तक ले की मल-मूत्र हरदम बहत आ सरत रहेला। उहे कुल बसा रहल बा।'
ईया के फेर ओकाई आवे लागल।
'ये बाबू! कवनो बाग-बगइचा होखे त रोकऽ, तनी सुस्ता लिहल जा फेर आगे चलल जाई।'
ईया गाड़ी से बाहर देखली, दूर दूर ले गाड़ियन के भीड़ रहे, पैदल, मोटरसाइकिल भा साइकिल से लोग येने ओने ये तरे भागत रहे जइसे कुछु भिला गइल होखे भा छूट गइल होखे। ऊ गाँव के लोगन में येतना बेचैनी कबो ना देखले रहली। उनके आसमान छुअत इमारत, चिमनी, धुँआ आ शोरगुल के अलावा कवनो छायादार पेड़ ना लउकल। मोहन कहलें- 'चलऽ अब ढेर लामें नइखे, क्वाटरे पर आराम कइल जाई। येने पेड़-खूंट बहुत कम बाड़ीसन, आ जवन बचलो बा उहो कारखाना भा घर बनावे खातिर लगातार कटात जात बा। बुझात बा कि कुछ बरीस में इँहवा साँसो लिहल मुश्किल हो जाई।'
'कुछ बरीस के का कहत बाड़ऽ, हमरा त अबे से साँस फूलल आ आँखि भाम्हाइल शुरू हो गइल बा।'
मोहन मनेमन सोचे लगलें 'हम ईया के येइजा लेआ के गलती त ना क दिहनी! कहीं ई बेमार मत हो जास! अभिन येतने देर में ई हाल बा, एक-दू महीना में का होई!' ईहे कुल सोचत ऊ अपना क्वाटर पर पहुँच गइलन।
'ये नेहा! देखऽ केकरा के ले आइल बानीं! मोहन के मेहरारु नेहा क्वाटर से बाहर निकलली त ईया के देखी के अघा गइली। ऊ उनकर पाँव छुवली आ अंदर ले के जाते रहली तले उनके दुनु लइका स्कूल से आ गइलन सँ आ 'दादी अइली... दादी अइली...' कहत उनके पाँजा में पकड़ी लिहले सन। पनातिन के देखि के ईया के मन गदगद हो गइल। ऊ दुनु बचवन के खूब दुलार आ आशीष दिहली।
सभे अंदर आइल, ईया के तबियत गड़बड़ा गइल रहे येहीसे ऊ कुछ खइली ना। रातभर उनके नींद ना आइल कहाँ गाँव के शांत आ पवित्र वातावरन आ कहाँ इ शहर के पेंक-पांक, जहर भरल हवा। साँस लिहला आ आँख में जलन के दिक्कत बढ़ते गइल। ईया रातभर ना सुतली त दुसरो केहू के नींद ना आइल। सबेरे नहा धो के ऊ तनी सा खाना खइली बाकिर साँस फूलले के परेशानी बढ़ते जात रहे। मोहन डिउटी पर चल गइल रहलन, ईया के दम घुटे लागल, कुछ देर में उनके तबियत अउर खराब हो गइल। अचानक ऊ बेहोश हो के गिर गइली। नेहा ई सब देखि के घबरा गइली ऊ मोहन लगे फोन क के सब हाल बतवली आ ईया के लेके हास्पिटल पहुँच गइली जहाँ उनके आक्सीजन दिआये लागल। मोहन हास्पिटल पहुँचलन त उनके ईया अभीन बेहोशे रहली। ऊ बैचैन हो गइलन। घरहू फोन करे के हिम्मत ना होखे, काहे कि ऊ खुदही जिद क के उनके येइजा ले आइल रहलन। पुछला पर डाक्टर बतवलन कि अत्यंत प्रदूषण के कारन ई दिक्कत भइल बा। कुछ समय के बाद इनके होश आ जाई।
दू-तीन घंटा के बाद ईया के होश आ गइल। होश आवते ऊ मोहन से कहली 'हमके गाँवे... पहुँचा दऽ! ये शहर में हम... ना जी पाइबि। गाँव के हवा-बतास खातिर एके दिन में ई आत्मा तरस गइल बा। तुहूँ ये शहर...के बजाय कवनो अइसन शहर में...नोकरी खोजि ल जहाँ...शुद्ध हवा पानी मिले!' नेहा उनकी बाति के समर्थन कइली आ कहली कि 'लइकन के आज से गरमी के छुट्टी हो गइल बा हमनियो के लेहले चलीं। बहुत दिन हो गइल गाँव के अमरित नियर हवा खइले। हमनी के पहुँचा के आइबि त तनी कम्पनी से बात क के कवनो साफ सुथरा शहर में आपन ट्रांसफर करवा लेब। लइको जब शुद्ध वातावरन में पढ़िहे सन त ओकनी के दिमाग आ देहि बढ़िया से विकसित होई।' मोहन हामीं भरले।
ओइदिने सांझी के सभे गाँव के ओर चल दिहल। शहर पार करते ईया के साँस के गति सामान्य होखे लागल। ईया के तबियत सुधरत देख मोहन के जान में जान आइल।

कहानी- आकाश महेशपुरी
दिनांक- 21/05/2022
■■■■■■■■■■■■■■■
वकील कुशवाहा 'आकाश महेशपुरी'
ग्राम- महेशपुर
पोस्ट- कुबेरनाथ
जनपद- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश
पिन- 274304
मो- 9919080399
आकाश महेशपुरी is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 12:32 PM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.