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#11 |
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![]() छिन छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा॥ तुम पुरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी। जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥ चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता। सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता। तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े। प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥ दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी। पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी॥ सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो। विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी॥ जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे। जेठानंद आनंदकर, सो निश्चय पावे॥ सब बोलो विष्णु भगवान की जय! बोलो बृहस्पतिदेव भगवान की जय!!
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#12 |
Special Member
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आरती युगलकिशोर की कीजै। तन मन न्यौछावर कीजै॥टेक॥
गौरश्याम मुख निरखत लीजै। हरि का स्वरूप नयन भरि पीजै॥ रवि शशि कोटि बदन की शोभा। ताहि निरखि मेरे मन लोभा॥ ओढ़े नील पीत पट सारी। कुंजबिहारी गिरिवरधारी॥ फूलन की सेज फूलन की माला। रत्*न सिंहासन बैठे नन्दलाला॥ मोरमुकुट कर मुरली सोहै। नटवर कला देखि मन मोहै॥ कंचनथार कपूर की बाती। हरि आए निर्मल भई छाती॥ श्री पुरुषोत्तम गिरिवर धारी। आरती करें सकल ब्रज नारी॥ नन्दनन्दन बृजभानु किशोरी। परमानन्द स्वामी अविचल जोरी॥
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#13 |
Administrator
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is sutra se sara forum bhaktimay ho gaya..
bahut badhiya bhawna ji.. :-) |
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#14 |
Special Member
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उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार एडमिन जी
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#15 |
Special Member
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जय जय आरती वेणु गोपाला
वेणु गोपाला वेणु लोला पाप विदुरा नवनीत चोरा जय जय जय जय आरती वेंकटरमणा वेंकटरमणा संकटहरणा सीता राम राधे श्याम जय जय जय जय आरती गौरी मनोहर गौरी मनोहर भवानी शंकर साम्ब सदाशिव उमा महेश्वर जय जय जय जय आरती राज राजेश्वरि राज राजेश्वरि त्रिपुरसुन्दरि महा सरस्वती महा लक्ष्मी महा काली महा लक्ष्मी जय जय आरती आन्जनेय आन्जनेय हनुमन्ता जय जय आरति दत्तात्रेय दत्तात्रेय त्रिमुर्ति अवतार जय जय आरती सिद्धि विनायक सिद्धि विनायक श्री गणेश जय जय आरती सुब्रह्मण्य सुब्रह्मण्य कार्तिकेय
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#16 |
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![]() आरती श्रीकृष्ण कन्हैयाकी।
मथुरा कारागृह अवतारी, गोकुल जसुदा गोद विहारी, नंदलाल नटवर गिरधारी, वासुदेव हलधर भैया की॥ आरती .. मोर मुकुट पीताम्बर छाजै, कटि काछनि, कर मुरलि विराजै, पूर्ण सरक ससि मुख लखि जाजै, काम कोटि छवि जितवैया की॥ आरती .. गोपीजन रस रास विलासी, कौरव कालिय, कंस बिनासी, हिमकर भानु, कृसानु प्रकासी, सर्वभूत हिय बसवैयाकी॥ आरती .. कहुं रन चढ़ै, भागि कहुं जाव, कहुं नृप कर, कहुं गाय चरावै, कहुं जागेस, बेद जस गावै, जग नचाय ब्रज नचवैया की॥ आरती .. अगुन सगुन लीला बपु धारी, अनुपम गीता ज्ञान प्रचारी, दामोदर सब विधि बलिहारी, विप्र धेनु सुर रखवैया की॥ आरती ..
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#17 |
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आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
परसत चरणारविन्द आपदा हरी। निरखत मुखारविंद आपदा हरी, कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी। अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी। आरती.. देवन द्वारे ठाड़े रोहिणी खड़ी, मारकण्डे श्वेत गंगा आन करी। गरुड़ खम्भ सिंह पौर यात्री जुड़ी, यात्री की भीड़ बहुत बेंत की छड़ी। आरती .. धन्य-धन्य सूरश्याम आज की घड़ी। आरती ..
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#18 |
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आरती श्री रामायणजी की ।
कीरति कलित ललित सिय पी की ॥ गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद । बालमीक बिग्यान बिसारद ॥ सुक सनकादि सेष और सारद । बरन पवन्सुत कीरति नीकी ॥ गावत बेद पुरान अष्टदस । छओं सास्त्र सब ग्रंथन को रस ॥ मुनि जन धन संतन को सरबस । सार अंस सम्म्मत सब ही की ॥ गावत संतत संभु भवानी । अरु घटसंभव मुनि बिग्यानी ॥ ब्यास आदि कबिबर्ज बखानी । कागभुसुंडि गरुड के ही की ॥ कलि मल हरनि बिषय रस फीकी । सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की ॥ दलन रोग भव भूरि अमी की । तात मात सब बिधि तुलसी की ॥
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#19 |
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आरती श्री वृषभानुसुता की।
मन्जु मूर्ति मोहन ममता की। आरती .. त्रिविध तापयुत संसृति नाशिनि, विमल विवेक विराग विकासिनि, पावन प्रभु पद प्रीति प्रकाशिनि, सुन्दरतम छवि सुन्दतरा की॥ आरती .. मुनि मनमोहन मोहन मोहनि, मधुर मनोहर मूरति सोहनि, अविरल प्रेम अमित रस दोहनि, प्रिय अति सदा सखी ललिता की॥ आरती .. संतत सेव्य संत मुनिजन की, आकर अमित दिव्यगुन गन की, आकर्षिणी कृष्ण तन मन की, अति अमूल्य सम्पति समता की॥ आरती .. कृष्णात्मिका, कृष्ण सहचारिणि, चिन्मयवृन्दा विपिन विहारिणि, जगजननि जग दु:ख निवारिणि, आदि अनादि शक्ति विभुता की॥ आरती ..
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#20 |
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आरती साईबाबा ।
सौख्यदातारा जीवा । चरणरजतळीं निज दासां विसावां । भक्तां विसावा ॥धृ॥ जाळुनियां अनंग । स्वस्वरुपी राहे दंग । मुमुक्षुजना दावी । निजडोळां श्रीरंग ॥१॥ जया मनीं जैसा भाव । तया तैसा अनुभव । दाविसी दयाघना । ऐसी ही तुझी माव ॥२॥ तुमचें नाम ध्यातां । हरे संसृतिव्यथा । अगाध तव करणी । मार्ग दाविसी अनाथा ॥३॥ कलियुगीं अवतार । सगुणब्रह्म साचार । अवतीर्ण झालासे । स्वामी दत्त दिगंबर ॥४॥ आठा दिवसां गुरुवारी । भक्त करिती वारी । प्रभुपद पहावया । भवभय निवारी ॥५॥ माझा निजद्रव्य ठेवा । तव चरणसेवा । मागणें हेंचि आता । तुम्हा देवाधिदेवा ॥६॥ इच्छित दीन चातक । निर्मळ तोय निजसुख । पाजावें माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ॥७॥
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