06-04-2011, 10:06 PM | #31 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
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06-04-2011, 10:06 PM | #32 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
राम ने कहा, "गुरुदेव! आपकी आज्ञा मुझे शिरोधार्य है। समस्त मानवों के कल्याण के लिये मैं अवश्य ही ताड़का का वध करूँगा।" इतना कह कर राम ने अपने धनुष पर बाण रख कर उसकी प्रत्यंचा को कान तक खींच कर भयंकर टंकार किया। टंकार से उत्पन्न ध्वनि से समस्त वन प्रान्त गुंजायमान हो उठा। वन्य प्राणी भयभीत होकर इधर उधर भागने लगे। इस प्रकार की अप्रत्याशित खलबली मची देखकर ताड़का क्रोध से भर उठी। धनुष ताने राम को देखते ही इस विचार से कि कोई अपरिचित कुमार उसके साम्राज्य पर आधिपत्य करना चाहता है वह क्रोध से पागल हो गई। राम पर आक्रमण करने के लिये वह तीव्र गति से उन पर झपटी। ताड़का को अपनी ओर आते देख कर राम ने लक्ष्मण से कहा, "हे सौमित्र! ताड़ के वृक्ष जैसी विशाल और विकराल मुख वाली इस राक्षसी का शरीर कितना कुरूप है। इसकी मुख मुद्रा देख कर ही प्रतीत होता है कि यह बड़ी हिंसक है और निरीह प्राणियों की हत्या करके उनका रक्तपान करने में इसे बहुत आनन्द आता होगा। तुम एक तरफ सावधान होकर खड़े हो जाओ और देखो कि कैसे इसे मैं अभी यमलोक भेजता हूँ।
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06-04-2011, 10:07 PM | #33 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
विकराल देहधारिणी ताड़का अपने बड़े बड़े दाँत चमकाती, भुजाओं को फैलाये हुये द्रुतगामी बिजली की तरह राम और लक्ष्मण पर अत्यन्त तीव्रता के साथ झपटी। राम इस भयंकर आक्रमण के लिये पहले से ही तत्पर थे, उन्होंने तीक्ष्ण बाण चला कर उसके हृदय को छलनी कर दिया। उसके वक्षस्थल से गर्म गर्म रक्त की धारा प्रवाहित हो उठी। वह आक्रमण करने के लिये पुनः टूट पड़े इससे पूर्व ही राम ने एक और बाण चला दिया जो सीधे उसके वक्ष में जाकर लगा। वह पीड़ा से चीखती हुई चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़ी और अगले ही क्षण उसके प्राण पखेरू उड़ गये। राम के इस रण कौशल और ताड़का की मृत्यु से ऋषि विश्वामित्र अत्यंत प्रसन्न हुये। उनके मुख से रामचन्द्र के लिये आशीर्वचन निकलने लगे।
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06-04-2011, 10:07 PM | #34 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
गुरु की आज्ञा से वहीं पर सभी ने रात्रि व्यतीत किया। प्रातःकाल उन्होंने देखा कि ताड़का के आतंक से मुक्ति पा जाने के कारण उस वन की भयंकरता और विकरालता समाप्त हो चुकी है। कुछ समय तक उस वन की शोभा निहारने के उपरान्त स्नान-पूजन से निवृत हो कर वे महर्षि विश्वामित्र के आश्रम की ओर चल पड़े।
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06-04-2011, 10:09 PM | #35 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
मार्ग में एक सुरम्य सरोवर दृष्टिगत हुआ। सरोवर के तट पर रुक कर विश्वामित्र कहा, "हे राम! ताड़का का वध करके तुमने बहुत बड़ा मानव कल्याण का कार्य किया है। मैं तुम्हारे इस कार्य, पराक्रम एवं चातुर्य से अत्यधिक प्रसन्न हूँ। मैं तुन्हें आज तुम्हें कुछ ऐसे दुर्लभ अस्त्र प्रदान करता हूँ जिनकी सहायता से तुम दुर्दमनीय देवताओं, राक्षसों, यक्षों, नागादिकों को भी परास्त कर सकोगे। ये दण्डचक्र, धर्मचक्र, कालचक्र और इन्द्रचक्र नामक अस्त्र हैं। इन्हें तुम धारण करो। इनके धारण करने के पश्चात् तुम किसी भी शत्रु को परास्त करने का सामर्थ्य प्राप्त कर लोगे। इनके अतिरिक्त मैं तुम्हें विद्युत निर्मित वज्रास्त्र, शिव जी का शूल, ब्रह्मशिर, एषीक और समस्त अस्त्रों से अधिक शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र देता हूँ। इन्हें पा कर तुम तीनों लोकों में सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न हो जाओगे। मैं तुम्हारी वीरता से इतना अधिक प्रसन्न हूँ कि तुम्हें प्रचण्ड मोदकी व शिखर नाम की गदाएँ प्रदान करते हुये मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है। मैं तुम्हें सूखी और गीली दोनों ही प्रकार की अशनी व पिनाक के साथ ही साथ नारायणास्त्र, आग्नेयास्त्र, वायव्यास्त्र, हयशिरास्त्र एवं क्रौंच अस्त्र भी तुम्हें प्रदान करता हूँ। अस्त्रों के अतिरिक्त मैं तुम्हें कुछ पाश भी देता हूँ जिनमें धर्मपाश, कालपाश एवं वरुणपाश मुख्य हैं। इनके पाशों के द्वारा तुम अत्यन्त फुर्तीले शत्रु को भी बाँध कर निष्क्रिय बनाने में समर्थ हो जाओगे।
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06-04-2011, 10:09 PM | #36 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
राम! कुछ अस्त्र ऐसे हैं जिनका प्रयोग असुर लोग करते हैं। नीति कहती है कि शत्रुओं को उनके ही शस्त्रास्त्रों से मारना चाहिये। इसलिये मैं तुम्हें असुरों के द्वारा प्रयोग किये जाने वाले कंकाल, मूसल, घोर कपाल और किंकणी नामक अस्त्र भी देता हूँ। कुछ अस्त्र का प्रयोग विद्याधर करते हैं। उनमें प्रधान अस्त्र हैं खड्ग, मोहन, प्रस्वापन, प्रशमन, सौम्य, वर्षण, सन्तापन, विलापन, मादनास्त्र, गन्धर्वास्त्र, मानवास्त्र, पैशाचास्त्र, तामस और अद्वितीय सौमनास्त्र; इन सभी अस्त्रों को भी मैं तुम्हें देता हूँ। ये मौसलास्त्र, सत्यास्त्र, असुरों का मायामय अस्त्र और भगवान सूर्य का प्रभास्त्र, हैं जिन्हें दिखाने मात्र से शत्रु निस्तेज होकर नष्ट हो जाते हैं। इन्हें भी तुम ग्रहण करो। अब इन अस्त्रों को देखो, ये कुछ विशेष प्रकार के अस्त्र हैं। ये सोम देवता द्वारा प्रयोग किये जाने वाले शिशर एवं दारुण नाम के अस्त्र हैं। शिशर के प्रयोग से शत्रु शीत से अकड़ कर और दारुण के प्रयोग से शत्रु गर्मी से व्याकुल होकर मूर्छित हो जाते हैं। हे वीरश्रेष्ठ! तुम इन अनुपम शक्ति वाले, शत्रुओं का मान मर्दन करने वाले और समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण कराने वाले अस्त्रों को धारण करो।"
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06-04-2011, 10:10 PM | #37 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
इतना कह कर महामुनि ने सम्पूर्ण अस्त्रों को, जो देवताओं को भी दुर्लभ हैं, बड़े स्नेह के साथ राम को प्रदान कर दिया। उन अस्त्रों को पाकर राम अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्होंने श्रद्धा के साथ गुरु को चरणों में प्रणाम किया और कहा, "गुरुदेव! आपकी इस कृपा से मैं कृतार्थ हो गया हूँ। अब देवता, दैत्य, राक्षस, यक्ष आदि कोई भी मुझे परास्त नहीं कर सकता, मनुष्य की तो खैर बात ही क्या है। किन्तु मुनिवर! इसी प्रकार के अस्त्र गन्धर्वों, देवताओं, राक्षसों आदि के पास भी होंगे और उनका प्रयोग वे मुझ पर भी कर सकते हैं। कृपा करके उनसे बचने के उपाय भी मुझे बताइये। इसके अतिरिक्त ऐसा भी उपाय बताइये जिससे इन अस्त्रों को छोड़ने के पश्चात् अपना कार्य कर के ये अस्त्र पुनः मेरे पास वापस आ जावें।" राम के इस प्रकार कहने पर विश्वामित्र बोले, "राघव! शत्रुओं के अस्त्रों को मार्ग में ही काट कर नष्ट करने वाले इन सत्यवान, सत्यकीर्ति, प्रतिहार, पराड़मुख, अवान्मुख, लक्ष्य, उपलक्ष्य आदि इन अस्त्रों को भी तु ग्रहण करो।" इन अस्त्रों को देने के बाद गुरु विश्वामित्र ने राम को वे विधियाँ भी बताईं जिनके द्वारा प्रयोग किये हुये अस्त्र वापस आ जाते हैं।
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06-04-2011, 10:10 PM | #38 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
चलते चलते वे वन के अन्धकार से निकल कर ऐसे स्थान पर पहुँचे जो भगवान भास्कर के दिव्य प्रकाश से आलोकित हो रहा था और सामने नाना प्रकार के सुन्दर वृक्ष, मनोरम उपत्यका एवं मनोमुग्धकारी दृश्य दिखाई दे रहे थे। रामचन्द्र ने विश्वामित्र से पूछा, "हे मुनिराज! सामने पर्वत की सुन्दर उपत्यकाओं में हरे हरे वृक्षों की जो लुभावनी पंक्तियां दृष्टिगत हो रही हैं, उनके पीछे ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कोई आश्रम है। क्या वास्तव में ऐसा है या यह मेरी कल्पना मात्र है? वहाँ सुन्दर सुन्दर मधुरभाषी पक्षियों के झुण्ड भी दिखाई दे रहे हैं, जिससे प्रतीत होता है कि मेरी कल्पना निराधार नहीं है।"
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06-04-2011, 10:11 PM | #39 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
विश्वामित्र जी ने कहा, "हे वत्स! यह वास्तव में आश्रम ही है और इसका नाम सिद्धाश्रम है।"
यह सुन कर लक्ष्मण ने पूछा, "गुरुदेव! इसका नाम सिद्धाश्रम क्यों पड़ा?"
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06-04-2011, 10:12 PM | #40 |
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Re: (1) संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण (बाल काण्ड )
विश्वामित्र जी ने कहा, "इस सम्बन्ध में भी एक कथा प्रचलित है। प्राचीन काल में बलि नाम का एक राक्षस था। बलि बहुत पराक्रमी और बलशाली था और समस्त देवताओं को पराजित कर चुका था। एक बार उसी बलि ने यहाँ पर एक महान यज्ञ का अनुष्ठान किया था। इस यज्ञानुष्ठान से उसकी शक्ति में और भी वृद्धि हो जाने वाली थी। इस बात को विचार कर के देवराज इन्द्र अत्यंत भयभीत हो गया। इन्द्र समस्त देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुँचा और उनकी स्तुति करने के पश्चात् उनसे प्रार्थना की, "हे त्रिलोकीनाथ! राजा बलि ने समस्त देवताओं को परास्त कर दिया है और अब वह एक विराट यज्ञ कर रहा है। वह महादानी और उदार हृदय राक्षस है। उसके द्वार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं लौटता। उसकी तपस्या, तेजस्विता और यज्ञादि शुभ कर्मों से देवलोक सहित सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड काँप उठा है। यदि उसका यह यज्ञ पूर्ण हो जायेगा तो वह इन्द्रासन को प्राप्त कर लेगा। इन्द्रासन पर किसी राक्षस का अधिकार होना सुरों की परम्परा के विरुद्ध है। अतएव, हे लक्ष्मीपति! आप से प्रार्थना है कि आप दुछ ऐसा उपाय करें कि उसका यज्ञ पूर्ण न हो पाये।" उनकी इस प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने कहा, "आप सभी देवता निर्भय और निश्चिंत होकर अपने अपने धाम में वापस चले जाएँ। आप लोगों का मनोरथ पूर्ण करने के लिये मैं शीघ्र ही उपाय करूँगा।"
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