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#1 |
अति विशिष्ट कवि
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![]() दिल दे करके , दर्द ले आना , अच्छा लगता है . सामने वाली खिड़की से , गर चाँद रोज़ निकले ; छज्जे पर से आँख लड़ाना , अच्छा लगता है . वो दिल , क्या दिल , जिसके चर्चे दूर तलक ना हों ; जीवन में इक -आध फ़साना , अच्छा लगता है . क्या दिन थे , जब ज़र्रा उड़ कर , आसमान तक पहुंचा था ; आज तलक वो गुज़रा ज़माना , अच्छा लगता है . उसने मेरे दर से रिश्ता तोड़ दिया , फिर भी ; उसकी गली से आना - जाना , अच्छा लगता है . टूटे दिल का दर्द , जुबाँ से रोज छलकता है ; बाथरूम में बिरहा गाना , अच्छा लगता है . वो हरजाई चाहे जितनी निकल गयी ,लेकिन ; उसके बारे में बतियाना ,अच्छा लगता है . पहले वो ही वो बस अच्छी लगती थी , पर अब ; अपने दर्द से ग़ज़ल बनाना , अच्छा लगता है . रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव लखनऊ , इंडिया . Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 16-07-2011 at 12:44 PM. |
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#2 |
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दिल दे करके, दर्द ले आना, अच्छा लगता है।
आपकी लेखनी के कायल हो गये डाँक्टर साहब…किन शब्दों में तारीफ करें शब्द नहीं मिलते। ![]() |
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#3 |
Special Member
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ऐ सनम तेरा हसीं नाम अच्छा लगता है।
तेरे साथ से ये चाँद अच्छा लगता है॥ लोग कहते हे तेरे इश्क में पागल मुझ को। और मुझे ये इलज़ाम अच्छा लगता है॥ |
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#4 |
अति विशिष्ट कवि
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#5 |
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![]() मैं अँधेरे में फ़ना होने को था , आप मेरे वास्ते लाये दिया ; पाँव मेरे लडखडाये ,जब ,जहाँ , आपने आकर सहारा दे दिया. Last edited by Dr. Rakesh Srivastava; 16-07-2011 at 01:10 PM. |
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#6 |
Special Member
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राकेश जी आपकी रचना पढना, अच्छा लगता है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#7 |
अति विशिष्ट कवि
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#8 | |
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बेजोड़ प्रस्तुति. ![]() ![]()
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क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है. ![]() |
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