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08-05-2011, 11:41 AM | #1 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
"इस्मत चुगताई" ये नाम दिमाग में बज रहा था किसी नगाड़े की तरह
जब आपका सूत्र शुरू से पढ़ा फिर समझ में आया की इन्होने ही "गर्म हवा" की कहानी लिखी थी बहुत ही खुबसूरत कहानी थी और फिल्म उससे भी खुबसूरत इनकी और कहानियां डालिए
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
08-05-2011, 11:22 PM | #2 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
अवश्य उनकी और कहानियां डालूंगी इस सूत्र में.. वैसे मुझे भी ये बात हाल में ही पता चली कि यह फिल्म उनकी कहानी पर बनी थी. वैसे शायद आप उन्हें उनकी एक विवादस्पद कहानी "लिहाफ" से भी जानते होंगे. समलिंगी रिश्तों पर आधारित यह कहानी कुछ बोल्ड मानी जाती है..यदि फोरम प्रबंधन की इज़ाज़त मिलेगी तो वह कहानी भी पोस्ट करना चाहूंगी.
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काम्या
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04-11-2011, 07:54 PM | #3 | ||
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
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इस्मतजी ने सबसे पहले 'जिद्दी' (1948) की कहानी लिखी थी ! इसके बाद आरजू' (1950) की पटकथा और संवाद लिखे ! उन्होंने 'फरेब' (1953) और 'जवाब आएगा' (1968) का निर्देशन किया ! 'सोने की चिड़िया' (1958) की प्रोड्यूसर वही थीं और इसकी पटकथा भी उनकी ही लिखी थी ! 'गरम हवा' (1973) उनकी लिखी कहानी पर बनी थी और उन्होंने ही 'जूनून' (1978) के संवाद लिखे थे ! 1975 में उन्होंने एक वृत्त चित्र का भी निर्देशन किया था, जिसका शीर्षक था - 'माइ ड्रीम्स' !
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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04-11-2011, 08:20 PM | #4 | ||
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
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काम्या
What does not kill me makes me stronger! Last edited by Dark Saint Alaick; 09-11-2011 at 08:06 PM. |
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04-11-2011, 09:33 PM | #5 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
रब्बो ने उन्हें नीचे गिरते-गिरते सँभाल लिया। चटपट देखते-देखते उनका सूखा जिस्म भरना शुरू हुआ। गाल चमक उठे और हुस्न फूट निकला। एक अजीबो-गरीब तेल की मालिश से बेगम जान में जिन्दगी की झलक आयी। माफ क़ीजियेगा, उस तेल का नुस्खा आपको बेहतरीन-से-बेहतरीन रिसाले में भी न मिलेगा।
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Last edited by Sikandar_Khan; 04-11-2011 at 11:07 PM. |
04-11-2011, 10:00 PM | #6 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वह चालीस-बयालीस की होंगी। ओफ्फोह! किस शान से वह मसनद पर नीमदराज थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी बैठी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दुशाला उनके पैरों पर पडा था और वह महारानी की तरह शानदार मालूम हो रही थीं। मुझे उनकी शक्ल बेइन्तहा पसन्द थी। मेरा जी चाहता था, घण्टों बिल्कुल पास से उनकी सूरत देखा करूँ। उनकी रंगत बिल्कुल सफेद थी। नाम को सुर्खी का जिक़्र नहीं। और बाल स्याह और तेल में डूबे रहते थे। मैंने आज तक उनकी माँग ही बिगडी न देखी। क्या मजाल जो एक बाल इधर-उधर हो जाये। उनकी आँखें काली थीं और अबरू पर के जायद बाल अलहदा कर देने से कमानें-सीं खिंची होती थीं। आँखें जरा तनी हुई रहती थीं। भारी-भारी फूले हुए पपोटे, मोटी-मोटी पलकें। सबसे जियाद जो उनके चेहरे पर हैरतअंगेज ज़ाजिबे-नजर चीज थी, वह उनके होंठ थे। अमूमन वह सुर्खी से रंगे रहते थे। ऊपर के होंठ पर हल्की-हल्की मँछें-सी थीं और कनपटियों पर लम्बे-लम्बे बाल। कभी-कभी उनका चेहरा देखते-देखते अजीब-सा लगने लगता था - कम उम्र लडक़ों जैसा।
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Last edited by Sikandar_Khan; 04-11-2011 at 11:08 PM. |
04-11-2011, 10:02 PM | #7 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
उनके जिस्म की जिल्द भी सफेद और चिकनी थी। मालूम होता था किसी ने कसकर टाँके लगा दिये हों। अमूमन वह अपनी पिण्डलियाँ खुजाने के लिए किसोलतीं तो मैं चुपके-चुपके उनकी चमक देखा करती। उनका कद बहुत लम्बा था और फिर गोश्त होने की वजह से वह बहुत ही लम्बी-चौडी मालूम होतीं थीं। लेकिन बहुत मुतनासिब और ढला हुआ जिस्म था। बडे-बडे चिकने और सफेद हाथ और सुडौल कमर ..तो रब्बो उनकी पीठ खुजाया करती थी। यानी घण्टों उनकी पीठ खुजाती - पीठ खुजाना भी जिन्दगी की जरूरियात में से था, बल्कि शायद जरूरियाते-जिन्दगी से भी ज्यादा।
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Last edited by Sikandar_Khan; 04-11-2011 at 11:06 PM. |
04-11-2011, 09:01 PM | #8 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
अलैक जी फरमाइश पर मै काम्या जी के सूत्र पर इस्मत आपा की लिखी हुई कहानी "लिहाफ" पेश कर रहा हूँ |
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04-11-2011, 09:03 PM | #9 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
लिहाफ माफ कीजियेगा, मैं आपको खुद अपने लिहाफ क़ा रूमानअंगेज ज़िक़्र बताने नहीं जा रही हूँ, न लिहाफ से किसी किस्म का रूमान जोडा ही जा सकता है। मेरे खयाल में कम्बल कम आरामदेह सही, मगर उसकी परछाई इतनी भयानक नहीं होती जितनी - जब लिहाफ क़ी परछाई दीवार पर डगमगा रही हो। यह जब का जिक्र है, जब मैं छोटी-सी थी और दिन-भर भाइयों और उनके दोस्तों के साथ मार-कुटाई में गुजार दिया करती थी। कभी - कभी मुझे खयाल आता कि मैं कमबख्त इतनी लडाका क्यों थी? उस उम्र में जबकि मेरी और बहनें आशिक जमा कर रही थीं, मैं अपने-पराये हर लडक़े और लडक़ी से जूतम-पैजार में मशगूल थी। यही वजह थी कि अम्माँ जब आगरा जाने लगीं तो हफ्ता-भर के लिए मुझे अपनी एक मुँहबोली बहन के पास छोड ग़यीं। उनके यहाँ, अम्माँ खूब जानती थी कि चूहे का बच्चा भी नहीं और मैं किसी से भी लड-भिड न सकँूगी। सजा तो खूब थी मेरी! हाँ, तो अम्माँ मुझे बेगम जान के पास छोड ग़यीं। वही बेगम जान जिनका लिहाफ अब तक मेरे जहन में गर्म लोहे के दाग की तरह महफूज है। ये वो बेगम जान थीं जिनके गरीब माँ-बाप ने नवाब साहब को इसलिए दामाद बना लिया कि गो वह पकी उम्र के थे मगर निहायत नेक। कभी कोई रण्डी या बाजारी औरत उनके यहाँ नजर न आयी। खुद हाजी थे और बहुतों को हज करा चुके थे।
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Last edited by Sikandar_Khan; 04-11-2011 at 11:04 PM. |
04-11-2011, 09:05 PM | #10 |
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Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
मगर उन्हें एक निहायत अजीबो-गरीब शौक था। लोगों को कबूतर पालने का जुनून होता है, बटेरें लडाते हैं, मुर्गबाजी क़रते हैं - इस किस्म के वाहियात खेलों से नवाब साहब को नफरत थी। उनके यहाँ तो बस तालिब इल्म रहते थे। नौजवान, गोरे-गोरे, पतली कमरों के लडक़े, जिनका खर्च वे खुद बर्दाश्त करते थे।
मगर बेगम जान से शादी करके तो वे उन्हें कुल साजाे-सामान के साथ ही घर में रखकर भूल गये। और वह बेचारी दुबली-पतली नाजुक़-सी बेगम तन्हाई के गम में घुलने लगीं। न जाने उनकी जिन्दगी कहाँ से शुरू होती है? वहाँ से जब वह पैदा होने की गलती कर चुकी थीं, या वहाँ से जब एक नवाब की बेगम बनकर आयीं और छपरखट पर जिन्दगी गुजारने लगीं, या जब से नवाब साहब के यहाँ लडक़ों का जोर बँधा। उनके लिए मुरग्गन हलवे और लजीज़ ख़ाने जाने लगे और बेगम जान दीवानखाने की दरारों में से उनकी लचकती कमरोंवाले लडक़ों की चुस्त पिण्डलियाँ और मोअत्तर बारीक शबनम के कुर्ते देख-देखकर अंगारों पर लोटने लगीं।
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Last edited by Sikandar_Khan; 04-11-2011 at 11:05 PM. |
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