16-06-2024, 05:42 AM | #1 |
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बूँद बूँद खुशियों को खुरचना पड़ता है
अब तो अक्सर ही खुद से झगड़ना पड़ता है, छाँव यूँ ही नहीं आती मेरे आँगन में , भरी दुपहरिया, घर से निकलना पड़ता है। बूँद बूँद खुशियों को खुरचना पड़ता हैं। बूँद बूँद खुशियों को खुरचना पड़ता है, मंजिलों में कहाँ कोई किनारा दिखाई पड़ता है, एक ज़िम्मेदारी है खुश दिखने की मुझ पर, बेमन से ही सही, हँसना पड़ता है। बूँद बूँद खुशियों को खुरचना पड़ता है। Last edited by vaibhav srivastava; 16-06-2024 at 05:45 AM. |
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