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Old 08-07-2011, 07:17 PM   #41
arvind
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

हमारे देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बोस ने पहली बार साबित किया की पौधा मनुष्य की तरह जीव हैं। वे फादर ऑफ रेडियो साइंस भी कहे जाते हैं। तब प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रयोगशाला नहीं थी। अपने खर्चे से बाथरूम को प्रयोगशाला बनायी। पहली बार बिना तार के इलेक्ट्रोमेगनेटिक तरंगों के सहारे घंटी बनाकर दुनिया को चौंकाया। अंगरेजों ने उनके सिद्धांत का इस्तेमाल पानी जहाजों को संदेश देने के लिए किया। उन्हे पैसा जमा करने से चिढ़ थी। इसीलिए पेटेंट नहीं कराया। गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को पत्र लिखा कि पैसे के पीछे लोग कैसे भाग रहे हैं। वे बस ज्ञान के प्रचार–प्रसार के इच्छुक थे। वे स्कूल में अंगरेजी में बहुत कमजोर थे। उनके सहपाठियों ने उनके साथ पढ़ने से इनकार कर दिया था। वे बोस को देहाती कहते थे। बेवकूफ – ‘जीरो’। आज भी हम कमजोर छात्र के लिए लोगों को ‘जीरो’ कहते सुनते हैं। पाइ का मान जीरो की परिधि को उसके व्यास से विभाजित करने पर आता है। इसे हम 3.14 मान कर काम चलाते हैं, पर सही मान आज तक नहीं निकला। दो अंको को दहाई व तीन अंको को सैकड़ा कहते हैं, पर एक के आगे अगर दस लाख अंक दिये जाएं, तो क्या आप गिन पायेंगे। प्रिंसटन विवि कि ‘रहस्यमयी पाइ’ में 27 पन्नों में वैल्यू निकाल कर छोड़ दिया गया है। यह अनंत है। न खुद को ‘जीरो’ मानें, न दूसरे को ‘जीरो’ कहें, क्योंकि आपमें पाइ है। आपमें कितनी क्षमता है, इसका सही मूल्यांकन पाइ की तरह अब तक नहीं हुआ है । जिंदगी को ‘जीरो’ मान कर नष्ट करने के बजाय इसके आगे अंक लगाते जाएं। आप जेसी बोस से भी आगे होंगे।
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Old 08-07-2011, 07:25 PM   #42
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

हम जंगल को देखते हैं, पर पेड़ों को नहीं हम जैसे–जैसे करीब जायेंगे, पहाड़, पेड़ साफ दिखायी देंगे। जंगल के भीतर बिलकुल नयी दुनिया होगी। बहुमूल्य पेड़, जड़ी–बूटियाँ। जो बाहर से बेकार था, भीतर जाने पर उसमे कीमती चीजें दिखाई पड़ती हैं। आदमी के साथ भी ऐसा ही होता है। कोई युवा परीक्षा में फेल हुआ और हम कह देते हैं की वह किसी काम का नहीं है। ’जीरो’ है। ओसफोर्ड से प्रकाशित अपनी किताब ‘शून्य के इतिहास’ में कैपलन ने निराशावाद को तार–तार कर दिया है। उनके शब्द हैं – जीरो को दूर से देखें, तो वह महज गोलाकार आकृति है, पर उसके भीतर देखें, तो पूरी दुनियां दिखेगी। टी विजयराघवन के साथ भी ऐसा ही हुआ। तमिलनाडु में जन्मे विजयराघवन गणित में डूबे रहते थे। नतीजा हुआ की वे बीए में फेल हो गये। बहुतों ने उनका मजाक उड़ाया। कई लोगों ने भविष्यवाणी कर दी की विजयराघवन अब कुछ नहीं कर सकते, पर वे निराश नहीं हुए। अपने प्रयास में लगे रहें। आखिर ऑक्सफोर्ड में गणित के उसी विद्वान हार्डी ने उनके भीतर की क्षमता को देखा, जिन्होने रामानुजन को पहचाना था। हार्डी के पत्र लिखने के बाद मद्रास विवि ने उन्हे वजीफा देने का निर्णय लिया। इसके बाद वे ऑक्सफोर्ड पहुंचे व हार्डी के साथ शोध में लगे। फिर तो उन्होने कई सवाल हल किये। वे 1925 तक मैथमेटिकल सोसाइटी, लंदन के सदस्य रहे। वे इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के भी अध्यक्ष रहे। अगर आप भी परीक्षा में फेल हो जाएं और बात–बात पर जजमेंट देने को तैयार लोग आपको ‘जीरो’ कहें, तो भी आप निराश न हो। लक्ष्य की दिशा में बढ़ते रहें। हार्डी की तरह आपको भी पहचानने वाले आयेंगे। आप भी सफल होंगे।
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Old 08-07-2011, 07:33 PM   #43
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

जो चित्र बनाने में रुचि रखते हैं, वे विनोद बिहारी मुखर्जी को जानते हैं। उनकी एक आँख की रोशनी बचपन में ही बीमारी के कारण खत्म हो गयी थी। दूसरी आँख में नाममात्र की रोशनी थी। पचास वर्ष की उम्र में वे पूरी अंधेपन के शिकार हो गये। आम आदमी के लिए यह आश्चर्य का विषय है कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने बचपन से सिर्फ शब्दो को सुना हो, वह खूबसूरती कि कल्पना कैसे कर सकता है। जिसकी आंखो ने पहाड़ों को देखा न हो व हिमालय कि खूबसूतरी को कैसे चित्रों में उभार सकता है। 1903 में कोलकाता में जन्मे मुखर्जी ने शांतिनिकेतन के कला भवन में शिक्षा ली। बाद में राजस्थान से लेकर मसूरी तक नयी पीढ़ी को रंगो,रेखाओं व कैलीग्राफी के गुर सिखाये। जंहा से शिक्षा ली, उसी कला भवन के प्राचार्य बने। देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित हुए। मुखर्जी ने असंभव को संभव किया अपनी आंतरिक शक्ति के कारण, जिजीविषा के कारण। इसे विज्ञान भी मानता है। ज्यामिति (ज्योमेट्री) का एक सिद्ध हाइपरबोला (अतिपरवलय) है, जिसका काफी इस्तेमाल होता है। इसके अनुसार जैसे–जैसे आप एक्स को जीरो के करीब ले लायेंगे, वैसे–वैसे जीरो से वाइ कि दूरी बढ़ती जायेगी। एक्स को आप परीक्षा में असफल छात्र मान लें, तो इसका मतलब हुआ कि वह जैसे–जैसे पढ़ाई के लिए अपना समर्पण बढ़ता जाएगा, वैसे–वैसे वाइ अर्थात उसका ज्ञान बढ़ता जाएगा। यह अनंत है। आप अपने समर्पण को एक के हजारवें भाग तक जीरो के करीब ले जाएं, तो इसका मतलब होगा, आपकी बुद्धिमता (वाइ) हजार गुनी अधिक होगी । यही तो मुखर्जी ने किया था। जब वे कामयाब हो सकते हैं, तो आप क्यों नहीं?
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Old 08-07-2011, 07:39 PM   #44
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Default Re: जीवन चलने का नाम।

अगर जरूरतें आविष्कार की जननी हैं, तो तनाव को आप महान बनाने की भट्टी कह सकते हैं। मनुष्य व तनावों का संबंध पुराना हैं। कई पौराणिक श्लोकों में अवसाद की चर्चा है, पर आमतौर से इतिहासकार इसके कारण आत्महत्या की प्रवृति का उल्लेख नहीं करते। सम्राट अशोक ने भी तनाव झेला था। कलिंग युद्ध में एक लाख से अधिक लोग मारे गये। कोशांबी सहित मार्क्सवादी इतिहासकार नहीं मानतें, पर शिलालेख व अन्य स्रोतों के आधार पर यहीं माना जाता है कि वे गहरे अवसाद में थे। इसके बाद उनके जीवन दर्शन बदल गये। लगभग ढाई हजार साल पहले एक शिलालेख में उनकी कही बात आज भी दोहरायी जाती है कि राजा तभी हंसता है, जब प्रजा हंसती हैं। उन्होने मनुष्य ही नहीं, मवेशियों के लिए भी अस्पताल बनवाये। समाज में उदारता व अन्य लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत किया। पशु बलि व सालों चलनेवाले यज्ञों में टनों दी जानेवाली अनाजों की आहुति पर रोक लगायी। संचय को बढ़ावा दिया, जिसने व्यापार में वृद्धि की। ओड़िशा से लेकर अफगानिस्तान तक राज किया। अगर वे कलिंग युद्ध के बाद तनाव के कारण हिम्मत हार गये होते, तो जमाना कभी उन्हे याद नहीं करता। इतिहास उन्हीं को याद करता है, जो मुसीबतों का मुक़ाबला करते हैं। गलत कदम उठानेवालों का नाम केवल थानों में दर्ज रहता है। वहीं, हिम्मत से काम लेनेवालों का नाम किताबों में मॉडल बनता है। ऐसे लोग ही देश के नायक होते हैं। आप भी अगर अपनी किसी गलती के कारण तनाव में हैं, तो आत्मघाती कदम उठाने के बजाय अशोक की तरह दुनिया को बेहतर बनाने में हाथ बंटाएँ। इससे सुंदर कोई और प्रायश्चित नहीं हो सकता ।
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